स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
पोशाक अर्थात वस्त्र, वसन, परिधान, पहनने के कपड़े, पैरहन,
लिबास, ड्रेस आदि-आदि का किसी भी सभ्यता में विशेष महत्त्व है। शरीर को सलीके से आवृत करने वाले वस्त्र समाज को सहर्ष स्वीकार होते हैं। कालांतर में वस्त्र तरह-तरह की बनावट में तैयार होने लगे और लोगों को लुभाने लगे किंतु समाज ने अपने नज़रिये को वस्त्रों के पहनावे के ढंग से जोड़ दिया। वस्त्र डिज़ाइन की आधुनिक शैली में भारतीय समाज अभी पूरी तरह ढला नहीं हैं। पीढ़ी-अंतराल के चलते आज भी अनेकानेक अंतरविरोध विविध घटनाओं के माध्यम से हमारे समक्ष आते रहते हैं।
बकौल बालकवि बैरागी-
उनकी माँ ने उन्हें ओढ़नी और आँचल का अंतर बताते हुए कहा था-
"आँचल वो होता है जिसमें ममत्त्व और वात्सल्य दोनों लिपटे होते हैं।"
-अनीता सैनी
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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आलेख
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
पोशाक अर्थात वस्त्र, वसन, परिधान, पहनने के कपड़े, पैरहन,
लिबास, ड्रेस आदि-आदि का किसी भी सभ्यता में विशेष महत्त्व है। शरीर को सलीके से आवृत करने वाले वस्त्र समाज को सहर्ष स्वीकार होते हैं। कालांतर में वस्त्र तरह-तरह की बनावट में तैयार होने लगे और लोगों को लुभाने लगे किंतु समाज ने अपने नज़रिये को वस्त्रों के पहनावे के ढंग से जोड़ दिया। वस्त्र डिज़ाइन की आधुनिक शैली में भारतीय समाज अभी पूरी तरह ढला नहीं हैं। पीढ़ी-अंतराल के चलते आज भी अनेकानेक अंतरविरोध विविध घटनाओं के माध्यम से हमारे समक्ष आते रहते हैं।
बकौल बालकवि बैरागी-
उनकी माँ ने उन्हें ओढ़नी और आँचल का अंतर बताते हुए कहा था-
"आँचल वो होता है जिसमें ममत्त्व और वात्सल्य दोनों लिपटे होते हैं।"
-अनीता सैनी
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आलेख
"छन्दों के विषय में जानकारी"
अक्सर यह देखा है कि सही जानकारी के अभाव में बहुत से लोग अपनी
रचना में अपने मन से छन्द का नामकरण कर देते हैं।
इसलिए आज प्रस्तुत आपके सम्मुख प्रस्तुत है छन्दों के विषय में दुर्लभ जानकारी।
जो व्यक्ति छन्दबद्ध रचना करते हैं। शायद उनके लिए यह आलेख उपयोगी होगा...
अक्सर यह देखा है कि सही जानकारी के अभाव में बहुत से लोग अपनी
रचना में अपने मन से छन्द का नामकरण कर देते हैं।
इसलिए आज प्रस्तुत आपके सम्मुख प्रस्तुत है छन्दों के विषय में दुर्लभ जानकारी।
जो व्यक्ति छन्दबद्ध रचना करते हैं। शायद उनके लिए यह आलेख उपयोगी होगा...
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यह तो समय तय करेगा
तुमने किसी को
ऊपर उठाया है
या रचीं थीं साज़िशें
किसी को गिराने की
इंतज़ार करो यह तो समय तय करेगा।
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ऊपर उठाया है
या रचीं थीं साज़िशें
किसी को गिराने की
इंतज़ार करो यह तो समय तय करेगा।
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समीप के देवी मंदिर में कोलाहल मचा हुआ था।
मुहल्ले की सुहागिन महिलाएँ पौ फटते ही पूजा का थाल सजाये
घरों से निकल पड़ी थीं।
उनके पीछे- पीछे बच्चे भी दौड़ पड़े थे।
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अरसे बाद सब घर में हैं,
मुस्कराती रहती है माँ,
सबको लगता है,
बिल्कुल ठीक है वह,
सबको लगता है,
बीमार नहीं है माँ
अभी कुछ नहीं होगा माँ को.
