मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मेरी कलम
(राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
करती है मेरी कलम, जब कोई आगाज।
भरते हैं तब भाव भी, ऊंची सी परवाज ...
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विलोम के अतिरेक
सुंदर नहीं हो सकते हैं
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*डा. रश्मि रावत*
स्त्री को तो सदा से उसके मन को समझने वाला,
उसके क्रियाकलापों से साझा करने वाले
साथी की जरूरत रही है...
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575.
परवरिश
कहीं पथरीली कहीं कँटीली
यथार्थ की जमीन बंजर होती है
जहाँ ख्वाहिशों के फूल उगाना
न सहज होता है न सरल
परन्तु फूल उगाना लाजिमी है
और उसकी खूशबू का बसना भी,
यही जीवन का नियम है
और इसी में जीवन की सुन्दरता है।
वक्त आ चुका है
जब तुम अपनी ज़मीन पर
सपनों से सींचकर
ख्वाहिशों के फूल खिलाओ,
अपनी दुनिया सँवारो
और अपनी पहचान बनाओ...
डॉ. जेन्नी शबनम
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दरवाज़े
कई दरवाज़े हैं मेरे मन के अन्दर
जिन पर ताला तो है
पर उनकी चाबियाँ भी मेरे ही पास है
हर दरवाज़े को रोज़ खोल कर छोड़ देती हूँ
ताकि ताज़ी हवा जाती रहे...
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आज साहित्य अकादमी ने
वर्ष 2018 के लिए
बाल साहित्य पुरस्कार
और युवा पुरस्कारों की घोषणा
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अब छोड़ो भी पर Alaknanda Singh
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३१४.
महाराजा
वे महाराजा हैं,
वही करेंगे,
जो करना चाहेंगे,
इक्कीसवीं सदी के हैं,
इसलिए थोड़ा नाटक करेंगे,
जताएंगे कि वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं...
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हिन्दुस्थान
फिर गुलाम होने लगता है
ईसा से 350 साल पहले एलेक्जेन्डर पूछ रहा था कि हिन्दुस्थान क्या है? यहाँ के लोग क्या हैं? लेकिन नहीं समझ पाया! बाबर से लेकर औरंगजेब तक कोई भी हिन्दुस्थान को समझ नहीं पाए और अंग्रेज भी समझने में नाकामयाब रहे। शायद हम खुद भी नहीं समझ पा रहे हैं कि हमारे अन्दर क्या-क्या है! आप विदेश में चन्द दिन रहकर आइए, आपको वहाँ की मानसिकता समझ आ जाएगी – सीधी सी सोच है, वे खुद के लिये जीते हैं। प्रकृति जिस धारा में बह रही है, वे भी उसी धारा में बह रहे हैं...
smt. Ajit Gupta
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आखिर कब तक?....
श्वेता सिन्हा
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एक मासूम दरिंदगी का शिकार हुई
यह चंद पंक्तियों की ख़बर बन जाती है
हैवानियत पर अफ़सोस के कुछ लफ़्ज़
अख़बार की सुर्ख़ी होकर रह जाती है...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आपके आशीष का अति आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआपके परिश्रम को नमन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंये चर्चा भी पसंद आई शास्त्री जी।
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