स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
5 अप्रैल रात्रि नौ बजे, मात्र नौ मिनट के लिए, सिर्फ एक दीप
प्रज्वलित कर.... दीपयज्ञ आयोजन करने का
आवाहन किया गया था ...
सम्पूर्ण देशवासियों के स्वस्थ,सुरक्षा और शांति के कामना के साथ..
सभी को एकता के एक सूत्र में पिरोने के लिए.....
एक प्रयास था....प्रार्थना की सकारात्मक ऊर्जा को वातावरण
के कण- कण में समाहित करने का ......
प्रत्येक हृदय में शांति ,निर्भयता और सहयोग की
भावना का बीजारोपन करने का....
उन सभी महावीरों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का,
जो मानवता के सेवा में दिन रात जुटे हैं......
जो मानवता के सेवा में दिन रात जुटे हैं......
जो इस महामारी में हमें छोड़कर चले गए, उनको श्र्द्धांजलि देने का ...
मगर कुछ गैरजिम्मेदार लोगो ने एक से ज्यादा दीपक
और पटाखें जलाकर इस
आयोजन के मुलभुत तत्व को नष्ट करने का प्रयास किया....
मगर... क्या फर्क पड़ता हैं.....
हमेशा से अच्छाई और बुराई के बीच जंग चलता रहा हैं....
और चलता रहेंगा.... पर जीत हमेशा अच्छाई की ही हुई हैं
और होती रहेंगी... ये भी शाश्वत सत्य हैं....
खैर ,आइए चलते हैं आज की रचनाओं की ओर..
जो शायद थोड़ा मानसिक सुकून दे सकें ...
*****
प्रकाशन
"गोबर लिपे हुए घर"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
महक लुटाते कानन पावन नहीं रहे
गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे
कुछ अंधे भी नाराज हो गए।
एक दीप जला दिया था,
कल अंधेरे में!
बहरों ने भी
कोसा मुझे,
मन भर।
*****
दीपक की लौ......
पलास के बिखरे पुष्पों
की तरह धरा को आल्हादित
कर रही थी ......
आसमा से देव शक्तियां भी
ये मनमोहक नज़ारा
देख आशीषों की वर्षा कर
नकारात्मकता से मानव मन को
विचलित नहीं होने का संदेश
दे रहीं थीं......
अपनी बालकनी में मैंने
उम्मीद का एक दिया जलाया,
क्रूर हवाएँ रातभर चलती रहीं,
दिए की लौ लड़खड़ाती रही,
लगा अब बुझी,अब बुझी.
*****
आस्था का दीया
बुझने मत देना
ख़ुद के प्रति !
*****
बात है राष्ट्र एकजुटता की
बात है भारत पुष्ठता की
देश हेतु ज्योति फैलाऊंगा
हाँ मैं दीपक जलाऊंगा
*****
इक ही हो संकल्प हृदय में
एक भावना हर अंतर में,
दीप जलाकर भरें उजाला
घर-घर के दर पर भारत में !
*****
हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।
जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।
वक्त भी उसकी रहमत करेगी जो खुद डरे,
वरना कायामत को आये कोरोना को पूरा मानता हूँ ।
*****
उम्मीद
मन मे रख उम्मीद तू, जीने की रख आस।
कोरोना का खौफ़ भी, न आए कभी पास।।
रखते जो उम्मीद हैं, जीवन में सब रंग।
मन से जो हारा यहाँ, कब जीता वह जंग।।
*****
और चलते चलते - राधा रानी का मोहन से प्रेम निवेदन जो सुखद अनुभूति प्रदान कर रही हैं ....
