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सोमवार, अगस्त 14, 2017

"छेड़छाड़ से छेड़छाड़" (चर्चा अंक 2696)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मासूम मौत 

B RD मेडिकल कालेज गोरखपुर में असमय काल कवलित हुए नौनिहालों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि उनकी की आत्मा को ईश्वर शांति दे । रब परिजनों को असीम वेदना सहन करने की सामर्थ्य दे । हजहब जाति संप्रदाय क्षेत्र नहीं जीवन का नाश हुआ है राजनीतिक आंकड़ेबाजी नहीं आरोप प्रत्यारोप नहीं, व्यवस्था व समस्या के निदान की अनिवार्यता है । कुआं खोदकर पानी पीने की सलाह की जगह तत्काल जल की आवश्यकता है । सलाह देने वालों कभी पीड़ित परिवारों की जगह खड़ा होकर देखो बुझे चिराग, सुनी हुई गोंद॰ विलुप्त हुई किलकारी का दर्द क्या होता है ....शायद दर्द समझ में आ सके... 
udaya veer singh 
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गोरखपुर में राज्य प्रायोजित 60 बच्चों की हत्या - 

जिम्मेदार कौन? 

जिस देश मे सरकारें, कार्यपालिका और न्यायपालिका बच्चो की परवाह नही कर सकती और दुर्लक्ष करके संगठित रूप से हत्या के जघन्य अपराध में शामिल होती है उस देश का भविष्य तो क्या वर्तमान भी अंधेरे में है । यह राष्ट्रीय शर्म का दिवस है। डरपोक मीडिया में दिलेरी से सबूत के साथ कहने वाले भी है। 60 मौतें 4 दिन में ! किस जगह शासन कर रहे हो और नर्क को नरक बना रहे हो ? ये कुशासन है और घोर अराजकता की भयावह स्थिति। अब बोलों , साबुन से हाथ धुलवाने वालों पोंगा पंडितों ... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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जीवन 

बूँद-दर-बूँद रिस रहा जीवन, 
ऐसे कि ख़ुद को भी ख़बर नहीं, 
अब भी बहुत कुछ बचा है रिसने को... 
कविताएँ पर Onkar 
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जुदाई -  

A Endless Pain 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी 
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"मन खट्टा".... 

राजेश”ललित”शर्मा 

मन खट्टा हो गया 
चल यार कैसी बात करता है 
मन कभी मीठा हुआ 
कभी सुना क्या... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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लापरवाही किस की -- 

अस्पताल में संस्थान के प्रमुख का काम , चाहे वो मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट हों , या डायरेक्टर या फिर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल , बहुत जिम्मेदारी वाला होता है। हालाँकि किसी भी सरकारी संस्थान के प्रशासन में सहायतार्थ अधिकारियों की पूरी टीम होती है , लेकिन अंतत: जिम्मेदारी मुखिया की ही होती है। इसलिए अस्पताल में ऑक्सीजन का ख़त्म होना निश्चित ही प्रशासनिक विफलता है... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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देश में सब ठीक ठाक है 

चलिए शोक मनाईये ... दो मिनट का मौन रखिये ... एक समिति गठित कीजिये और विभागीय कार्यवाही करिए ...... बस इतना करना काफी है उनके घावों पर मरहम लगाने को और पूरा घाव ठीक करने को २०-२५ लाख दे कर कर दीजिये इतिश्री अपने कर्तव्य की ... 
vandana gupta 

बच्चे सो रहे हैं 

बच्चे सो रहे हैं माँ अंतिम लोरी सुना रही है मत ले जाओ मेरे लाल को वो सो रहा है चिल्ला रही है , गिडगिडा रही है , बिलबिला रही है उसके कपडे, खिलौने , सामान संवार रही है सोकर उठेगा उसका लाल तब सजाएगी संवारेगी मत करो तुम हाहाकार कह, समझा रही है सुनिए ये सदमा नहीं है हकीकत है दर्द है बेबसी है हकीकत को झुठलाने की... 
vandana gupta 
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छेड़छाड़ 