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प्रेयसी बनना चाहती है वो
पर बिना पहले मिलन
प्रेम सम्भव ही कहाँ,
सुलझाते हुए अपने बालों की लटें
उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की
जो उसका राजकुमार लाएगा
जूड़े में लगाने को
जीवनसाथी...जिंदगी सारे रिश्ते हमे जन्म से मिलते है,
सफर के एक मोड़ पर हम इक रिश्ता अपने लिए चुनते है,
या यूं कहें कि पहले से बने होते है ये रिश्ते...इक ऐसा
रिश्ता जो बहुत दूर होकर भी सबसे करीब हो जाता है...
जिंदगी का सबसे जरूरी और सबसे खास रिश्ता होता है...
हमारा जीवनसाथी...
जिसके ख्याल भर से ना जाने कितने ख्वाब सज जाते है
12 वर्ष तक का उम्र बाल्यावस्था का होता है।
बच्चे मन से बहुत कोमल और भावुक होते हैं।
उनके अंतर्मन में कोई बात गहराई तक छू जाती है।
इसलिए बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास में
चंद्रमा का अधिक प्रभाव देखा जाता है।
नमस्ते मित्रों ..
आजकल' कोरोना 'की वजह से सभी अपने -अपने घरों में है ।
यह अच्छी बात है कि घर का पुरुष वर्ग भी
दैनिक कार्य जैसे झाडू -पोछा ,बर्तन आदि आदि
(मैं इसे मदद का नाम नहीं दूँगी )कर रहे हैं
छोटी _छोटी बातें बन जाती जब यादें
शबनमी बूँदी बन पन्नों पर बिखरती यादें!
नीले नीले अम्बर, तारों की छाँओं में तब--
लुका छुपी दिल में खेला करती मधुरिम यादें!
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जग दे तुम्हें सम्मान प्रभु ने
क्या न कर डाला.....
जप में श्याम से पूर्व राधे
नाम रख डाला....
पनिहारिन बने मिलते वे
मटकी फोड़ कहलाये....
रचने रास राधे संग जमुना
तीर वो आये.....
फिर हर कलाकृति में यहाँ
हैं श्याम ज्यादा क्यों.....?
जिस बिन अधूरा श्याम जप
चरणों में राधा क्यों....?
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सुन्दर चर्चा. मेरी प्रस्तुति को शामिल करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भूमिका और प्रस्तुति अनीता बहन।
जवाब देंहटाएंसुबह - सुबह माँ के आँचल की याद आ गयी।
वस्त्र तो वही है जो स्वयं के तन को ही नहीं औरों के मन को भी बाँध ले।
मेरे सृजन नौकरानी को मंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार। सभी को प्रणाम।
शब्द - सृजन में संबंधित विषय पर कबतक रचना देनी है ?
जवाब देंहटाएंसुप्रभात शशि भाई 🙏. आप आज शाम 5pm तक कोई भी देश प्रेम की कविता या कोई कहानी भेज दीजिये.
हटाएंसादर
हटाएंआज दिनांक 04-04-2020 को शाम 5 बजे तक।
जी आभार
हटाएंलिखा हूँ
हटाएंबुधुआ की हिमाक़त पोस्ट कर रहा हूँ।
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी आपका आभार।
आपकी निष्ठा और श्रम को नमन।
ओढ़नी और आँचल के फर्क को बाखूबी समझाया हैं ,बदलते वक़्त में तो ना ओढ़नी रहा ना आँचल। सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंको का चयन अनीता जी सभी को ढेरों शुभकामनाएँ ,स्वस्थ रहे प्रसन्न रहे ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएँ 👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह!प्रिय सखी ,अनीता जी ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत -बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रिय अनिता जी हमारी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक धन्य वाद आपको
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति अनीता जी । सभी लिंक्स बेहतरीन और लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंको का संयोजन....
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका।