सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
हिंदी-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
14 सितंबर 1949 को हमारी संविधान सभा ने हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि ) को आधिकारिक तौर पर राजभाषा घोषित किया था। तब से अब तक हिंदी राजभाषा के दर्जे से ऊपर उठकर राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी। हालाँकि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के आंदोलन समय-समय पर तीव्र होते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी हिंदी भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ स्वीकृत करने के उपाय किए जाते रहे हैं।
हिंदी भाषा के विस्तार के लिए ज़रूरी है कि इसे लचकदार बनाया जाय लेकिन व्यवहार में आजकल ऐसा देखा और पढ़ा जा रहा है कि चंद कट्टर हिंदी प्रेमी भाषा की शुद्धता का राग अलापते हुए हिंदी में अन्य भाषाओं से आए शब्दों के प्रयोग को अवांछनीय घोषित करते हुए लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि केवल संस्कृतनिष्ठ हिंदी शब्दों का प्रयोग करें। चाहे भाषा हो या संस्कृति सभी परिवर्तनगामी हैं अतः भाषा को परिष्कृत करना और भाषा को समृद्ध बनाना दो अलग-अलग विषय हैं।
भारतीयता विविधता में समाहित है। भाषाएँ क्षेत्रीय अस्मिता की पहचान भी हैं।एक नज़र डालिए
भारत के संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाओं पर-
1. असमिया
2. बांग्ला
3. गुजराती
4. हिंदी
5. कन्नड़
6. कश्मीरी
7. कोंकणी
8. मलयालम
9. मणिपुरी
10. मराठी
11. नेपाली
12. उड़िया
13. पंजाबी
14. संस्कृत
15. सिंधी
16. तमिल
17. उर्दू
18. तेलुगु
19. बोडो
20. डोगरी
21. मैथली
22. संथाली
भाषाओं को सिनेमा,संगीत और कला आदि समृद्ध और विस्तृत बनाते हैं। श्रमिक और व्यापारिक गतिविधियाँ भाषा के बंधन तोड़तीं और नए शब्दों का सृजन करतीं हैं।भाषाओं में अंतरसंबंध और समन्वय के लिए अब तक बहुत प्रयास नहीं हुए हैं। हम अक्सर पाते हैं ग़ैर-हिंदी भाषी तो हिंदी सीखते और लिखते हैं किंतु हिंदी भाषी अन्य भारतीय भाषाओं में दक्षता हासिल करने से कतराते हैं।
बहरहाल हमें हिंदी भाषा को सरलीकृत और बोधगम्य बनाने और भाषा गौरव के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। अफ़सोस के साथ हमें कहना पड़ता है कि हमारे सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कॉर्ट ऑफ़ इंडिया ) में हिंदी में अपनी बात रखने की आधिकारिक इजाज़त नहीं है।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
-- आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर हाल ही में प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
-- प्रस्तुति का आरंभ 'हिंदी दिवस' पर आदरणीय शास्त्री जी की विचारणीय एवं ओजस्वी अकविता से-
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
हिंदी-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
14 सितंबर 1949 को हमारी संविधान सभा ने हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि ) को आधिकारिक तौर पर राजभाषा घोषित किया था। तब से अब तक हिंदी राजभाषा के दर्जे से ऊपर उठकर राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी। हालाँकि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के आंदोलन समय-समय पर तीव्र होते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी हिंदी भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ स्वीकृत करने के उपाय किए जाते रहे हैं।
