मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ब्लॉगिंग_2.0 के लिए
कितने तैयार हम...खुशदीप
हिन्दी_ब्लॉगिंग के दूसरे संस्करण यानि #ब्लॉगिंग_2.0 का आगाज़ शानदार रहा है...ब्लॉगिंग को दोबारा दमदार बनाने के इस यज्ञ में कोई भी ब्लॉगर अपनी आहुति देने से पीछे नहीं रहा...सवाल भी पूछे गए कि किसने तय कर दिया अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस...किसने और क्यों चुना हैशटैग...मूल प्रस्ताव तो ये था कि हर महीने की 1 तारीख को सभी की ओर से 1-1 पोस्ट ज़रूर लिखी जाए...फिर कैसे ये अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस में तब्दील हो गया...कैसे हैशटैग आ गया...कॉपीपेस्ट टिप्पणियां की गईं आदि आदि... यहां मेरा मानना है कि कुछ चीज़ें इनसान के हाथ में नहीं होती...कोई अदृश्य शक्ति भी है...
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बूके देना बंद करें
फूल की भी कैसी किस्मत है जिसने नजर डाली बुरी नजर डाली अ उसका सुन्दर होना अभिशाप हो जाता है उसे पूरी तरह डाली पर खिल कर खुशबू भी नहीं बिखराने देते हैं। बहुत खुशबू दर फूल है तोड़ लेंगे और एक दो बार सूंघ कर फेंक देंगे। तब क्या फूल की दशा पर किसी ने बिचार किया। नेता को खुश करने के लिए कीमती बुके बनवाया नेता को फुर्सत नहीं की उसकी ओरे देखे वह लेन वाले को भी ठीक से नहीं देखता साथ मैं खड़े अर्दली को पकड़ा देता है...
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इश्क़ का बीज
लो मैंने बो दिया है इश्क़ का बीज
कल जब इसमें फूल लगेंगे
वो किसी जाति मज़हब के नहीं होंगे
वो होंगे तेरी मेरी मुहब्बत के...
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आइये आज हम ईद के मुशायरे का
समापन करते हैं चार रचनाकारों के साथ
शेख चिल्ली जी, बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी,
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ जी
और राकेश खंडेलवाल जी की रचनाओं के साथ
हम ईद की दुआओं में विश्व शांति की कामना करते हैं।
सुबीर संवाद सेवा पर पंकज सुबीर
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कल के नरेन्द्र का मूर्त रूप
हिन्दी_ब्लागिंग नेकनामी और बदनामी, दोनों का चोली-दामन का साथ है। जैसे ही किसी व्यक्ति की कीर्ति फैलने लगती है, उसी के साथ उसको कलंकित करने वाले उपाय भी प्रारम्भ हो जाते हैं। दोनो में संघर्ष चलता है लेकिन जीत सत्य की ही होती है। आज 4 जुलाई को ऐसे ही सत्य का स्मरण हो रहा है। 11 सितम्बर 1893 को जब विवेकानन्द जी को अपने शिकागो भाषण के कारण नेकनामी मिली तो कुछ लोगों ने उनके प्रति दुष्प्रचार प्रारम्भ कर दिया। कलकत्ता के अखबार रंग दिये गये, उनका हर सम्भव प्रकार से चरित्र हनन किया गया। नेकनामी और बदनामी का संधर्ष चलता रहा लेकिन अन्त में सत्य सामने आ गया। जब ऐतिहासिक नरेन्द्र को देखती हूँ तो...
smt. Ajit Gupta
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भाते हैं गो मुझे भी नफ़ासत के रास्ते
क़्दीर है के चलता हूँ ग़ुरबत के रास्ते
भाते हैं गो मुझे भी नफ़ासत के रास्ते...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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सरकारों की गहरी नींद
और किसानो का टूटता धैर्य
अरुण चंद्र रॉय किसानो की स्थिति के बारे में सच्चाई यह है कि तमाम वायदों और घोषणाओं के बीच आजादी के सात दशक बाद भी देश के अधिकांश किसान बदहाल व उपेक्षित हैं।हालात यह है कि अपने खून-पसीने से देशवासियों का पेट भरने वाले अन्नदाता आज स्वयं दाने-दाने को मोहताज नजर आ रहे हैं।सबसे बदतर हालत छोटे व मझोले किसानों की है, जो मुसीबत में आर्थिक व मानसिक सहायता प्राप्त न कर पाने की स्थिति में खुदकुशी कर अपने अनमोल जीवन को त्यागने को विवश हैं...
सरोकार पर Arun Roy
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मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो
साहिर
मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो।
कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो...
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शीर्षकहीन
अरे हम तो पोस्ट लिखना ही भुल गये , कैसे लिखे ओर कैसे पोस्ट करे ???? चलिये अब यहां तक पहुच गये हे तो पोस्ट भी लिख दे, लेकिन क्या लिखे ???? *वो भारतिया मित्र जो पहली बार युरोप ओर अमेरिका कनाडा वगेरा आते हे, यह पोस्ट उन के नाम से... * हम भारतिया जहां भी किसी सुंदर बच्चे को देखते हे झट से प्यार जताने लगते हे, बच्चे के गालो को दोनो हाथो से प्यार से सहलायेगे, अरे बाबा यह सब भारत मे चलता हे, यहां युरोप वगेरा मे नही, मेरे कई मित्र ऎसा करते हे तो मुसिबत मे फ़ंस सकते हे, हम यहां बच्चा तो बहुत दुर की बात हे किसी के कुत्ते को भी हाथ लगाना हो, कुछ आने के लिये देना हो तो पहले उस के मालिक से...
राज भाटिय़ा
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शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर व पठनीय रचनाओं का चयन
आभार
सादर
बहुत सुंदर और पठनीय लिंक्स मिले, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
SUNDAR CHARCHA.........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविस्तृत पोस्ट ... बहुत से लिंक मिले आज ...
जवाब देंहटाएंSUNDAR CHARCHA HAMEN SHAMIL KARNE HETU HRADAY SE ABHAR
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। कमल जोशी को श्रद्धांजलि।
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