मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जो बटोरा है सब खोना है
इसी एक बात का रोना है
खेल अलग-अलग चला
अब अंत एक-सा होना है...
Shyam Bihari Shyamal -
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बर्लिन से बब्बू को:
एक जिद का पूरी होना
बर्लिन से बब्बू को’ के बारे में मेरी यह बात तनिक लम्बी ही होगी। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि कृति के मुकाबले उसके निर्माण का ब्यौरा लम्बा हो जाता है। नाक पर नथनी भारी हो जाती है। कोई महत्वपूर्ण उल्लेख छूट न जाए इस भावना के अधीन अधिकाधिक जानकारियाँ, सन्दर्भ और नाम देने का मोह मैं छोड़ नहीं पा रहा हूँ। दादा श्री बालकवि बैरागी, सितम्बर 1976 में तत्कालीन पूर्वी जर्मनी की यात्रा पर गए थे। तब मैं मन्दसौर में, दैनिक ‘दशपुर दर्शन’ का सम्पादन कर रहा था। दादा की यह दूसरी विदेश यात्रा थी...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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विपक्ष में फूट डालने के लिए
अखिलेश यादव को
मोहरा बनाने की कोशिश
विजय राजबली माथुर
क्रांति स्वर पर विजय राज बली माथुर
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निस्तब्ध...
पुष्पा परजिया
निशब्द, निशांत, नीरव, अंधकार की निशा में
कुछ शब्द बनकर मन में आ जाए,
जब हृदय की इस सृष्टि पर
एक विहंगम दृष्टि कर जाए
भीगी पलकें लिए नैनों में रैना निकल जाए
विचार-पुष्प पल्लवित हो
मन को मगन कर जाए ...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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हवा ने दिन को सजा दिया है ...
ये दाव खुद पे लगा दिया है
तुम्हारे ख़त को जला दिया है
तुम्हारी यादों की ईंट चुन कर
मकान पक्का करा दिया है...
Digamber Naswa
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
ख़ूबसूरत चर्चा आज की ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए ...
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
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