सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
किसी पुस्तक की चर्चा में मुखपृष्ठ ही दर्शनीय होता है और चर्चा में रहता है लेकिन अंतिम पृष्ठ कवर के बिना पुस्तक का अस्तित्त्व ख़तरे में पड़ सकता है।इसी प्रकार समाज में कुछ महिलाएँ अपनी भूमिका का महिमामंडन किए बग़ैर नींव का पत्थर बन जातीं हैं और समाज के आधारभूत ढाँचे को मज़बूती प्रदान करतीं हैं जिन्हें साहित्य संकेत रूप में पिछले पन्ने की औरतें कहता है जो परंपराओं, रूढ़ियों को गति देतीं रहतीं हैं।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
जीवनभर रहते सभी, इस दुनिया में शिष्य।
जो त्रुटियों से सीख ले, उसका बने भविष्य।।
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होती केवल सादगी, जीवन का आधार।
दर्प भला किस बात का, जीवन के पल चार।।
--हिन्दी साहित्य में ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘ ऐसा प्रथम उपन्यास है जिसका कथानक बेड़नियों के जीवन को आाधार बना कर प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास की शैली भी हिन्दी साहित्य के लिए नई है। यह उपन्यास अतीत और वर्तमान की कड़ियों को बड़ी ही कलात्मकता से जोड़ते हुए इसे पढ़ने वाले को वहां पहुंचा देता है जहां बेड़नियों के रूप में औरतें आज भी अपने पैरों में घंघरू बांधने के लिए विवश हैं।--वर से मेरे द्वारा पूछने पर कि,–"आपसे शादी हेतु सर्वांगीण रमणी मिल जाती जो आपके संवृद्धि में सहायक होती। फिर इनसे...?""आप तन की जोड़ी लगाना चाह रही हैं। मुझे मन से जुड़ी की चाहत थी। जो हमारे घर की धुरी हो सके।" मेरी सहेली के भाग्य के जंग लगने वाले ताला में वक्त ने बड़ी चतुराई से सही बड़ी वाली ही चाभी लगा दिया था।--बिटिया जन्मीसुरभित आँगनखिली कलियाँ हुआ उजालाघटा जीवन तमछाई खुशियाँ !--तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैंउजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल काआफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।--शाम होते ही अगरबत्ती जला देती है माँ.घर के हर कोने को मन्दिर सा बना देती है माँ.मुश्किलों को ज़िन्दगी में हँस के सहने का हुनर,डट के डर का सामना करना सिखा देती है माँ .--
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हिन्दी साहित्य में ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘ ऐसा प्रथम उपन्यास है जिसका कथानक बेड़नियों के जीवन को आाधार बना कर प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास की शैली भी हिन्दी साहित्य के लिए नई है। यह उपन्यास अतीत और वर्तमान की कड़ियों को बड़ी ही कलात्मकता से जोड़ते हुए इसे पढ़ने वाले को वहां पहुंचा देता है जहां बेड़नियों के रूप में औरतें आज भी अपने पैरों में घंघरू बांधने के लिए विवश हैं।
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हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंबेमिसाल प्रस्तुतीकरण
अद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया अनीता सैनी जी।
एक सार्थक भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक पठनीय, सराहनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
सुन्दर सशक्त भूमिका से सजी प्रस्तुति में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता!
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई ।
बहुत सुन्दर लिंक्स आज की चर्चा में ! मेरी रचना को आपने सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति एवं अर्थपूर्ण संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं" जिन्हें साहित्य संकेत रूप में पिछले पन्ने की औरतें कहता है जो परंपराओं, रूढ़ियों को गति देतीं रहतीं हैं।"
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर विचारणीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही सुंदर लिंक्स
जवाब देंहटाएंसराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति
अत्यंत आभार अनीता सैनी जी , मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल देख कर हृदय भावविभोर हो गया।
जवाब देंहटाएंपुनः हार्दिक आभार 💐🙏💐
प्रिय अनिता सैनी जी,
जवाब देंहटाएंयह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि मेरे उपन्यास "पिछले पन्ने की औरतें" पर डॉ वर्षा सिंह जी द्वारा लिखे गए पुनर्पाठ लेख की मेरी पोस्ट को आपने चर्चा मंच में शामिल किया।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🙏
मंच पर प्रस्तुत सभी सामग्री बारम्बार पठनीय है। आपके चयन-श्रम को नमन 🙏
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