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शनिवार, अप्रैल 11, 2020

'दायित्व' (चर्चा अंक-3668)

स्नेहिल अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 
दायित्वबोध जीवन में तब और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब समूची विश्व बिरादरी किसी अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही हो. संकटकाल में भी विभिन्न देश अपनी आंतरिक समस्याओं से घिरे होते हैं तब नागरिकों का दायित्वबोध ही एकजुटता के साथ उनका मुक़ाबला करने के लिए प्रेरित करता है। 
हमारे देश में भी इस समय दोषारोपण का अनावश्यक दौर चल रहा है जो चिंताजनक है. महामारी से लड़ने के लिए सामाजिक एकता ज़रूरी है न कि समस्या से मुँह मोड़कर किसी विशेष लक्ष्य पर कीचड़ उछालना। 
हम अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे तभी सफलतापूर्वक देश को आगे ले जाने में मददगार होंगे। 
-अनीता सैनी 
दायित्व पर आदरणीया श्वेता दीदी की ये पंक्तियाँ ग़ौरतलब हैं -
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सुरक्षा घेरा बनाते
अपने प्राण हथेलियों पर लिये
मानवता के
साँसों को बाँधने का यत्न करते
जीवन पुंजों के सजग प्रहरियों को
कुछ और न सही
स्नेह,सम्मान और सहयोग देकर
इन चिकित्सक योद्धाओं का
मनोबल दृढ़ करना
प्रत्येक नागरिक का
दायित्व होना चाहिए।

आइए अब पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग पर मेरी पसंद की सद्य प्रकाशित रचनाएँ-
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घर-परिवार 
मृत्यु से साक्षात्कार कर रहे हैं 
अस्पतालों के असुरक्षित रणभूमि में 
मानव जाति के प्राणों को 
सुरक्षित रखने के लिए संघर्षरत   
अनमयस्क भयभीत 
क्षुद्र मानसिकता 
मूढ़ मनुष्यों के तिरस्कार, 
खूब रंगो 
अंतर्मन रंगो 
सकल भुवन रंगो 
कोरी चूनर रंगो 
काग़ज़ रंगो 
स्वप्न रंगो 
बोल रंगो 
सुर रंगो
ताल रंगो 
अपनी पहचान रंगो
जितना जी चाहे रंगो 
खूब रंगो ! 
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खड़े हो  गिनती थी एक , दो , तीन , .., ...., ये बात कभी तुम से साझा नहीं कर पाई अब जब देखती हूँ  किसी पहाड़ी की बुर्ज पर कोई मंदिर उसे  देख कर ..वो बात और…, तुम्हारी बहुत याद आती है माँ !! **
प्रेम 

कई बार तुम्हें
सपनों में आवाज़ लगायी
धुंध में ढूंढने की कोशिश की
अपनी खुली बाँहों में
संभालना चाहा 
तनहाइयों में भी 
तुम्हें अपने साथ पाया 
**
वैरागी 
My Photo
मनुष्यत्व को छोड़ 
देवत्व को पाना ही 
क्या वैरागी कहलाना । 
पंच तत्व निर्मित तन 
पंच शत्रुओं से घिरा 
 जग के प्रपंच में लीन 
इस पर विजय 
संभव कहाँ! 
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मधुमास : नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

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समय की मांग 
My Photo
ये मेरे दिले नादान तू गम से न घबराना ...
मालिक ने तुझे दी है ये जिंदगी जीने को ,
तूफान में  रहने दे तू अपने सफीने को ,
जब वक़्त इशारा दे साहिल पे पहुंच जाना ,
ये मेरे दिले नादान तू गम से न घबराना ।
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नज़रिया 


"एक चोर, एक पियक्कड़ और एक अकर्मण्य  
लेकिन एक अत्यंत बढ़िया आदमी।" 
एक सत्रह वर्षीया लड़की ने अपने मित्र का परिचय  
गोर्की से इन शब्दों में कराया। 
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कोरोना और भारत का समाजशास्त्र - 
My Photo
मेरा यह मानना है कि इस प्रकृति का प्रत्येक घटक अपने व्यवहार में
 अपने  उस सम्पूर्ण के व्यवहार से अलग नहीं होता जिसका वह अंश होता है।
 यह एक ऐसा सार्वभौमिक तथ्य है जो भौतिक से लेकर परा-भौतिक,
 सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होता है - 
 “‘आत्मा- परमात्मा’, ‘अणु – परमाणु – पदार्थ’, ‘कोशिका – उत्तक – अंग – शरीर’।“
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नवगीत : आक्रोशित हिय : संजय कौशिक 'विज्ञात' 

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लॉकडाउन। 

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शब्द-सृजन-16 का विषय है :-
'सैनिक' आप इस विषय पर अपनी रचना आगामी शनिवार (सायं 5 बजे ) तक  चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये  भेज सकते हैं।  चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में  प्रकाशित की जाएँगीं। **  आज का सफ़र यहीं तक  कल फिर मिलेंगे।  ** अनीता सैनी

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति। एक से बढ़कर एक सरस,पठनीय रचनाओं का कौशलपूर्ण चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    दायित्व पर विचारोत्तेजक विचारणीय भूमिका के साथ प्रस्तुति का आरंभ।



    जवाब देंहटाएं
  2. समसामयिक विचारोत्तेजक भूमिका में निहित संदेश मातृभूमि में अपने अधिकारों के प्रति सजग नागरिक को उनके कर्तव्य का बोध कराना है।
    हम अपना नागरिक धर्म याद रखें आज यही आवश्यक है।

    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मेरी लिखी पंक्तियों को मान देने के लिए मेरी रचना को इस सुंदर चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार अनु।
    सस्नेह शुक्रिया।


    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर और सशक्त समसामयिक भूमिका के साथ बेहतरीन
    प्रस्तुति. सभी चयनित रचनाएँ लाजवाब. चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी .

    जवाब देंहटाएं
  4. समसामायिक भुमिका के साथ बहुत सुंदर चर्चा अंक।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर भूमीिका के साथ उपयोगी लिंकों की चर्चा।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन में दायित्वबोध को समझती सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंको का चयन अनीता जी
    अनावश्यक दोषारोपण करने का समय नहीं हैं ये समय आत्ममंथन का हैं। राष्टहित में उठाया गया छोटा कदम " सिर्फ घर में रहना " देश को बड़ी मुसीबत से बचा सकता हैं। सादर नमन सभी को

    जवाब देंहटाएं
  7. शानदार प्रस्तुति अनिता जी ,सभी साथियों को उनकी उत्तम रचना के लिए बधाई ,अनिता जी आपकी दिल से आभारी हूँ ,नमस्कार

    जवाब देंहटाएं

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