मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
--
--
--
--
--
--
--
--
तारे न तुम आना ज़मीं पर,
तारे न तुम आना ज़मीं पर,
यहाँ बहुत दुश्वारियां हैं।
कदम कदम पर धोखे हैं,
कदम कदम पर मक्कारियां हैं।
यह मतलब की दुनियाँ हैं,
बिना मतलब कोई नहीं जानता...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
--
--
अंधी गली
अपनी निगाहों मे छुपा कर
आँसुओ का ताला लगाया था
सोचा था अब तुम्हें
कोई देख नहीं पायेगा...
कलम कवि की पर
Rajeev Sharma
--
कुछ तो हवा सर्द थी....
रवीन शाकिर
--
पापा
तुम जहाँ भी हो,
मेरा दिल कहता है,
तुम यहाँ भी हो।
मुश्किलों की गर्मी में,
मेरे आंसूं सुखाने वाली,
ठंडी हवा भी हो...
Anjana Dayal de Prewitt
किस जन्म किया ये महापाप ?
जवाब देंहटाएंशीतल होकर भी सहा चिर संताप ;
दूर सभी अपनों से रह..
रेणु दी की इस रचना को बार बार पढ़ने की इच्छा हो रही है। सच तो यही है कि नियति कभी किसी सवाल का जवाब नहीं देती है।
हर प्राणी को स्वयं उसके अनुसार ढलना होता है। हँस कर या रोकर। मिट कर या कर्मपथ पर चलते हूँ।
विचारों और विभिन्न पठनीय सामग्रियों से भरे इस मंच पर मेरी यादों को स्थान देने के लिये धन्यवाद शास्त्री सर।
सभी को सुबह का प्रणाम।
am
जवाब देंहटाएंतमाम ब्लाॅगर के लिए आवश्यक सूचना:
अवगत होः कि G+ जल्द ही समाप्त हो रहा है।
अतः आप G+ Comments को अविलम्ब अलविदा कहें और Blogger comments active कर लें ताकि हम सभी ब्लागर आपस में जुड़ सकें तथा आपके ब्लाॅग के comments भी भविष्य के लिए सुरक्षित रहे।
शुक्रिया
हमेशा की तरह सुन्दर प्रस्तुति । अनेकों शुभकामनाएं आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात \उम्दा लिंक्स|मेरी रचना शामिल करने के लिये धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति |बेहतरीन रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसादर
tahe dil se abhar sunder charcha
जवाब देंहटाएंजन्मदिन पर शुभकामनाएं यशोदा जी और आदरणीय रूप चंद्र शास्त्री जी के लिये। सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.मेरी रचना शामिल करने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संकलन। रोचक चर्चा। आभार
जवाब देंहटाएं