स्नेहिल अभिवादन।
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चर्चामंच की शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है-
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'पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं।" यह जुमला हमने ख़ूब पढ़ा और सुना है। कोई भी पुस्तक तभी सार्थक और उपयोगी हो सकती जब उसमें समाहित पठन सामग्री व्यक्ति,परिवार, समाज, देश और दुनिया के लिए उन्नति और निर्माण का दूरदृष्टियुक्त मार्ग सुझाती हो, जीवन मूल्यों, सिद्धांतों, अवधारणाओं की स्थापना में मददगार हो, रसमयता के साथ संवेदना का स्वर बुलंद करती हो।
पुस्तकें मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा बनी रहेंगीं।
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग से चुनी गईं मेरी पसंद की रचनाएँ-
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दोहे-विश्व पुस्तक दिवस
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चर्चामंच की शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है-
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'पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं।" यह जुमला हमने ख़ूब पढ़ा और सुना है। कोई भी पुस्तक तभी सार्थक और उपयोगी हो सकती जब उसमें समाहित पठन सामग्री व्यक्ति,परिवार, समाज, देश और दुनिया के लिए उन्नति और निर्माण का दूरदृष्टियुक्त मार्ग सुझाती हो, जीवन मूल्यों, सिद्धांतों, अवधारणाओं की स्थापना में मददगार हो, रसमयता के साथ संवेदना का स्वर बुलंद करती हो।
पुस्तकें मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा बनी रहेंगीं।
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग से चुनी गईं मेरी पसंद की रचनाएँ-
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दोहे-विश्व पुस्तक दिवस
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आज इक शख्स मुझे ख्वाब दिखाने आया
आज इक शख़्स मुझे ख़्वाब दिखाने आया,
चाँद उतरा है ज़मी पर ये बताने आया ।
बेपनाह आंखों में अश्कों का सफ़ऱ रख बाकी ,
आज ख़त उसके मैं छत पे था जलाने आया ।
आज इक शख़्स मुझे ख़्वाब दिखाने आया,
चाँद उतरा है ज़मी पर ये बताने आया ।
बेपनाह आंखों में अश्कों का सफ़ऱ रख बाकी ,
आज ख़त उसके मैं छत पे था जलाने आया ।
‘‘है यहाँ तिमिर, आगे भी ऐसा ही तम है,
तुम नील कुसुम के लिए कहाँ तक जाओगे ?
जो गया, आज तक नहीं कभी वह लौट सका,
नादान मर्द ! क्यों अपनी जान गँवाओगे ?
समुद्र के बारे में यह ध्रुव सत्य है
कि वह कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघता !
पर मुंबई ने उसके क्षेत्र में दखल दिया है
शायद इसी लिए अक्सर
यह इलाका उसके कोप का भाजन बनता रहा !
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बचपन में जब लिखना सीख रही थी
स्लेट पर बत्ती से जाने क्या-क्या
उल्टा सीधा लिखती थी
फिर उन विचित्र अक्षरों और
टेढ़ी मेढ़ी आकृतियों को देख
खूब जी खोल कर हँसती थी !
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नंगी दीवारें
' आना ही पड़ेगा
' वह ढीठ होकर कुर्सी पर बैठ गया |
यहाँ नहीं आना चाहिए तुम्हें |
' उन्होंने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा दीं
' डर लगता है !
वे कुछ नहीं कहते |
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जब आप लोगों ने भी इतनी बडी डील के बारे मे सुना होगा
तो एक बारी आपके मस्तिष्क मे भी ये सवाल जरूर उठा होगा
कि मुकरू के प्रोडक्ट्स मे जुकरु भाई को ऐसा क्या दिखा होगा
जो इतनी बडी डील कर डाली?
कुछ ने तो यह भी सोचा होगा कि बडा भोला है, जुकरु तो।
पृथ्वी को चोट पहुँचाने वाली हर त्रासदी की वजह एक आह बनी।
आह जिस किसी भी जीव के भीतर से निकली,
उसका असर उतना ही भयावह रहा जितना एक बदले की भावना का होता है।
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"इत्तेफ़ाक़"
घने हरे पेड़ों की बीच
न जाने क्यों ?
एक अकेला वही
सूखा क्यों है ?
अपने कमरे की
खिड़की से देखते हुए…
अक्सर सोचती हूँ
रोज साँझ के वक्त एक कौआ
कुछ वादों को,
सरकारी नल से
पी लिया था जी भर …
आज सुबह ही ओक से
किया था जब दातून ..
घर का राशन खत्म और हालात बदतर होते देख वह बहुत चिन्तित था ।
अब पति-पत्नी बचे-खुचे राशन से थोड़ा सा भोजन
बच्चे को खिलाते स्वयं पानी पीकर रह जाते,
दो दिन और निकले कि घर में फाका पड़ने लगा।
बच्चे को खिलाते स्वयं पानी पीकर रह जाते,
दो दिन और निकले कि घर में फाका पड़ने लगा।
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शब्द-सृजन-१८ का विषय है :-
'किनारा'
आप इस विषय पर अपनी रचना
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे ) तक
चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
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अनीता सैनी
वाह!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
पुस्तक पर विचारणीय भूमिका से प्रस्तुति का आग़ाज़।
समकालीन विषयों पर चिंतन को प्राथमिकता देती रचनाएँ।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सार्थक भूमिका के साथ उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार आपका अनीता सैनी जी।
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प्रिय पाठकों शुभ प्रभात आपको।
आपका आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्र, सुन्दर चर्चा ! मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक प्रस्तावना के साथ बेहतरीन लिंक्स संयोजन ।
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति में मेरी रचना को शामिल करने के लिए
हृदयतल से आभार अनीता जी !
पुस्तक पर सुंदर विचार और बेहतरीन लिंको से सजी प्रस्तुति अनीता जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,
जवाब देंहटाएंसम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक शानदार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार अनीता जी !
बहुत सुन्दर सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब चर्चा मंच सभी रचनाएं बेहद उत्कृष्ट एवं उम्दा..।
जवाब देंहटाएंमेरी लघुकथा बेबसी को सम्मिलित करने हेतु अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
पठनीय सामग्री
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की सभी शामिल रचनाएं अपने अलग अलग विषय के साथ साथ मजेदार हे
सुंदर और प्रभावी चर्चा । अच्छी रचनाओँ का समागम अनीता जी । मेरी ग़ज़ल को सम्मिलित करने हेतु शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही शानदार रहा लिंको का ये सफर ।मेरी रचनाओं को स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक भूमिका सुंदर लिंक चयन ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
बेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति आभार आपका ...
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