सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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सड़क पर
मिल रहा है
सहमा,
बिखरा-सा आदमी,
जकड़ा है
करोना ने
इंसान को
ख़ुद आज़ाद होकर
कर रहा
सारे जहां में
चहल-क़दमी।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित ताज़ा-तरीन रचनाएँ-
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सड़क पर
मिल रहा है
सहमा,
बिखरा-सा आदमी,
जकड़ा है
करोना ने
इंसान को
ख़ुद आज़ाद होकर
कर रहा
सारे जहां में
चहल-क़दमी।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित ताज़ा-तरीन रचनाएँ-
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गीत
"कुदरत का हर काज सुहाना लगता है"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सबको अपना आज सुहाना लगता है।
छिपा हुआ हर राज सुहाना लगता है।।
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उडने को आकाश पड़ा है,
पुष्पक भी तो पास खड़ा है,
पंछी को परवाज सुहाना लगता है।
छिपा हुआ हर राज सुहाना लगता है।।
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गीत
"कुदरत का हर काज सुहाना लगता है"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सबको अपना आज सुहाना लगता है।
छिपा हुआ हर राज सुहाना लगता है।।
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उडने को आकाश पड़ा है,
पुष्पक भी तो पास खड़ा है,
पंछी को परवाज सुहाना लगता है।
छिपा हुआ हर राज सुहाना लगता है।।
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अफ़सोस है दशरथ को,
अयोध्यापति है वह,
पर उसके वश में नहीं है
नुकसान की भरपाई करना.
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मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश...
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश...
मेरे ऐक्वेरियम की वो नन्हींं फिश
देखो जीना हमें है सिखा रही
जब वो आयी तो थोड़ा उदास थी
बहुत प्यारी थी अपने में खास थी
जल्द हिलमिल गयी बदले परिवेश में
हर हालात मन से अपना रही
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संघर्ष की बल्लरी पर सफलता के पुष्प भी खिले
समय के इस मोड़ पर वह अँगुली
आज स्थूल-सी लगी
ज़ुबाँ नहीं आँखें पुकारती-सी लगी
और मैंने चुप्पी की दीवार गढ़ी उसपर
ज़िम्मेदारी की फिर एक तस्वीर टाँग दी।
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बस एक तीर जिगर के पार सा हैं कोई...
बस एक तीर जिगर के पार सा हैं कोई...
रोज रोज की तकरारो में रब्त रिस जायेंगे,
सर्द रातों में खाँसता हुआ बीमार सा है कोई
सारे दर्द सारे शिकवों से मैं जुदा हुआँ
बस एक तीर जिगर के पार सा हैं कोई
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कुछ पलकों में बंद चांदनी,
कुछ होंठों में कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे,
सपनों के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उनके भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
निकल पडे़ हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
कुछ होंठों में कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे,
सपनों के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उनके भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
निकल पडे़ हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
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आज हमारे पूरे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है आज देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्ण जी की जन्म जयंती को संपूर्ण देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है गुरु शिष्य की परंपरा हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और पवित्र हिस्सा है
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भाव उमड़ते कभी बिगड़ते
एक नया आकार लिए।
झूठी इस जीवन माला ने
रूप कई साकार किए।
मौन जगत की भाषा की क्या
बेचैनी कोई जाने।
राज कई.....
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कमल पत्ते-सा गाँव अटा
अभी दीवाली के दिन आये नहीं । अभी तो ये आते हुए सितम्बर की शाम है | बहती हुई हवा में सर्द खुनक दौड़ रही है | मन हो रहा है कि एक खादी का दुपट्टा ओढ़ लें, थोड़ा मोटा कपड़ा होता है न खादी के दुपट्टे का |
अभी दीवाली के दिन आये नहीं । अभी तो ये आते हुए सितम्बर की शाम है | बहती हुई हवा में सर्द खुनक दौड़ रही है | मन हो रहा है कि एक खादी का दुपट्टा ओढ़ लें, थोड़ा मोटा कपड़ा होता है न खादी के दुपट्टे का |
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छाई सारी धुंध छटे
कबसे देखें सूनी आँखें
बँटवारे की लीक हटे
भावों की उर्वर भूमि पर
छाई सारी धुंध छटे
बहे प्रेम तब बरसे करुणा
द्वेष-घृणा पर हो ताला।।
कबसे देखें सूनी आँखें
बँटवारे की लीक हटे
भावों की उर्वर भूमि पर
छाई सारी धुंध छटे
बहे प्रेम तब बरसे करुणा
द्वेष-घृणा पर हो ताला।।
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चंद शिकवे
कभी रूदादे ग़म सुनने को बुलाया होता,
कभी तो दर्द ए दिल फुर्सत से सुनाया होता !
उजाड़े आशियाने अनगिनत परिंदों के,
एक पेड़ मोहोब्बत से लगाया होता !
कभी रूदादे ग़म सुनने को बुलाया होता,
कभी तो दर्द ए दिल फुर्सत से सुनाया होता !
उजाड़े आशियाने अनगिनत परिंदों के,
एक पेड़ मोहोब्बत से लगाया होता !
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निर्मल स्नेह भर अँजुरी में ...
निर्मल स्नेह भर अँजुरी में ...
मन की नदी में
तर्पण किया है पापा भावनाओं से,
भीगा सा मन लिए ...
इस पितृपक्ष
फिर बैठी हूँ आकर, भोर से ही
छत पर, जहाँ कौए के
कांव - कांव करते शब्द
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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बहुत ही सुंदर आज की चर्चा मंच बहुत ही बढ़िया लिंक आपने सम्मिलित की है आज की पोस्ट में और बहुत-बहुत धन्यवाद आपको मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउडने को आकाश पड़ा है,
जवाब देंहटाएंपुष्पक भी तो पास खड़ा है,
पंछी को परवाज सुहाना लगता है।
वाह अति सुन्दर।
अद्यतन लिंकों के साथ चर्चा की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह रावत जी।
सुन्दर रचनाएं ! सार्थक चर्चा ! मेरी रचना को आज के मंच पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंकोरोना की परिणति पर बहुत खूब लिखा रवींद्र जी ...सड़क पर
जवाब देंहटाएंमिल रहा है
सहमा,
बिखरा-सा आदमी,..वाह
कोरोना ने बहुत कुछ ऐसा भी सिखा दिया, जो आगे जीवन में काम आएगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
बढ़िया लिंक्स सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंसमसामयिक सार्थक भूमिका के साथ शानदार चर्चा प्रस्तुति सभी लिंक बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविन्द्र जी !
बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएं"हम डर रहे हैं कोरोना निडर हो चुका है"बिलकुल सही व्याख्या,सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों से सजी सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं से सजी आकर्षक प्रस्तुति! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति, सामायिक भूमिका आकर्षक सार्थक।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक चयन बहुत खास ,सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।