मित्रों!
आज मुझे रविवार का चर्चा मंच सजाने का अवसर मिला है।
पिछले सप्ताह शब्द-सृजन-१८ के लिए
विषय दिया गया था
'किनारा'।
सबसे पहले देखिए-
इस विषय पर कुछ रचनाएँ।
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किनारा को तट, तीर, कगार, कूल, पुलिन,
प्रतीर, साहिल आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
आइए देखें विषय आधारित कुछ रचनाएँ।
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किनारा
निर्बाध बहती जाना तुम बन कर
उच्छृंखल नदी की बहती धारा
ताउम्र निगहबान बनेगी बाँहें मेरी,
हो जैसे नदी का दोनों किनारा...
बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर
Subodh Sinha
--
मैं तट हूँ
मैंने उजली धुँधली सुबहों में
हमेशा ही निरीह भूले
बच्चे की तरह मचलते सागर को
अपनी बाहों का आश्रय देकर
दुलारा है, प्यार किया है,
उसको उल्लसित किया है
फिर क्यों
जग मेरी उपेक्षा करता है...
Sudhinama पर Sadhana Vaid
--
किनारे नदी के
प्रीत पगे प्रियदर्शन पर्वत से
पावन अश्रुधारा-सी
उदधि में अवसान तक
बसाती गई है
किनारे-किनारे कालजयी सभ्यताएँ...
हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav
--
माना डूबती है कश्तियां किनारों पे मगर
पर यूं भी क्या किसी को अश़्फाक भी न दे।
बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेज़ार
पर ये क्या उक़ूबत तिश्नगी में पानी भी न दे...
--
स्थूल जगत के सूक्ष्म मनुज कणवृहद ब्रहमांड समाये हुएपंच तत्व से बना शरीराअनगिन रहस्य छिपाये हुएॐ निनाद में शून्य सनातनहै ब्रहाण्ड समस्त समाहितआदि सृष्टि में मूल ओंकारकल्याण भाव का अर्थ निहित...
आज के लिए बस इतना ही।
फिर मिलेंगे...
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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प्रतीर, साहिल आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
आइए देखें विषय आधारित कुछ रचनाएँ।
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गीत
"आया पास किनारा"
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साथ हो माँझी तो किनारा भी करीब हैं....
मैं क्युँ डर रही हूँ ... देर से ही सही....
मुझे भी एक -न -एक दिन किनारा जरूर मिलेगा ....
जब, साथ हो माँझी तो किनारा भी करीब हैं....
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किनारा
निर्बाध बहती जाना तुम बन कर
उच्छृंखल नदी की बहती धारा
ताउम्र निगहबान बनेगी बाँहें मेरी,
हो जैसे नदी का दोनों किनारा...
बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर
Subodh Sinha
--
मैं तट हूँ
मैंने उजली धुँधली सुबहों में
हमेशा ही निरीह भूले
बच्चे की तरह मचलते सागर को
अपनी बाहों का आश्रय देकर
दुलारा है, प्यार किया है,
उसको उल्लसित किया है
फिर क्यों
जग मेरी उपेक्षा करता है...
Sudhinama पर Sadhana Vaid
--
किनारे नदी के
प्रीत पगे प्रियदर्शन पर्वत से
पावन अश्रुधारा-सी
उदधि में अवसान तक
बसाती गई है
किनारे-किनारे कालजयी सभ्यताएँ...
हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav
--
डूबती है कश्तियाँ किनारों पर
पर यूं भी क्या किसी को अश़्फाक भी न दे।
बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेज़ार
पर ये क्या उक़ूबत तिश्नगी में पानी भी न दे...
मन की वीणा
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निर्मल शीतल जल झील का,
ठिठुरकर सुनाता करुण कथा,
झरोखों से झाँकती परछाइयाँ,
पलकों में भरती दीप-सी व्यथा...
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अब देखिए कुछ और अद्यतन लिंक।--
लॉकडाउन में
अच्छा है,ख़ुद से मुलाक़ात हो जाती है,
चिड़ियों से बात हो जाती है...
कविताएँ पर Onkar
--मुकम्मल जहाँ
कभो किसी को
मुकम्मल जहाँ
नहीं मिलता",
क्योंकि मेरा मुकम्मल
उसके मुकम्मल से
नहीं मिलता...
नूपुरं noopuram
--फिक्र
--लघुकथा : सैनिटाइज़
वसुधा बहुत बेचैन थी । उसके शरीर पर जगह - जगह छाले उभर गये थे ,जिनसे उठने वाली टीस ,वसुधा के हलक से कराह बन कर सिसक उठती थी । जब वह अपने केशों को देखती ,तब वह बिलख उठती थी । उसके घने केशों को कैसे काट दिया गया था और सजावटी ब्रोच लगा दिए गए थे ,पर वो ब्रोच उसको चोट पहुँचाते खरोंच से भर देते थे । निर्मल नयन भी अपनी निर्मलता खो कर धूमिल हो चले थे...
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
--लॉक डाउन
अभियान गीत
लॉक डाउन में घर न रहेंगे,
उठक बैठक चाहे करेंगे।
शिक्षक अजर अमर अविनाशी,
नहीं डरे हैं, नहीं डरेंगें।
--उठक बैठक चाहे करेंगे।
शिक्षक अजर अमर अविनाशी,
नहीं डरे हैं, नहीं डरेंगें।
कोरोना डायरी.....
दो गज दूरी
दो गज दूरी तो बनाया जा सकता है। किंतु वो तो तब है जब बाहर निकलने की संभावना बने। लगभाग एक मास का सफर "ताला-बंदी" में निकल चुका है। इतना चलने के बाद भी अभी तक दो गज फासले पर अटके हुए है।किन्तु अभी भी इस दो गज दूरी का और कोई कारगर विकल्प दिख नही रहा है...
--लॉकडाउन की बातें
इस लॉकडाउन में इन दिनों शाम की चाय की तलब मुझे संदीप भैया के प्रतिष्ठान तक खींच ले जाती है। दरअसल चीनी, चायपत्ती और दूध आदि की व्यवस्था कर पाना मेरे लिये भोजन पकाने से भी अधिक कठिन कार्य है। अतः घर जैसी चाह भरी चाय के लोभ में अक्सर ही सायं पाँच बजे से पूर्व वहाँ पहुँच जाता हूँ...
--कोरोना पेशेंट्स ,
संभावित लाक्षणिक या गैर -लाक्षणिक
दोनों ही किस्म के लोगों से
भौतिक दूरी रखना तो इस वक्त की जरूरत है
लेकिन उन्हें हिकारत से देखना लांछित करना
वैयक्तिक या सामुदायिक रूप से
एक सामाजिक अपराध है
virendra sharma
--ध्यान
आदि सृष्टि में मूल ओंकारकल्याण भाव का अर्थ निहितस्थूल जगत के सूक्ष्म मनुज कणवृहद ब्रहमांड समाये हुएपंच तत्व से बना शरीराअनगिन रहस्य छिपाये हुएॐ निनाद में शून्य सनातनहै ब्रहाण्ड समस्त समाहितआदि सृष्टि में मूल ओंकारकल्याण भाव का अर्थ निहित...
काव्य कूची पर anita _sudhir
--तुम्हारी याद आती है।
गाँव में रहूँ
तो शहर की
याद आती है
शहर में रहूँ
तो गाँव की
याद सताती है
इन दो यादों के बीच
मैं तुम्हें फोन कर लेता हूँ
और मेरी शाम यूँ ही
गुजर जाती है...
Nitish Tiwary
--एक व्यंग्य :
हुनर सीख लो
मेम सा’ब-आज मैं काम पर आने को नी ।महीने भर को गाँव जा री हूं। मेरा हिसाब कर के ’चेक’ गाँव भिजवा देना-’- कामवाली बाई ने अपनी अक्टिवा स्कूटर पर बैठे बैठे ही मोबाईल से फोन किया । मेम साहब के पैरों तले ज़मीन खिसक गई -अरे सुन तो ! तू है किधर अभी?’ ’मेम साहब ! मैं आप के फ्लैट के नीचे से बोल रही हूँ । जब तक श्रीमती जी दौड़ कर बालकनी से देखने आती कि बाई ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और हवा हो गई...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
--मील का पत्थर साबित हुई थी
‘27 डाउन’
27 डाउन’( 27 Down ) में निर्देशक ने प्रत्येक दृश्य को प्रतीकात्मक अर्थ देकर फिल्म को बेहतरीन बना दिया। रेलवे स्टेशनों की जिंदगी, रेल का पटरियों में दौड़ना, बनारस की सड़कें और और नायक संजय की जिंदगी में पटरियों पर दौड़ते जीवन का एकाकीपन फिल्म को अविस्मरणीय बना देता है।
--एक है दूजे के लिए
सूरज जलता है, तपता है
ताकि जीवन की ज्योति जले धरा पर !
धरती गतिमय है रात-दिन
बिना क्लांत हुए
ताकि मौसमों का आना-जाना लगा रहे...
Anita
--आज के लिए बस इतना ही।
फिर मिलेंगे...
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी द्वारा।
जवाब देंहटाएंकिनारा का शाब्दिक अर्थ स्पष्ट करती भूमिक।
शब्द-सृजन के साथ अन्य रचनाओं को भी स्थान मिला है।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
मेरी रचना को आज की विशेष प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आदरणीय शास्त्री।
व्याकुल पथिक: ओ माँझी, ले चल सबको पार.. https://gandivmzp.blogspot.com/2019/01/blog-post_11.html?spref=tw
जवाब देंहटाएंइस विषय पर मेरी एक पुरानी रचना है। जब अपने समाज की ओर से सम्मानित होने का अवसर मिला था। 🙏
साथ ही विषय आधारित इस चर्चा में मंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार गुरुजी।
बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद सर |
बहुत खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंशब्द -सृजन की सुंदर प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने की लिए आभार आपका ,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविशिष्ट रचनाओं के साथ आज का विशिष्ट संकलन ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति. मुझे स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं से सजी सुंदर चर्चा, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंक सुंदर भूमिका ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना फिक्र चुनने के लिए आभार सहित धन्यवाद |मुझे बहुत अफसोस है की इस शब्द सृजन के लिए मैंने एक कविता लिखी थी |न जाने क्यूँ वह आप तक पहुँच नहीं पाई |
किनारे-किनारे कई ख़याल मिले. बेहद रोचक. किनारा और कोरोना सम्बन्धी संकलन. बधाई !
जवाब देंहटाएंमुकम्मल जहां को भी किनारे तक पहुँचाने के लिए हार्दिक आभार, शास्त्रीजी.