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Monday, April 13, 2020

'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670)

सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। आज लेकर हाज़िर हूँ विभिन्न सक्रिय ब्लॉग से कुछ सद्य प्रकाशित एवं सामयिक रचनाएँ। 

शब्द-सृजन-17 का विषय है :-

'मरुस्थल' आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक  चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये  हमें भेज सकते हैं।  चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में  प्रकाशित की जाएँगीं।
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आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
‘चन्दा और सूरज’’

बालगीत "नरेन्द्र मोदी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्वारनटीन : राजिंदर सिंह बेदी
उर्दू के प्रसिद्ध कथाकार राजिंदर सिंह बेदी (1915–1984) की एक कहानी का शीर्षक है ‘क्वारनटीन’ जो अंग्रेजी राज में फैली प्लेग महामारी को केंद्र में रखकर लिखी गयी है. इस कहानी को पढ़ते हुए आज भी डर लगता है. इसकी कोरोना खौफ़ से तुलना करते हुए जहाँ समानताएं दिखती हैं वहीं यह विश्वास भी पैदा होता है कि मनुष्य इस आपदा को भी पराजित कर देगा.
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है फिक्र किसी के जख्मों की  कौन करता यहाँ..... 
जिन्दा रखने के लिए नमकदान लिए, मौका ढूंढता रहा 
ता-उम्र इन्सान! 
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तभी शायद किसी को शमशान दीखा
वो मारे प्रसन्नता के चीखा

कि राम नाम सत्य है

एक अधमरा बोला कि

भैया दरअसल मर तो हम रहे हैं
मुर्दो तो साला अपनी जगह मस्त है

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मीत मिले
नम सैकत पांवों के नीचे 
थिरक थिरक तन मन घूमे।
एक ताल पर लहरें मटकी
एक ताल दो  दिल झूमे।
समय बीत का भान नही सुध
नभ डेरा कोजागर का।।
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फूल यूँ खिले (10 हाइकु)
मेरी फ़ोटो
मिश्री-सी बोली  
बहुत ही मँहगी,  
ताले में बंद !  
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अवसाद में निराश कलम , ज्ञान लिखेगी ?
मुंह खोल जो कह न सके,चर्वाक लिखेगी ?
जिसने किया बरवाद , वे बाहर के नहीं थे !
तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !
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अमर आत्मा का सुगीत फिर
 
युग परिवर्तन का चले यज्ञ  
आहुति दे कर्त्तव्य निभाएं, 
बार-बार इस भू पर लौटें 
प्रकृति मातृ को शीश झुकाएँ!
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कोरोना और भारत का समाजशास्त्र – ५
My photo
अपने गाँव को लौट गए वे सारे मज़दूर और किसान  जहाँ एक ओर सुकून और चैन  की साँस ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपने प्रवास में ही फँस गए मज़दूरों को  अपने गाँव से वियोग  की तड़प सता रही है। कारण भोजन, वस्त्र या आवास या अन्य कोई आर्थिक नहीं, बल्कि उनके जीवन का सामाजिक संस्कार है जो इस विकट घड़ी में अपनों से दूर रहने पर उन्हें   बरबस  कचोटता और टीसता है।
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भूल गए थे माँ का खाना,
स्वाद दिखे बस ढाबे में
भाग-दौड़ में भूले जीवन,
प्यार कहाँ झूठे दावे में।
दिखे नहीं अब ठौर कहीं भी,
पड़ी काल की छाया है।
कल-तक शोर मचाता मानव
कैसे अब घबराया है।
*****
लोग अबला ही समझते
कोमलांगी हैं मगर , 
वीरांगना तक है सफर

कोई कब समझा ये मन,

तन पे ही जाती हर नजर

सीता कहूँ या गार्गी,

तप के ही जीवन है गुजारा

कल्पना के गाँव में भी

कब बना है घर हमारा
"अरे!"
"का बात करते हो तिवारी बाबू!"
"आपको नहीं पता?"
"उहे रामनाथ मास्टर का लौंडवा रहा!"
"कल रात उसने फाँसी लगा लिया।"
"मोहल्ले में चर्चा रहा कि सात बरस से उहे दिल्ली में कलेक्टर की तैयारी कर रहा था। सफल न हुआ तो अवसादग्रस्त होकर ससुर फाँसी लगा लिया।"
"बताईए!"
"अब बूढ़े मास्टर जी अपने ज़वान लड़के की लाश स्वयं उठा रहे हैं!"
*****
सफ़र
मैं भी यहीं ठहर गया हूँ। 
अब मुझे आगे बढ़ना है, 
मैं कोशिश कर रहा हूँ, 
मुझे फैसला लेना है, 
मैं अनुभवी हूँ,
मैं उत्सुक हूँ।
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सुख का आसन या दुःख का पाषाण भी तो कर्म से ही टूटते हैं 
जो कर्म युद्ध में जीतते हैं वही तो महारथी उभरते हैं 
कर्म ही पूजे जाते हैं 
देह तो नश्वर होते हैं 
कर्म ही तो हमें अमर बनाते हैं
भगवान इंसानो में ही बस्ते हैं 
इंसान कर्म से ही भगवान बनते हैं  
*****
My photo
वैसे तो सृष्टि में जन्म, मृत्यु, सृजन, विनाश का चक्र तो अनादि काल से चलता आ रहा है। दार्शनिक भी कहते हैं। जिसे हम मौत कहते हैं, वहीं तो जीवन है। विनाश के बाद ही सृजन होती है। लेकिन हम हैं कि इस सच्चाई से मुंह चुराकर निकल जाना चाहते हैं। भौतिक संसाधन जुटाने के फेरे में दरबदर भटक रहे हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि जिस प्रकृति ने हमें इतने कुछ दिया। बदले में उसको हमने क्या चुकाया?

"एक सीनियर नहीं दोस्त पूछ रहा है, सब ठीक है परिवार में? "

प्रवीण की सद्भावना में भी रोष झलक ही जाता है।  क़दमों की आहट और तेज़ हो जाती है। शाम के सन्नाटे के साथ पैरों से कुचलतीं सूखी पत्तियों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी। 

"पत्नी, बच्चे, परिवार और समाज के क़िस्से बेचैनी बढ़ाते हैं सर! "

*****
आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

15 comments:

  1. सुंदर चर्चा, सभी को नमन।

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक लिंकों की चर्चा।
    मेरे दो-दो लिंक देने के लिए धन्यवाद।
    आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
    हार्दिक धन्यवाद आपका।
    बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

    ReplyDelete
  3. बैसाखी की शुभकामनाएं ! विविधताओं से पूर्ण विषयों पर सार्थक जानकारी देते लिंक्स, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

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  4. विविधता से पूर्ण रचनाओं में हमारी रचना को शमिल करने के लिए हार्दिक धन्य वाद!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    ReplyDelete
  6. सुंदर चर्चा, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति . सभी लिंक्स अत्यंत सुन्दर.

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  9. सुंदर चर्चा

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  10. बेहतरीन चर्चा अंक सर ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,सादर नमस्कार

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  11. सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
    सादर

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  12. बहुत शानदार प्रस्तुति, सभी लिंक बहुत आकर्षक,
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।

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  13. शानदार प्रस्तुतीकरण लाजवाब लिंक संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

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  14. आभार स्नेह हेतु ...

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