हिंदी भाषा के विस्तार के लिए ज़रूरी है कि इसे लचकदार बनाया जाय लेकिन व्यवहार में आजकल ऐसा देखा और पढ़ा जा रहा है कि चंद कट्टर हिंदी प्रेमी भाषा की शुद्धता का राग अलापते हुए हिंदी में अन्य भाषाओं से आए शब्दों के प्रयोग को अवांछनीय घोषित करते हुए लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि केवल संस्कृतनिष्ठ हिंदी शब्दों का प्रयोग करें। चाहे भाषा हो या संस्कृति सभी परिवर्तनगामी हैं अतः भाषा को परिष्कृत करना और भाषा को समृद्ध बनाना दो अलग-अलग विषय हैं।
भारतीयता विविधता में समाहित है। भाषाएँ क्षेत्रीय अस्मिता की पहचान भी हैं।एक नज़र डालिए
भारत के संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाओं पर-
1. असमिया
2. बांग्ला
3. गुजराती
4. हिंदी
5. कन्नड़
6. कश्मीरी
7. कोंकणी
8. मलयालम
9. मणिपुरी
10. मराठी
11. नेपाली
12. उड़िया
13. पंजाबी
14. संस्कृत
15. सिंधी
16. तमिल
17. उर्दू
18. तेलुगु
19. बोडो
20. डोगरी
21. मैथली
22. संथाली
भाषाओं को सिनेमा,संगीत और कला आदि समृद्ध और विस्तृत बनाते हैं। श्रमिक और व्यापारिक गतिविधियाँ भाषा के बंधन तोड़तीं और नए शब्दों का सृजन करतीं हैं।भाषाओं में अंतरसंबंध और समन्वय के लिए अब तक बहुत प्रयास नहीं हुए हैं। हम अक्सर पाते हैं ग़ैर-हिंदी भाषी तो हिंदी सीखते और लिखते हैं किंतु हिंदी भाषी अन्य भारतीय भाषाओं में दक्षता हासिल करने से कतराते हैं।
बहरहाल हमें हिंदी भाषा को सरलीकृत और बोधगम्य बनाने और भाषा गौरव के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। अफ़सोस के साथ हमें कहना पड़ता है कि हमारे सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कॉर्ट ऑफ़ इंडिया ) में हिंदी में अपनी बात रखने की आधिकारिक इजाज़त नहीं है।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
-- आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर हाल ही में प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
-- प्रस्तुति का आरंभ 'हिंदी दिवस' पर आदरणीय शास्त्री जी की विचारणीय एवं ओजस्वी अकविता से-
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स्वतन्त्र भारत में
हिन्दी का जन्म-दिवस
14 सितम्बर
यानि 'हिन्दी-दिवस'
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कैसी है यह विडम्बना?
क्या यही है हमारी सम्वेदना?
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जो काशी तन तजे कबीरा, कैसे शोक मनाएंगे? महामहिम भी क्या अर्थी को, कान्धा देने आएँगे? याद में उसके सभी तिरंगे, कुछ दिन क्या झुक जाएंगे? स्वर्ग-गमन के बाद उसे क्या, भारत-रत्न दिलाएंगे? माला फेरन के नाटक का, क्या हम अंत कराएंगे? कांकर-पाथर से गरीब का, घर क्या कभी बनाएंगे?
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कितना भी लिखें कुछ भी लिखें
कल परसों भी यही सब तो होना है
नये होने की आस बस जिंदा रखनी है
पुराना हुआ रहेगा भी
उस की खबर को अब कब्र में ही तो किसी सोना है
पुराना हुआ रहेगा भी
उस की खबर को अब कब्र में ही तो किसी सोना है
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हिन्दी दिवस भी हमारे देश में साल में एक बार किसी त्यौहार की तरह ही मनाया जाने लगा है ठीक उसी तरह जैसे हम होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस मनाते हैं ! यह ‘दिवस’ मनाने का चलन भी खूब निकला है ! बस साल के पूरे ३६५ दिनों में एक दिन, असली हों या नकली, हिन्दी के मान सम्मान की ढेर सारी बातें कर लो, अच्छे-अच्छे लेख, कवितायें, कहानियाँ लिख कर अपनी कर्तव्यपरायणता और दायित्व बोध का भरपूर प्रदर्शन कर लो और फिर बाकी ३६४ दिन निश्चिन्त होकर मुँह ढक कर गहरी नींद में सो जाओ अगले हिन्दी दिवस के आने तक !
