शीर्षक पंक्ति : आदरणीय ज्योति खरे जी सर की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आप का अभिनंदन है।
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सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आप का अभिनंदन है।
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प्रेम को परिभाषित करते हुए कबीर साहब और मीरा बाई अमर हो गए। राधा-कृष्ण का पवित्र प्रेम आज भी प्रेमियों के लिए बेमिसाल उदाहरण बना हुआ है।
प्रेम त्याग की पराकाष्ठा है। मौन ध्वनि है जो स्वहित को नहीं परहित में कल्याण को पल्लवित करता है। प्रेम मानव मन में बसी मानवता-सा है।
आदरणीय ज्योति जी सर की लिखी चंद पंक्तियाँ प्रेम के बिखरे मोती-सी लगी।
आइए पढ़ते हैं आपही की लिखी कुछ रचनाएँ -
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आदरणीय ज्योति जी सर की लिखी चंद पंक्तियाँ प्रेम के बिखरे मोती-सी लगी।
मैंने जब जब प्रेम को
हथेलियों में रखकर
खास कशीदाकारी से
सँवारने की कोशिश की
प्रेम
हथेलियों से फिसलकर
गिर जाता है
औऱ मैं फिर से
खाली हाँथ लिए
छत के कोने मैँ बैठ जाती हूँ
चांद से बतियाने... आइए पढ़ते हैं आपही की लिखी कुछ रचनाएँ -
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अब तो फलता-फूलता, जोड़-तोड़ का खेल।
चोरों की तो नाक में, पड़ती नहीं नकेल।।
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शब्दों तक सीमित नहीं, उड़ा रहे हैं वाक्य।
अपने मतलब के लिए, करते हैं शालाक्य।।
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मैंने जब जब प्रेम को
हथेलियों में रखकर
खास कशीदाकारी से
सँवारने की कोशिश की प्रेम
हथेलियों से फिसलकर
गिर जाता है
औऱ मैं फिर से
खाली हाँथ लिए
छत के कोने मैँ बैठ जाती हूँ
चांद से बतियाने
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रास्ते के दो किनारे संग चलते
मिल न पाते मगर साथ रेहते
मैं इन दोनों के बीच चलती
भीड़ में रहकर तनहा सा लगे
किसी अनदेखे खूंटी से जैसे
अपने आपको बंधा सा पाती
छूटने की कोशिश कभी करती
फिर ख़याल आता किस से?
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सुबह और शाम खुली हवा में घूमना बचपन से ही बहुत प्रिय रहा है मुझे । इसका कारण शायद पहले खुले आंगन और खुली छत वाले घर में रहना रहा होगा । शहर में आ कर अपना यह शौक मैं अपने आवासीय कैंपस के 'पाथ वे' में घूम कर पूरा कर लेती हूँ ।
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वे सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती से लेकर कंगना रानौत पर गला फाड़ फाड़कर तो चिल्लाते हैं, परंतु उन्हीं की नाक के नीचे गाज़ियाबाद के विकास नगर, लोनी में 16 वर्ष की नाबालिग बहन को छेड़ रहे शोहदों द्वारा भाई को ही धारदार हथियार से घायल करने की खबर नहीं होती है, जबकि उल्टा शोहदे ने ही लड़की के भाई पर जयश्रीराम ना बोलने पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने की रिपोर्ट करा दी गई। लड़की के अनुसार इससे पहले भी कई बार आरोपी अभिषेक जाटव ने अश्लील हरकतों के साथ छेड़ा है।
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खुद को कहा फकीर, फिर बाबा बन गए।
मन की करली बात, मन ही में तन गए।
कितना किसे दिया, झोली में आँकड़े हैं,
पिचके हुए हैं पेट, रोजगार छिन गए।
एक बार मीडिया को उस ओर भेजिये,
मजदूर मालिकों के शोषण में सन गए।
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मेरे बचपन में स्मृतियों में यह स्मृति अभी भी ताज़ा है। मध्यप्रदेश के पन्ना नगर में स्थित हमारे निवास हिरणबाग़ में हमारे पड़ोस में रहने वाले मेरे बाल मित्र अनंत शेवड़े और अजय शेवड़े खेलने जाने से पहले अपनी मां से कहा करते - 'आई, मी खेळायला जाऊ शकतो का?' 'आई, मी जातो' या 'आई, मी गो' तब मेरी समझ में नहीं आता कि ये हमारी तरह क्यों नहीं बोलते ! जो हम बोलते हैं, ये उससे अलग क्यों बोलते हैं? तब मेरे नाना ठाकुर श्यामचरण सिंह जी, जो स्वयं भाषाविद एवं साहित्यकार थे, मुझे समझाते कि 'वे लोग महाराष्ट्रियन हैं, उनकी भाषा मराठी है इसलिए वे मराठी बोलते हैं, और हम मध्यप्रदेश के हैं हमारी भाषा हिन्दी है इसलिए हम हिन्दी बोलते हैं।'
