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रविवार, फ़रवरी 17, 2019

"श्रद्धांजलि से आगे भी कुछ है करने के लिए" (चर्चा अंक-3250)

आइए रविवार की चर्चा प्रारम्भ करता हूँ!
 डॉ
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दोहे  

"धधक रही है आग"  

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श्वेत  

पलाश सा तू मुस्काना 

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जरूरी काम निपटाना  

बहुत जरूरी होता है  

श्रद्धाँजलि तो मरे को देनी होती है  

उसके लिये जिंदों के पास  

समय ही समय होता है 

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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तुमको परवाह नही.... 

प्रीती श्रीवास्तव 

मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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ओ, मेरे बंधु-बाँधवों, 

नहीं ,आँसू नहीं , आग है ! धधक उठा अंतस् रह-रह उठती लपटें , कराल क्रोध-जिह्वाएँ रक्तबीज-कुल का नाश, यही है संकल्प . बस ! शान्ति नहीं , चिर-शान्त करना है सारा भस्मासुरी राग. यह रोग , रोज़-रोज़ का चढ़ता बुख़ार ,यह विकार , मिटाना है जड़-मूल से . नहीं मिलेगी शान्ति, कहीं नहीं , जब तक एक भी कीटाणु शेष है... 
शिप्रा की लहरें पर प्रतिभा सक्सेना  
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सिर काटेंगे 

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शीर्षकहीन 

भारत की अगली सरकार,  
मजबूर सरकार  
अपने पिछले लेख “मतदातों से एक निवेदन-अगली सरकार मज़बूत सरकार” में मैंने आशंका व्यक्त की थी कि हमारा कोई पड़ोसी देश नहीं चाहेगा कि भारत एक शक्तिशाली देश बने. आज के ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में ‘ब्रह्मा चेलानी’ ने लिखा है कि नेपाल की राजनीति में चीन के हस्तक्षेप के कारण वहां ऐसी सरकार बनी जिसका झुकाव चीन के प्रति है. अपनी इस सफलता से उत्साहित हो कर अब चीन का लक्ष्य है कि अगले चुनाव के बाद भारत में एक मजबूर और बेढंगी (weak and unwieldy government) सरकार बने. चीन भारत की राजनीति और चुनावी प्रणाली में दखल करना चाहता है... 
i b arora  
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होना से ज्यादा दिखना 

विजय गौड़ 
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व्यस्त रहें, मस्त रहें ! 

वैसे तो मनुष्य की आदत है अपने भूतकाल को गौरवान्वित करने की ! पर जब इंसान, खासकर सेवा-निवृत्त हुआ, कुछ नहीं करता होता है यानि बेल्ला होता है; और बैठे-बैठे अपने अतीत को खंगालने लगता है तो उस समय खुशनुमा बातें तो कम, बुरी यादें, नाकामियां, आधे-अधूरे प्रसंग,  कष्ट, अभाव व तकलीफ में गुज़रे लम्हों की जैसे फ़िल्मी रील सी चलने लगती है या फिर अनिश्चित भविष्य के खतरे, निर्मूल आशकाएं या अनहोनी घटनाओं का डर उसे घेर लेता है। इस नकारात्मक सोच का दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। जिससे वह अपने को बीमार सा महसूस करने लगता है। इसलिए इंसान को चाहिए कि वह अपने-आप को सदा व्यस्त तथा किसी भी काम में उलझाए रखे।... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा  
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Modi तुम pulwama पर War करो,  

हम पीछे से टांग खींचेंगे,  

ये India नहीं छोड... 

Barun sakhajee   
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पुलवामा हमला:  

सिर्फ़ सोशल मीडिया पर  

श्रद्धांजलि देने से  

हमारा कर्तव्य पूरा नहीं होगा!! 

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पुलवामा से 

सूरज का माथा चूमने वाले प्रकाश चक्र थे वे  
धरती को मां कहने वाले सुरक्षा बीज थे वे... 
Jyoti Khare 
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आखिर कब तक 

Akanksha पर Asha Saxena 
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नमन वीरों .... 

सिसकी धरा
अनवरत बरसा
कुंठित मन

ध्वज थामे थे
उन्नत हो मस्तक
वीरों नमन... 

झरोख़ा पर 
निवेदिता श्रीवास्तव  

5 टिप्‍पणियां:

  1. भाषण तक सीमित ने हों, भीषण-भाषणवीर।
    जन-गण अब यह चाहता, नेता हों प्रणवीर।।
    निश्चित ही चहुंओर यही सवाल है। हमारे यूपी के एक शहीद के पिता ने सरकार से यही पूछा था कि हम अपने जिगर के टुकड़े को माँ भारती की रक्षा के लिये लड़ कर और शत्रुओं को मार कर वीरगति प्राप्त करने के लियें भेजते हैं।
    बिना लड़े मरने को नहीं।

    सभी को प्रणाम। मंच पर पथिक को स्थान देने के लिये शास्त्री सर आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. श्रद्धाँजलि वीरों के लिये बस मौन के सिवा कुछ नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  4. नमन वीर शहीदों को
    विनम्र श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  5. भारत माँ को सच्ची श्रद्धाञ्जलि उसकी धरती में उग आए काँटों के उन्मूलन से ही दी जा सकती है.

    जवाब देंहटाएं

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