मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
--
--
--
--
--
--
--
केसरी फूल पलाश...
श्वेता सिन्हा
पिघल रही सर्दियाँ
झरते वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी चहुँओर
चटख रंग उतरे घर आँगन
उमंग की चली फागुनी बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
--
दादी का वसंत
हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो
सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने
वाले लागों के जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते
कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी
के लिए पर्याप्त जगह निकल आती है। बचपन में जब खेल-खेल में पेड़-पौधे लगाकर
खुश हो लेते थे, तब उनके महत्व की समझ नहीं थी। अब जब पर्यावरण के लिए
पेड़-पौधे कितने महत्व के हैं, इसकी समझ विकसित हुई तो उन्हें कटते-घटते देख
मन बड़ा विचलित हो उठता है...
--
--
--
--
--
--
--
--
चिर बसंत फिर घर आये
चिर बसंत फिर घर आये
था सूना ये मन का आंगन
उपहार प्यार का भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...... BHARTI DAS
था सूना ये मन का आंगन
उपहार प्यार का भर लाये
चिर बसंत फिर घर आये...... BHARTI DAS
--
वासंतिक रंग ,जीवन में उमंग आने दो उस पतझड़ को तब देखा जाएगा ..?
जवाब देंहटाएंसभी को सुबह का प्रणाम।
सुंदर मंच और अनेक रचनाएँ।
सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंशानदार प्रतुति,बसंत के सारे रंग निखर आये हैं।
मुझे भी स्थान देने के लिए आभार
सुप्रभात मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट चर्चा में शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आदरणीय
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार सर, चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए.
जवाब देंहटाएं