स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
जीवन में इन्सान हर रोज़ अनेक प्रकार के संघर्ष , पीड़ा , कुंठा , बेबसी और अभाव आदि
से रु - ब- रु होता है | भले ही वह बाहर से कितना भी प्रसन्न और सुखी क्यों ना दिखाई
देता हो ,एक उदासी किसी ना किसी कारण से उसके भीतर पसरी रहती है |
पर साल भर यदा -कदा मनाये जाने वाले उत्सव हमारी उदास और नीरस ज़िन्दगी में
रंग भरने का काम बखूबी करते हैं | ये पर्व हमारे बाहर - भीतर दोनों में आनंद और उल्लास भर देते हैं | बैशाखी ऐसा ही रंगीला सांस्कृतिक उत्सव है ( सखी रेणु की रचना से )
मगर....... " इस बरस बैसाखी सूनी हैं "
ये समय रबी फसलों की कटाई का हैं...खेतो में लहलहाती फसलों को देखकर किसान
खुश होने के बजाय दुखी और परेशान हैं.... कही फसल जल रही हैं
तो कही खेतो में ही बर्बाद हो रही हैं। ढोल की थाप पर भंगड़ा करने के दिन में
किसानों की हर धड़कन चीत्कार कर रही हैं ...
अब इसे कुदरत का कहर कहें
या मानव जनित पापकर्मो का असर.....
खैर.... जीवन में आशा के दीप कभी बुझने नहीं देना चाहिए ....
आज अँधेरी गम की रात हैं .....तो कल सुख का सूरज जरूर निकलेगा...
इसी उम्मीद का दामन थामे .. बैसाखी और अम्बेडकर जयन्ती
की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ चलते हैं आज की रचनाओं की ओर....
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मगर....... " इस बरस बैसाखी सूनी हैं "
ये समय रबी फसलों की कटाई का हैं...खेतो में लहलहाती फसलों को देखकर किसान
खुश होने के बजाय दुखी और परेशान हैं.... कही फसल जल रही हैं
तो कही खेतो में ही बर्बाद हो रही हैं। ढोल की थाप पर भंगड़ा करने के दिन में
किसानों की हर धड़कन चीत्कार कर रही हैं ...
अब इसे कुदरत का कहर कहें
या मानव जनित पापकर्मो का असर.....
खैर.... जीवन में आशा के दीप कभी बुझने नहीं देना चाहिए ....
आज अँधेरी गम की रात हैं .....तो कल सुख का सूरज जरूर निकलेगा...
इसी उम्मीद का दामन थामे .. बैसाखी और अम्बेडकर जयन्ती
की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ चलते हैं आज की रचनाओं की ओर....
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दोहे "अम्बेदकर जी का जन्मदिन"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
समता और समानता, था जिनका अभियान।
जननायक थे देश के, बाबा भीम महान।।
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धन्य-धन्य अम्बेडकर, धन्य आपके काज।
दलितों वर्ग से आपने, जोड़ा सर्वसमाज।।
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समता और समानता, था जिनका अभियान।
जननायक थे देश के, बाबा भीम महान।।
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धन्य-धन्य अम्बेडकर, धन्य आपके काज।
दलितों वर्ग से आपने, जोड़ा सर्वसमाज।।
सांस्कृतिक चेतना का पर्व -- बैशाखी
अन्न उपजाने को सृष्टि का सर्वोत्तम कर्म माना गया है क्योकि किसान
का अन्न उपजाना उसकी आजीविका मात्र नहीं , इसी अन्न से
अनगिन भूखे पेट अपनी भूख शांत कर कर्म की और अग्रसर होते हैं |
सदियों से किसान -कर्म इतना आसान भी कहाँ रहा है ?
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आशा ज्योति जलानी है
खेतों में झूम रही फसलें
कोई भंगड़ा, गिद्दा, न डाले,
चुप बैठे ढोल, मंजीरे भी
इस बरस बैसाखी सूनी है !