शायद ही कोई पुरुष हो जिसने किसी को छेड़ा न हो। शायद ही कोई महिला हो जो किसी से छिड़ी न हो। किशोरावस्था के साथ छेड़छाड़ युग धर्म की तरह जीवन को रसीला/नशीला बनाता है। छेड़छाड़ करने वाले लेखक ही आगे चलकर व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यश प्राप्त करने के बाद भी व्यंग्यकार बाहर से जितने शरीफ भीतर से उतने बड़े छेडू किसिम के होते हैं। बाहर दाल नहीं गलती तो घर में अपनी घरानी को ही छेड़ते पाये जाते है। बात गलत लग रही हो तो बड़े-बड़े व्यंग्यकारों की हास्य के नाम पर परोसी गई व्यंग्य कविताएँ ही पढ़ लीजिये। कितने चुभते तीर छोड़े हैं इन्होंने अपनी पत्नियों पर... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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छेडछाड देवी ने 

ताऊ को साक्षात दर्शन दिये... 

हमने बहुत सोचा कि आखिर इस छेडछाड का जन्म कहां हुआ होगा? बहुत दिमाग दौडाया तो देखा कि उदगम तो यहीं पर है……विषय में ही हैड मास्साब ने नंदलाल का हिंट दे रखा है…..राज को समझने के लिये हमने सोचना शुरू कर दिया कि नंदलाल आखिर पनघट पर ही क्यों छेडा छाडी को अंजाम दिया करते थे? छेडने के लिये तो और भी बहुत सारे ठिकाने रहे होंगे उनके पास..…फ़िर याद आया कि उस जमाने में फ़ेसबुक या कोई शोसल साईट्स तो थी नही कि नंदलाल सुरक्षित रूप से वहां छेडने का शौक पूरा कर लेते? आखिर छेडने के बादके परिणामों पर भी विचार करना पडता है. फ़ेसबुक पर छेड छाड करली तो ज्यादा से ज्यादा अनफ़्रेंड होते या ब्लाक कर दिये जाते... 
ताऊ डाट इनपरताऊ रामपुरिया  
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छेड़छाड़ से छेड़छाड़-  

ये तो ठीक बात नहीं है जी... 

हम हिन्दुतानी अति ज्ञानी...जिसकी भद्द न उतार दें बस कम जानिये. साधारण सा शब्द है ’खाना’...संज्ञा के हिसाब से देखो तो भोजन और क्रिया के हिसाब से देखो तो भोजन करना...मगर इस शब्द की किस किस तरह भद्द उतारी गई है जैसे कि माथा खाना, रुपया खाना, लातें खाना से लेकर अपने मूँह की खाना तक सब इसी में शामिल हो गया. ऐसे में जब आजकल की गर्मागरम चर्चा ’छेड़छाड़’ पर बात चली तो इसके भी अजीबो गरीब इस्तेमाल देखने को मिले. छेड़छाड़ यूँ तो अनादि काल से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है. कृष्ण जी की रासलीला, गोपियों के संग छेड़छाड़ के प्रसंग 
हम भक्ति भाव से हमेशा ही पढ़ते और सुनते आए हैं... 
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छेड़छाड़ का चरमानंद 

छेड़छाड़ शब्द भ्रष्टाचार मोहल्ले की गड़बड़ की बिरादरी का है,मतलब इधर-उधर की गली में रहने वाला कह सकते हैं, प्रथमदृष्टया पढ़ने पर लड़के द्वारा लड़की को छेड़ना ही दिमाग में आता है क्योंकि सबसे ज्यादा प्रचलन यानि प्रचार इसी के द्वारा हुआ,परंतु परेशान करने से ज्यादा हेरफेर होती है क्या इस शब्द से... जाँच का विषय हो सकता है ... हेरफेर को समझें जाँच से -यदि कोई व्यक्ति अपनी जाँच किसी पैथोलॉजी में करवाता है और उसके दिए नमूने से छेड़छाड़ हो गई तो समझो अच्छा खासा व्यक्ति भी केंसर का बीमार घोषित हो सकता है... 
अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    उत्तम चर्चा
    आभार
    सादर

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  2. चर्चा अच्छी आभार ! लेकिन सुनिए बारम्बार |
    छेड़ -छाड़ से आजिज गली -मुहल्ला सरकार ||
    विदेशों की तर्ज पर क़ानून बनेगा जब हमार |
    छेड़खानी करने वाले 'मंगल'तभी होंगे लाचार ||

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  3. सुन्दर चर्चा। आभार 'उलूक' की बकवास का जिक्र करने के लिये।

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  4. बढ़िया चर्चा. मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं

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