मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
|
दोहागीत"समय का चक्र"
समय-समय की बात है, समय-समय का फेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
समय पड़े पर गधे को, बाप बनाते लोग।
समय बनाता सब जगह, कुछ संयोग-वियोग।।
समय न करता है दया, जब अपनी पर आय।
ज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल चटाय।।
समय अगर अनुकूल है, कायर लगते शेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर...
|
"बूढ़ा बरगद जिन्दा है..."
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अभी गाँव के देवालय में बूढ़ा बरगद जिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
|
क्यूँ नहीं जाता ?
यादों में बस गया है
वह दूर नहीं जाता तन्हाइयों में आकर मुझे रोज सताता यादों से है उसका इतना गहरा नाता...
Akanksha पर Asha Saxena
|
जन्नत लहूलुहान
घाटी में षड्यंत्र से, दहला हिंदुस्तान
सहमे पेड़ चिनार के, जन्नत लहूलुहान...
Himkar Shyam
|
इक ख़्वाब जरुरी है *खूबसूरती देखने के लिये , वो आँख जरूरी है * *दिल तक उतरने के लिये ,इक आब जरुरी है |
उसका करार भी खो गया
अनुबंध था उत्कर्ष का
सम्बन्ध था दुःख-हर्ष का
व्यापार था खुदगर्ज का
उसका करार भी खो गया...
|
३४७.यमराज से विनती
यमराज, इतनी जल्दी आ गए!
अभी तो लिखनी हैं मुझे बहुत सारी कविताएं,
इंतज़ार में हैं मेरे पाठक, उनका दिल मत दुखाओ...
|
माँ गयी तो
जवाब देंहटाएंजीवन के रंगमंच पर भी कभी नहीं आयी
मुझको और उदास करने के लिये
आती है तो केवल सपने में
सुंदर रचना एवं चर्चाओं से भरा मंच।
प्रणाम।
कार्टून को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका विनम्र आभार जी
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स का बेहतरीन समायोजन।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
सादर
सुन्दर चर्चा। लगा रविकर जी आ गये फिर से ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। शीराज़ा के लिंक के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं