स्नेहिल अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
वतन से प्यार एक पवित्र भाव है जो हरेक देशप्रेमी के दिल में उमड़ता रहता है।
हमारी आपसी सहमति, सद्भावना, सौजन्य से बनता है वतन।
स्वार्थ की होड़ वतन को कमज़ोर करती है।
किसी भी देश की संप्रभुता के लिये एकता और अखंडता की डोर मज़बूत होनी चाहिए।
आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना की कुछ पंक्तियाँ-
"धर्म से रिश्ता सब कुछ है,क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं?
ओ भाई मेरे,ओ बंधु मेरे,क्या अमन से रिश्ता कुछ भी नहीं?"
ओ भाई मेरे,ओ बंधु मेरे,क्या अमन से रिश्ता कुछ भी नहीं?"
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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जिस माटी में तुम जन्मे,
खेले-खाए और पले - बढ़े
उस माटी से गद्दारी क्यों,
ये कैसी जिद पर आज अड़े ?
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वह आया,
उसने सिर्फ़ राख देखी
और वापस लौट गया.
जिसे देखना नहीं आता
सतह के नीचे,
उसने सिर्फ़ राख देखी
और वापस लौट गया.
जिसे देखना नहीं आता
सतह के नीचे,
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हैंग-ओवर उम्मीद का …
उँगलियों में चुभे कांटे
इसलिए भी गढ़े रहने देता हूँ
की हो सके एहसास खुद के होने का
हैंग-ओवर उम्मीद का …
उँगलियों में चुभे कांटे
इसलिए भी गढ़े रहने देता हूँ
की हो सके एहसास खुद के होने का
गलियाँ जो बनी थी सूनी रहने के लिए
क्योंकर किया आबाद एक दफ़े के लिए
तुम तो क्या, कोई भी तो किसी का सानी नहीं है
खींचा दम तैयार है मगर दूर तक जाने के लिए
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तुम यदि सहारा न दोगे उसे
उसकी ओर हाथ न बढ़ाओगे
कौन देगा रिश्ते की गर्मीं उसे
और क्या अपेक्षा करोगे उससे
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लघुकथा : प्यार
प्रतीक
अभ्यास में चन्द्रबिन्दु सा विस्मृत हूँ
अनाभ्यास में मात्रा की त्रुटि हूँ
व्याकरण में वाक्य दोष हूँ
प्रेम में,लुप्त हुई लिपि का मध्य का एक अक्षर हूँ
मैत्री में विस्मयबोधक अवयव हूँ
लोक में भाषा की दासता से मुक्त एक गीत हूँ
लघुकथा : प्यार
सहमी सी अनुभा घर में घुसते ही विदिशा से लिपट गई
,"माँ ! प्यार करना कोई बुरी बात होती है क्या ?
नेहा को उसके घरवालों ने बाहर निकलने
से मना कर दिया है कि वो किसी से प्यार करती है ।"
**प्रतीक
अभ्यास में चन्द्रबिन्दु सा विस्मृत हूँ
अनाभ्यास में मात्रा की त्रुटि हूँ
व्याकरण में वाक्य दोष हूँ
प्रेम में,लुप्त हुई लिपि का मध्य का एक अक्षर हूँ
मैत्री में विस्मयबोधक अवयव हूँ
लोक में भाषा की दासता से मुक्त एक गीत हूँ
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"फिर वही पहली रात"
लघुकथा-संग्रह युवा लेखक विजय विभोर की कृति है,
जिसे उसने खुद प्रकाशित किया है।
इस संग्रह में 92 लघुकथाएँ हैं,
प्रकाश नहीं , निज स्वार्थ कहो
मनुज! हमें जला क्यों मुसकाते ?
दे दो यह तेल किसी ग़रीब को
यूँ बलिदान हमारा व्यर्थ न हो।
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अनीता सैनी
मीना दीदी ने बिल्कुल सही कहा है, परंतु यदि देश के प्रति हमारा कुछ भी कर्तव्य होता तो हम भष्टाचार, भाई-भतीजावाद,धार्मिक पाखंड जैसा कि इन दिनों जमाती कर रहे हैं और रूढ़ीवाद अथवा कथित प्रगतीशीलवाद से ऊपर उठकर सर्वप्रथम राष्ट्र को महत्व देते ,उसके प्रति अपने नागरिक दायित्व को समझते, बातें बनाना छोड़ , माँ भारती के लिए अपना शीश देने को तत्पर रहते।
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका और प्रस्तुति,मेरे सृजन को स्थान देने के लिए आभार।
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा. मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए आज ...
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका के साथ सुंदर लिंकों का चयन ,लाजबाब प्रस्तुति अनीता जी ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनीताजी, सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल किया, साथ ही रचना की पंक्तियों को भूमिका और शीर्षक में शामिल किया।
जवाब देंहटाएंवास्तव में यह रचना बहुत ही विचलित मन से लिखी गई,अंतर्मन के आक्रोश में। कोरोना बीमारी से बचाने के लिए तो बहुत से उपाय हैं पर समाज में विकसित हो रहे नफरत के कीटाणुओं को कौन से सेनिटाइजर से नष्ट करें?
पुनः पुनः आभार। आज की चर्चा प्रस्तुति में आपके विस्तृत पठन, चिंतन एवं आकलन की सुंदर झलक है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति। बेहतरीन रचनाओं का समागम। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ। वतन पर चर्चा को आगे बढ़ाती सार्थक भूमिका।
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