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शुक्रवार, मई 10, 2019

"कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331)

मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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प्रतीक्षा 


बैशाख की बेचैन दुपहरी
दग्ध धरा की अकुलाहट,
सुनसान सड़कों पर
चिलचिलाती धूप
बरगद के पत्तों से छनकती
चितकबरी-सी... 
Sweta sinha  
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वही पगडंडियाँ 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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पीछे -  

गोपालदास "नीरज" 

Image result for तुम चांद बनके
गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको 

चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..
वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन 

क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे... 
काव्य-धरा पर रवीन्द्र भारद्वाज  
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उनको शिकायत है 

उनको शिकायत है रितु और नीलांश का अभी हाल ही में विवाह हुआ है और वह भी प्रेम विवाह लेकिन माता पिता की मर्ज़ी से ,जहाँ प्यार होता है वहां एक दूसरे से गिले ,शिकवे और शिकायत तो होती ही रहती है ,आजकल यही कुछ उन दोनों के साथ भी हो रहा है ,हर सुबह शुरू होती है प्यार की मीठी तकरार से और हर रात गुजरती है ढेरों गिले, शिकवे और शिकायते लिए हुए ,यही अदायें तो जिंदगी को रंगीन बनाती है पहले रूठना और फिर मनाना ,मान कर फिर रूठ जाना l *य*ह रूठने और मनाने का सिलसिला जब तक यूं ही चलता रहे तो समझ लो... 
Ocean of Bliss पर 
Rekha Joshi  
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यह ब्लेकमेलिंग नहीं तो क्या है? 

खुले आम हो रही है ब्लेकमेलिंग, सबसे ज्यादा मीडिया कर रहा है ब्लेकमेलिंग। कई दिन पुराना साक्षात्कार कल सुना, मीडिया की एक पत्रकार मोदीजी से प्रश्न करती है कि आपने मुस्लिमों के लिये क्या किया, क्यों आपसे मुस्लिम दूरी बनाकर रखते हैं? मोदीजी ने उत्तर दिया – एक घटना बताता हूँ जब मैं मुख्यमंत्री था – सच्चर कमेटी के बारे में मीटिंग थी। मुझसे यही प्रश्न पूछा गया। मैंने कहा कि मैंने मुस्लिमों के लिये कुछ नहीं किया, लेकिन साथ में यह भी बता देता हूँ कि मैंने हिन्दुओं के लिये भी कुछ नहीं किया। मैंने गुजरात के 5 करोड़ नागरिकों के लिये किया है... 
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स्ट्रीट फूड -  

कहानी भाग तीन 

एक दिन मिड्डे-मील थोड़ा देरी से आया। स्कूल में सभी बच्चे अपने बर्तन लेकर यहां से वहां घुम रहे थे। स्कूल में आधे से ज्यादा बच्चे तो इसलिये आधी छुट्टी के बाद टिकते थे क्योंकि खाने को खाना मिलता था। स्कूल का बड़ा गेट खोला गया। एक सफेद रंग का आटो रिक्सा अंदर दाखिल हुआ। सभी बच्चे लाइन लगाकर खड़े हो गये। खाना बांटने वाले टीचर भी आ गये। आटो का दरवाजा खुला और बच्चों में खुद होने की चहलकदमी दिखने लगी। बड़े - बड़े बर्तनों को नीचे रखा गया। जैसे ही उसका ढक्कन खोला गया तो उसमें से गर्म महक बाहर निकली... 
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पथिक ! मैंने क्यों बटोरे 

पथिक ! मैंने क्यों बटोरे -  
नेह भरे वो पल तुम्हारे ?  
यतन कर - कर के हारी ,  
गए ना जो मन से बिसारे ... 
क्षितिज पर रेणु  

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम सर,
    सुंदर औरर पठनीय रचनाएँ है सभी। बहुत अच्छा लिंक संयोजन, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से अति आभारी हूँ सर।
    सादर शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर लिंक्स के साथ शानदार चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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