स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
बिभिन्ताओं से भरा हमारा देश...
रीत -रिवाज ,जाति धर्म में बटा हुआ...
मगर, बिपरीत परिस्थितियों में एक हो जाना....
आपना अहित करने वालों के साथ भी, दया भाव बनाए रखना...
काम बड़े-बड़े करना पर, अभिमान करके ढोल ना पीटना....
वक़्त आने पर अपनी एकता -अखण्डता ,धीरज -धैर्य, समझदारी और
काबिलियत से दुनिया में अपनी खास पहचान बनाना...
ये हैं हमारे " भारत " की पहचान ..
जो एक बार फिर से सम्पूर्ण विश्व के आगे सिद्ध हो चूका हैं ...
हाँ , कुछ अनावश्यक तत्व भी हैं लेकिन..
इतनी सारी अच्छाईयों के बीच थोड़ी सी बुराई.....
जैसे " गुलाब के साथ काँटे " जो मायने नहीं रखता...
एक दिन अवश्य हमारा भारत फिर से " विश्वगुरु " के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर पायेगा
ऐसी कामना के साथ चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर...
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'शब्द-सृजन-18' का विषय है-
'किनारा'
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
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आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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ग़ज़ल
"अदाओं की अपनी रवायत रही है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कमजोर बुनियाद पर जो बनी है
झटकों से वो ही इमारत ढही है
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नहीं ‘रूप’ से जंग लड़ना है मुमकिन
अदाओं की अपनी रवायत रही है
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विचलित है जर्जर बूढ़ा नीम
ढो रहा उम्र को ढलते पडाव पर,
विश्व-पटल पर बदलते हालात पर,
ज़िंदगी के दिये अप्रत्याशित अनुभव पर,
आकलन की भयावह तस्वीर पर,
विचलित है जर्जर बूढ़ा नीम।
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भारतीय समाज न तो घोर पदार्थवादी है
न शुष्क अध्यात्मवादी।
इसका पुरुषार्थ दर्शन धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष – इन चारों को क्रमिक महत्व देता है
और इनके लिए जीवन की चार अवस्थाओं
में चार आश्रमों का आग्रह भी है।
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आर्य भट्ट कर खोज शून्य की
विश्व पटल को चौकाया
मानवता का सभ्य पाठ भी
भारत ने ही समझाया
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सोशल डिस्टेंस में मजबूरियाँ
लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर पसरे सन्नाटे के मध्य
सफ़ेद चाक से बने सुरक्षा घेरे में दूर तक केवल
पादुकाएँ ही दिख रही थीं। पेट की आग,
तपती सड़क और बिलबिलाते ग़रीब लोगों के लिए
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एक गीत -जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़
झरने लगे
ज़हर फूलों से
मौसम सोया है ,
नदियों के
समीप ही
जलकर जंगल रोया है ,
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बिन इबादत मिलें जो वो ख़ुदा आप हैं,
नाम जिनसे मिला वो पिता आप हैं,
बरकतों के पीछे की दुआ आप हैं,
हम ज़हमत से दूर,रहमतों में आप हैं।
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सबकुछ मिट्टी से पैदा होकर फिर उसी में मिल जाता है
राजा हो या रंक सबका अंत एक-सा होता है।
उसी का जीवन सार्थक है जो गलतियों से फायदा उठाता है
हमेशा जीते रहेंगे सोचने वालों का जीवन बेकार हो जाता है
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हीरा जनम अमोल था
सन्त और शास्त्र कहते हैं मानव जन्म दुर्लभ है. मानव यदि
इस बात पर यकीन करता तो अपने जीवन से खिलवाड़ न करता.
आज के हालात में देखा जाये तो जो लोग अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं,
अपने जीवन से खिलवाड़ ही कर रहे हैं.
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बंजर खेतों को उपजाऊं बनाकर,
हरे-भरे फसल लहराकर,
मोटे-मोटे अन्न उपजाने वाला,
मालिकों का पेट भरकर,
भूखे पेट सोने वाला
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नाक़ाम यात्रा
जीवनचक्र की अनवरत यात्रा में पथिक को कभी आगे आने वाली
कठिनाइयों से अवगत नही कराया गया।
मार्ग में आने वाले अवरोधकों को हटाकर उन्होनें दूसरों के लिए
रास्ते भी बनाए पर उसका श्रेय कभी उनको दिया नही गया।
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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत उम्दा भूमिका के साथ सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमन
हटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय ,सादर नमन
हटाएंसुंदर लिंक्स का शानदार समायोजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद नितीश जी ,सादर नमन
हटाएंमंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंसभी को प्रणाम।
सहृदय धन्यवाद शशि जी ,सादर नमन
हटाएंअच्छे लिंक्स |हार्दिक आभार आपका |
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंसुन्दर भूमिका के साथ सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
सहृदय धन्यवाद सर,आपका आशीष बना रहें ,सादर नमन
हटाएंसार्थक और सुन्दर चर्चा अंक । सभी लिंक्स बेहतरीन । चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन...मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही आकर्षित कविता अपने द्वारा प्रस्तुत किया गया आपको सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंAkshaya Tritiya Date 2020 | Akshaya Tritiya 2020 Kab Hai अक्षय तृतीया सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त
बहुत ही सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी आप के द्वारा. सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर है. सभी रचना करो को बधाई एवं शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसादर
चर्चामंच परिवार एवं प्रबंधन का हार्दिक आभार तथा डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' सर जी को प्रणाम...
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम, बहुत ही अच्छा चर्चा एवं कविताये है, जरूर पढ़े gulzar shayai
जवाब देंहटाएं