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देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है।या यूँ कहें हिन्दी संस्कृत भाषा का ही सरल रूप है।यह एक वैज्ञानिक भाषा है।इस भाषा में कोई उच्चारण दोष नहीं है।इस भाषा को लिखने में स्वरों के मेल के लिए अक्षर नहीं अपितु मात्राओं को उपयोग में लाया जाता है।संस्कृत हर भाषा की जननी है तो हिन्दी सभी भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
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जैसे ही शिल्पा ने घर में कदम रखा, बेटे और बहु ने उसे अजीब नज़रों से देखा। जैसे वो कोई गलत काम करके लौटी हो! उनकी नज़रों को नज़रअंदाज़ करके हॉल के सोफे पर बैठ कर वो मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी। उसे ऐसा करते देख उसके बेटे मनीष का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने तमतमाते हुए शिल्पा से कहा, ''मम्मी, ये सब क्या हो रहा है?''
''क्या हुआ मनीष? तू इतने गुस्से में क्यों हो?''
''आप मुझ से ही पूछ रही हो कि क्या हुआ? क्या आपको पता नहीं कि आजकल आप कैसा बर्ताव कर रही हैं?''
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अच्छा हुआ कि
आकाश हरा नहीं हुआ,
धरती को लेने दी उसकी मन चाही रंगत,
पेड़ों ने बर्फ के रंग न चुराए
और बर्फ रही हमेशा अपने ही रंग में,
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विस्तीर्ण रोशनदान। कौन है जो
रात ढले दस्तक दे कर छुप
जाता है, ख़ुश्बुओं का
कोई ताज़ातरीन
अख़बार
दिए
जाता है, मुझे ज्ञात है मध्यांतर
के बाद का रहस्य, फिर भी
शीर्षबिंदू मुझे चुनौती
दिए जाता है, मैं
चल पड़ता
हूँ उसी
---लघुकथा---नानी दादी के नुस्खे
आज दादी की तबीयत ठीक नहीं है । अक्कू बेटा मुझे कीचन में कुछ काम है तुम दादी के पास बैठकर इनका ख्याल रखो मैं अपने काम निबटाकर अभी आती हूँ।
"हाँ माँ ! मैं यही पर हूँ आप चिंता मत करो, मैं ख्याल रखूंगा दादी का...... दादी ! मैं हूँ आपके पास। कुछ परेशानी हो तो मुझे बताइयेगा" कहकर अक्षय अपने मोबाइल में व्यस्त हो गया।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
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@अनीता सैनी
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फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
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@अनीता सैनी
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बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहनीय भूमिका के साथ विविधताओं से परिपूर्ण पुष्पगुच्छ सी सजी सुन्दर प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार सखी !
जवाब देंहटाएंअद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंप्रेम की गहराई को परिभाषित करता सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति अनीता जी
जवाब देंहटाएंविविधरंगी लिंक्स का सुंदर संयोजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं अनीता जी 💐🌺💐
मेरी पोस्ट को चर्चा के इस अंक में शामिल करनै हेतु बहुत- बहुत आभार आपका 🙏💐🙏
उत्कृष्ट लिंको से सजी शानदार चर्चा प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति
बहुत सुंदर भूमिका के साथ प्रेम को परिभाषित किया है.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं को संजोया है
सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे मान देने का आभार
सादर
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर। मेरी रचना को यहाँ सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार!
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