मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
--
--
जागो ग्राहक जागो
साधु", शब्द सुनते ही हमारे मानस पटल पर औचक जो चित्र उभरता है,वह कटोरा लिए दरवाजे पर खड़े गेरुआधारी भिखारी का या फिर आँखें मूँदे बैठे माला जपते व्यक्ति का होता है। वैसे तो कुछ 'तथाकथित' लघु गुरु साधुओं के कु-कृत्यों ने और बाकी बची कसर सेकुलर बुद्धिजीवियों के दुष्प्रचारों ने पूरी करते पिछले दशकों में साधुओं की वह छवि बना डाली है, कि इनके झोले में डालने को जनसाधारण के पास संशय घृणा और तिरस्कार रूपी भाव भिक्षा के अतिरिक्त शायद ही कुछ अच्छा बचा है...
--
--
फ़ालतू
*नया हास्य *
एक दिन पड़ोसियों का प्रतिनिधिमंडल मुझसे मिलने आया, आ ही गया। बोले आप दिनभर घर पर क्यों रहते हो ? मैंने कहा ‘क्यों, कोई दिक्क़त है ?’ बोले, ‘दिक्क़त तो बहुत है’ मैंने कहा,‘ख़ुलकर बताओ’ ‘कहने लगे,‘क्योंकि हम भी पूरे दिन घर पर ही रहते हैं, कहीं आपको पता न चल जाए इस डर से न तो टीवी देख पाते हैं, न बात कर पाते हैं, न घात कर पाते हैं, न लात कर पाते हैं....वग़ैरह....
Sanjay Grover
--
चन्द मुख्तसर शेर
न मैं तेरे ख्याल जैसा हूँ,
न मैं मेरे सवाल जैसा हूँ,
न मैं तेरे चश्मे तर में हूँ,
न मैं किसी उदास नज़र में हूँ।
मैं हूँ ही नहीं,मुझे तलाश मत,
गर हूँ कहीं तो असर में हूँ...
न मैं मेरे सवाल जैसा हूँ,
न मैं तेरे चश्मे तर में हूँ,
न मैं किसी उदास नज़र में हूँ।
मैं हूँ ही नहीं,मुझे तलाश मत,
गर हूँ कहीं तो असर में हूँ...
"सच में!"पर कुश शर्मा
--
लौटा है क्या ख़ाक कमाकर
झलक रहा है जैसे गौहर पेशानी पर का श्रमसीकर
बुन सकता हूँ मैं ज्यूँ रिश्ता ख़ाक बुनेगा वैसा बुनकर...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
--
एक क़ता-----
भला होते मुकम्मल कब यहाँ पे इश्क़ के किस्से कभी अफ़सोस मत करना कि हस्ती हार जाती है पढ़ो ’फ़रहाद’ का किस्सा ,यकीं आ जायेगा तुम को मुहब्बत में कभी ’तेशा’ भी बन कर मौत आती है जो अफ़साना अधूरा था विसाल-ए-यार का ’आनन’ चलो बाक़ी सुना दो अब कि मुझको नीद आती है...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
--
--
--
--
--
--
--
--
कुछ भी व्यर्थ नहीं
हर रात नींद की क्यारी में
बोते है चंद बीज ख्वाब के
कुछ फूल बनकर मुस्कुराते है
कुछ दफ्न होकर रह जाते है
बनते बिगड़ते ज़िदगी के राह में
चंद सपनों के टूट जाने से
जीवन व्यर्थ नहीं हो सकता...
--
टॉप टेन बरसात के गाने
और सन्दर्भ सहित व्याख्या
पिछले कई सालों से, जी हाँ भाइयों और बहनों ! नंबर एक पायदान पर विराजमान जो गाना है, वो है ----''तेरी दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए ---'' गाना समर्पित है पति और पत्नी को | प्रस्तुत पंक्तिओं में पत्नी अपने पति को सम्बोधित करती हुई कहती है कि हे प्रियतम ! तुम्हारी नौकरी नौकरी चाहे लाखों की हो लेकिन मेरे लिए वह दो टके की भी नहीं है, अगर उस नौकरी से मैं सावन के महीने के दौरान लगने वाली सेल में बम्पर शॉपिंग न कर सकूं...
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
प्रभावी लिनक्स |मेरी रचना को शामिल करने हेतु सदर आभार आदरणीय शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
सुंदर लिंको से सजी चर्चा......बधाई|
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान के लिए आभार|
http://meremankee.blogspot.in/2017/07/tabele-me-hindu-muslim.html
उम्दा लिंक्स। मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार एंव साधुवाद। आपकी कडी ने तमाम पुराने ब्लौगर जनों की रचनाओं से पुनः मिलवा दिया।
जवाब देंहटाएंआभार एंव साधुवाद। आपकी कडी ने तमाम पुराने ब्लौगर जनों की रचनाओं से पुनः मिलवा दिया।
जवाब देंहटाएं