सादर अभिवादन।
शुक्रवार की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं,
निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं
मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ
मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं।
"भवानीप्रसाद मिश्र"
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाऍं-
--दोहे-धरादिवस
"धरती का सन्ताप"
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गर्मी की छुट्टी होते ही,
अपने घर हम आयेंगे,
जो भी लिखा आपने बाबा,
पढ़कर वो हम गायेंगे,
जब भी हो अवकाश आपको,
मिलने आना तुम बाबा।
पापा की लग गई नौकरी,
दूर नगर में अब बाबा।
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इसी झील के तट पर पेड़ गगन है वट का ,
काला बादल चमगादड़ - सा उल्टा लटका ;
शंख - सीप नक्षत्र रेत में -
हैं पारे - से |
साँझ - सुबह के मध्य - अवस्थित झील रात की
भरी हुई है अँधियारे से |
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बहुत से लोगों में मन में सवाल होगा कि आयुष मंत्रालय के ऐसे कौन से सुझाव हैं।इसकी वजह हे भारतीय खान पान जिसमे में स्वाद और स्वास्थ्य का सामंजस्य होता है हमारे यहां खाने में प्रयोग होने वाले ज्यादातर मसालों में औषधीय और आयुर्वेदिक गुण होते हैं
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चलो प्रिये !
गठरी ले
फिर अपने गाँव चलें |
कुछ
घोड़ागाड़ी से
कुछ नंगे पाँव चलें |
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राष्ट्र की चेतना को जगाते चलें
हम क्रांति के गीत गाते चलें...
अंधेरे को टिकने न दें हम यहाँ
भय को भी छिपने न दें हम यहाँ
मन में किसी के निराशा न हो
आशा का सूरज उगाते चलें ।
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उड़ने से पहले वो
धीमे से कहती है,
“अन्दर क्यों बैठे हो?
थोड़ा बाहर निकलो न,
तुम्हें पिंजरे में देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता!”
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चेतन अरु अवचेतना ,रखे भिन्न आयाम ।
जाग्रत चेतन जानिये ,अवचेतन मन धाम।।
पंच तत्व निर्मित जगत,चेतन जीवन सार ।
अवचेतन मन साधना ,पूर्ण सत्य आकार ।।
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आग चूल्हे की हो
या पेट की...
एक जलती है
तब दूसरी बुझती है
और चूल्हा जलता कब है?
पूछो उन मजदूरों से .. ....
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माँज रहा था समय,
दुःख भरे नयनों को,
स्वयं को न माँज पाई,
एक पल की पीड़ा थी वह,
कल्याण का अंकुर,
उगा था उरभूमि पर,
बिखेर तमन्नाओं का पुँज,
हृदय पर लगी ठेस,
प्रीत ने फैलाया प्रेम का,
दौंगरा था वह।
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कल वही लोग भूल जायेंगें
चार दिनों में,
क्या क्या हुआ था
करोना काल में
दो - चार दिन सहम के निकलेंगें
थोड़ा संभल कर निकलेंगें
फिर बेधड़क हो पहले से और ज्यादा
करेंगें दुरुपयोग हवा पानी का
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नाश से निर्माण का क्रम
चक्र चलता ये निरंतर
बिखरते हैं श्वांस मोती
लगे शून्य जीवन कांतर
सृष्टि का विस्तार होगा
रिक्तपन है फिर जरूरी
चमक जुगनू की सिखाती
हार से हो जीत पूरी।।
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ऐ मानव, तुमने तो मेरी ही अस्तित्व को
खतरे में डाल दिया ,मेरी समृद्धि भी विपदा में पड़ी
ऐ मानव, दिखावे के पौधारोपण से ना मैं समृद्ध होने वाली ,तुमने तो मेरी जड़ों को ही जहरीला किया।
ऐ मानव , अब मुझ वसुन्धरा को स्वयं ही करना होगा स्वयं का उद्धार..
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महाभारत में
युधिष्ठिर से यक्ष-प्रश्न-
"संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?"
"मृत्यु"
"रोज़ दूसरों को मरता हुआ देखकर भी
ख़ुद की अमरता के सपने देखता है मानव।"
युधिष्ठिर ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया।
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अनुमति चाहती हूँ 🙏 आपका दिन मंगलमय हो ।
"मीना भारद्वाज"
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ,बहुत ही अच्छे लिंक्स |आपका हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
बहुत सुंदर है आज की प्रस्तुति आदरणीया मीना दीदी. बेहतरीन रचनाओं से सजाई है आपने प्रस्तुति. कविवर भवानी प्रसाद मिश्र जी की रचना का अंश लिए आज की भूमिका शानदार है.
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई.
मेरी रचना आज की प्रस्तुति में शामिल करने के लिए आपका ढेर सारा आभार मीना दीदी.
आदरणीया मीना जी एवम् चर्चा मंच के सभी बुद्धिजीवी व वरिष्ठ सदस्य आप सभी को नमन हॆ जो मेरे ब्लॉग्स्पॉट को आप के प्रसिद्ध मंच पर जगह दी प्रयास रहेगा इस मंच की गरिमा के अनुरूप अपने लेखन को ले जाऊं
जवाब देंहटाएंपुन साधुवाद
विनम्र आग्रह कोरोना संकटसे बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वयं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करे।
पुन विनम्र आभार
राकेश श्रीवास्तव
आदरणीय मीना जी चर्चा मंच के सभी पोस्ट एवम् सदस्यों को मेरा नमन ,सभी प्रस्तुतियां बेहतरीन ,मीना जी धन्यवाद मेरे द्वारा सृजित रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने हेतु
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
वाह!खूबसूरत चर्चा सखी ,मीना जी । मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंमैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ, मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं। "भवानीप्रसाद मिश्र" की इन सुंदर पंक्तियों से आज की प्रस्तुति का शुभारम्भ लाज़बाब हैं ,सुंदर लिंकों का चयन मीना जी ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंकविवर भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना की चन्द पंक्तियों से सजी भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतीकरण.... उम्दा लिंक संकलन....।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
वाह 👌👌 बहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई,मेरी रचना को स्थान देने लिए सहृदय आभार सखी 🌹🌹🙏🙏
जवाब देंहटाएंआदरनीय मीना भारद्वाज जी आपने '' झील रात की '' नामकगीत को इसमें शामिल करके | आपकी पारखी नजरों से आख़िर ये गीत बच नहीं सका | ह्रदय से ऐसे जोहरी को नमन करता हूँ |साथ ही आपने जो भी रचना को छूआ उसका महत्व दोगुना हो गया है | इस चर्चा में बहुत ही शानदार संकलन है रचनाओं का | और उस पर चर्चा भी बहुत शानदार है | साथ ही अनीता सैनी जी , नितेश तिवारी जी , ओंकार जी , सम्माननीय सुधादेव रानी जी को भी धन्यवाद दुँगा कि उन्होंने '' झील रात की '' नामक गीत को पसंद किया |साथ ही अन्य सभी जिन्होंने दिल से इसको पसंद किया , उन्हें भी धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा
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