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मैं सब समझता हूँ पर फ़िर भी सोचता हूँ कि मेरे इंतज़ार की समय सीमा कौन निर्धारित करेगा? कम से कम इतना हक़ तो मैं अपने पास रख ही सकता हूँ। यही सोचकर मैं हर बार इस अवधि को बढ़ाता चला जाता हूँ। मैं जानता हूँ कि अवधि बढ़ाने के बाद भी एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे ही बढ़ना पड़ेगा पर मैं फ़िर से तुम्हारे बारे में सोच लेता हूँ।
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बेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें
तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें
दिन भर तपी हैं, धूप में जलती रही हैं जो
उन हसरतों का बोझ भी ढोती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें
तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें
दिन भर तपी हैं, धूप में जलती रही हैं जो
उन हसरतों का बोझ भी ढोती हैं बारिशें
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तुम रखते मेरी हथेली पर
एक श्वेत पुष्प
और वह बदल जाता
मुट्ठी भर भात में
तुम पहनाते मेरी कलाई में
सिर्फ़ एक चूड़ी
और वह ढल जाती
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दुश्मन अभी रात के भुलावे में है,
ये सूरज अभी बादलों के साये में हैं,
ग्रहण की रोशनी तुम्हे अन्धा बना देगी,
ज़िन्दगी का जोड़ अभी घटाये में हैं,
ये तहज़ीब हैं जिसे कमज़ोरी समझते हो,
मेरा ज़मीर मेरे सब्र के संभाले में हैं,
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हुंह यही एक नातिन है क्या इनकी?जब देखो तब सुमी सुमी मेरी निशा तो कहीं नहीं दिखती जैसे वो इनकी कुछ नहीं लगती सुमी की चाची अपनी गुस्सा चाचाजी पर उतार रही थीं।
तुम भी रेणुका!!अब क्या बोलूँ?रोज एक ही बात लेकर बैठ जाती हो कभी प्यार से उस बिन माँ की बच्ची से बात कर लिया करो प्रकाश पत्नी को समझाते हुए बोले। तुम तो उससे भूलकर भी प्यार से बोलती नहीं और चाहती हो माँ बाबूजी भी न बोले? मुझे तुम्हारी यही एक बात अच्छी नहीं लगती!
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प्रकृति के, सुकुमार कवि
घुंघराले केश सजे आनन पर,
वाणी मधुर, कोमल छवि
कविता फूटी स्वतः झर-झर !
प्रकृति के सुंदर चितेरे
नामकरण स्वयं का किया,
फूलों, वृक्षों से गहरे नाते
बचपन से ही काव्य रचा !
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अपनों के ही मध्य में,ढूँढ रही अस्तित्व।
एक दिवस में बाँध के,निभा रहे दायित्व।।
शिक्षा की नव नीति से,लगी हुई उम्मीद,
रहे श्रेष्ठतम हिन्द में,हो इसका स्वामित्व।।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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आभार रवीन्द्र जी। शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
जवाब देंहटाएंशुप्रभात रवि जी,
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
रोचक जानकारी के लिए आभार।
बहुत सुन्दर हिन्दीमय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी आपका हार्दिक आभार।
हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
" हम हो गये हैं दिमाग से दिगम्बर" what is the meaning of that line? Please explain.
जवाब देंहटाएंआप सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। सारी कविताएं बहुत ही सुंदर है परंतु " हम हो गए है दिमाग से दिगम्बर" आपत्तिजनक टिप्पणी लगी।
हटाएंहिंदी दिवस पर शुभकामनाएं, पठनीय रचनाओं का संकलन, मुझे भी आज की चर्चा में सम्मिलित करने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पर चर्चा मंच के सभी प्रबुद्ध जन को मेरी. हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌺🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा... बढ़िया लिंक्स
साधुवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏
हिन्दी दिवस पर सुंदर, सार्थक एवं सारगर्भित चर्चा के लिए साधुवाद🙏
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के आज के इस अंक में मेरी रचना को सम्मिलित करने पर हार्दिक आभार एवं धन्यवाद🙏🙏🙏
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।🌻
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पर सुंदर, सार्थक एवं सारगर्भित चर्चा के लिए आदरणीय रवीन्द्र जी आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
आप सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
बहुत सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! सभी पाठकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! मेरे आलेख को आज की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका के साथ शानदार चर्चा मंच प्रस्तुति.... सभी लिंक्स बेहद उम्दा....
जवाब देंहटाएंआप सभी को हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं।
खूबसूरत मनमोहक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की शुभकामनाएं
*एक हकीकत*
जवाब देंहटाएंइसलिए *हिंदी* नायाब है
छू लो तो *चरण*
अड़ा दो तो *टांग*
धँस जाए तो *पैर*
फिसल जाए तो *पाँव*
आगे बढ़ाना हो तो *कदम*
राह में चिह्न छोड़े तो *पद*
प्रभु के हों तो *पाद*
बाप की हो तो *लात*
गधे की पड़े तो *दुलत्ती*
घुंघरू बाँध दो तो *पग*
खाने के लिए *टंगड़ी*
खेलने के लिए *लंगड़ी*
अंग्रेजी में सिर्फ- LEG *🌹🌹हिन्दी दिवस की बधाई🌹🌹*
सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरी भी रचना को स्थान देने के लिए आभार