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“हाइकु की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।”
यों तो किसी भी विधा को ठीक-ठीक परिभाषित करना कठिन ही
नहीं लगभग असंभव होता है, कारण साहित्य गणित नहीं है,
जिसकी परिभाषाएं, सूत्र आदि स्थायी होते हैं।
नहीं लगभग असंभव होता है, कारण साहित्य गणित नहीं है,
जिसकी परिभाषाएं, सूत्र आदि स्थायी होते हैं।
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मैं उसे समझ लेती हूँ
माँ का गर्भगृह
जहाँ कुछ समय मुझे रहना है
जीवन पाकर बाहर आना है
ईश्वर अभी भी रच रहा है मुझे
उसकी रचना पर
सवाल नहीं
संदेह नहीं
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अब तो ! शठे शाठ्यं समाचरेत
जिस दिन सेना निकल आई, और अपनी पर आ गई तो सारी अकड़,
सारी हेकड़ी, सारी उदंडता, सारी गुंडागर्दी, सारी बकवाद
भुलवा दी जाएगी ! बहुत हो गया !
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एक गीत -नीलकंठ बन रोज हलाहल हम भी पीते हैं
समय के साथ भारतीय पुलिस का चेहरा काफी कुछ बदल रहा है
लेकिन वर्दी के रुतबे के भीतर भी एक दर्द छिपा रहता है
जो किसी से कहा नहीं जाता किसी से सुना नहीं जाता |
वर्तमान वैश्विक महामारी में पुलिस अपना कार्य
बहुत पेशेवर और मानवीय ढंग से कर रही है |
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खैर, तुमको अंदर की बात बता दें कि डरते-डरते तुमसे मोहब्बत भी होने लगी है। देखो ना,
तुम्हारे आने से कितना कुछ बदला है। वर्षों से प्रदूषित होकर नाला बन चुकी
युमना नदी काली से नीली हो चुकी है।
जालंधर और चंडीगढ़ से हिमाचल के बर्फीले पहाड़ दिखने लगे हैं।
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विरह वेदना सिर चढ़ बोली
शूलों से आघात मिले
फूलों की शैया थी झूठी
पतझड़ के दिन साथ चले
देकर पाषाणों सी ठोकर
प्रेम कहाँ पर ले आया।।
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अंदर ही रह बाहर मत जा, कोरोना के दर पे,
थोडी सी मोहब्बत फरमा, इक दफा़ जिन्दगी से।
यूं बिगड़ने न दे दस्तूर, तू जमाने का जालिम,
अच्छा नहीं हर वक्त खोजना, नफ़ा जिन्दगी से।
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इस रात की सुबह होगी और जल्द होगी, इसी कामना के साथ.....
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आप स्वस्थ रहें .....प्रसन्न रहे...
आपका दिन मंगलमय हो !
कामिनी सिन्हा
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शब्द-सृजन-17 का विषय है :-
'मरुस्थल' आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
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शब्द-सृजन-17 का विषय है :-
'मरुस्थल' आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
बहुत अच्छे लिंक्स ,साथ में मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,चर्चा में शामिल होने के लिए ,सादर नमन
हटाएंमेरे शब्दों को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार असीम शुभकामनाओं के संग
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण के लिए साधुवाद
सहृदय धन्यवाद दी ,आपकी उपस्थिति से आपार हर्ष हुआ ,सादर नमन
हटाएंबहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद नितीश जी ,सादर नमन
हटाएंबहुत ही सुंदर भूमिका के साथ आज की चर्चा प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी आदरणीया रेणु दीदी का बैसाखी पर 2018 का लेख सराहनीय ख़ोज... सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,ढेर सारा स्नेह आपको
हटाएंपढ़ने के लिए, अच्छे लिंक मिले।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सहृदय धन्यवाद सर , सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर चर्चा। आपका आभार कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर , चर्चा में शामिल होने के लिए आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंसुंदर भूमिका के साथ पठनीय लिंक्स, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी , चर्चा में शामिल होने के लिए आभार ,सादर नमन आपको
हटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंप्रिय कामिनी . मेरे पुराने लेख से कुछ पंक्तियों को तुमने भूमिका का हिस्सा बनाया सस्नेह आभार सखी | वैशाखी अबकी बार सचमुच चुपचाप चली गयी ना ढोल ना भंगडे ना गीत कुछ भी सुनाई नहीं पड़ा | पर जान है तो जहान है , यही सोचते हुए ठीक है-- अगर जीवन रहेगा तो जाने कितने त्यौहार आयेंगे |सभी रचनाकारों को सादर नमन और शुभकामनाएं | यदि स्वास्थ्य अच्छा है तो सब मंगल ही मंगल है | सब घर पर रहें और सुरक्षित रहें यही कामना है | आज की चर्चा के कुशल संयोजन के लिए शुभकामनाएं | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,सादर नमन
हटाएंसदैव की तरह बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति कामिनी जी .सादर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमन
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