मोहन मधुर बजाओ बंशी,
प्रेम मगन हो इतराऊँ
देख देख पावन छवि तेरी
मन ही मन मैं शरमाऊँ
*****
आज का सफर यही तक ,अब आज्ञा दे
आप स्वस्थ रहें ,प्रसन्न रहें
आपका दिन मंगलमय हो,इसी कामना के साथ
कामिनी सिन्हा
आज का सफर यही तक ,अब आज्ञा दे
आप स्वस्थ रहें ,प्रसन्न रहें
आपका दिन मंगलमय हो,इसी कामना के साथ
कामिनी सिन्हा
सुगढ़ भूमिका के साथ सुंदर चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंफ़ना निज़ामी कानपुर के शब्दों में मैं तो इतना कहना चाहता हूँ-
जवाब देंहटाएंअंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है।
मेरे जैसे करोड़ों निम्न- मध्यवर्गीय लोगों के साथ यह उत्सव उपहास है। चाहे किसी को बुरा लगे। मैं इसका समर्थन नहीं करता। सरकार कहती है कि मुफ़्त राशन देगी। पर कितना, एक यूनिट पर पाँच किलोग्राम चावल मात्र। इससे अधिक मुफ़्त गल्ला लेने के लिए निम्न- मध्यवर्गीय लोग शासन द्वारा तय शर्त पूरा नहीं कर सकते हैं और न ही श्रमिक वर्ग की तरह उन्हें सरकारी एक हजार रूपये का लाभ मिलेगा। जबकि इनके घर की आर्थिक स्थिति इस लॉकडाउन में पूरी तरह से डाँवाडोल है। सरकार , जनप्रतिनिधियों और ऐसे समाजसेवियों को यदि इस वर्ग के लोगों के दर्द की पहचान नहीं है, तो ऐसी समाजसेवा और ऐसे उत्सव मनाने का उसे अधिकार किसने दिया है ? यह कैसा उत्सव है ? हम इतने ढेर सारे दीपक जला और पटाख़े फोड़ क्या जताना चाहते हैं। संदेश देते समय यह भी तो स्पष्ट करना चाहिए कि एक से अधिक दीपक न जलाना,यह इस विपत्ति में सरसो तेल का अपव्यय होगा। अतः यह दीपोत्सव आपसभी को मुबारक़ हो। एक पत्रकार होने के लिहाज़ से मैं इतना ही कहूँगा। आप मेरी प्रतिक्रिया की जितनी भी भर्त्सना करें, परंतु इस तरह से ढेरों दीपक जला तेल का अपव्यय मत करें।अधिकांश लोगों ने यही किया है।
मीना दी की तरह एक दीपक जलाने वाले नाममात्र के दिखें।
सादर ।
मैं इनकी नज़रों में कुत्ता ही सही , परंतु जब भी वह कुछ संदिग्ध देखता है,तो भौंक कर लोगोंं को सावधान करता है। यही उसका धर्म है। यही हम पत्रकारोँ का भी धर्म हैं। अब बड़े साहित्यकार जो समझें।
हटाएंदिल से धन्यवाद आपको शशि जी ,इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,आप अपना धर्म निभाए....
हटाएंयदि हर एक अपनी बुद्धि और विवेक से ,सच्चे दिल से ,मानवता के हित में अपना धर्म निभाता रहे...यही काफी हैं ,फिर तो किसी को समझने और समझाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी .महत्वपूर्ण क्या हैं -" सच्चे दिल से खुद का धर्म निभाना "बस ,सादर नमन आपको
सुंदर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ओंकार जी ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंबहुत सुन्दर लिंकों के साथ बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वर्षा जी ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंसदैव की तरह विविधतापूर्ण और सुन्दर चर्चा प्रस्तुति कामिनी जी ।सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद मीना जी ,आपकी प्रतिक्रिया हमेशा प्रोत्साहित करती हैं ,सादर नमस्कार
हटाएंअति सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद आदरणीय ,सादर नमस्कार
हटाएंसार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
मेरी रचना को चर्चामंच के पटल पर प्रदर्शित करने हेतु सादर आभार आदरणीया कामिनी जी।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया दीदी 👌
जवाब देंहटाएंसादर