मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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आज की चर्चा का प्रारम्भ
तिरछी नजर वाले गोपेश जैसवाल जी की
ग़ज़ल की एक पंक्ति से करता हूँ
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"गुलो-बुलबुल का हसीं बाग उजड़ता क्यूं है"
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साथी साथ निभाते रहना
माँगे से मिलता नहीं, कभी प्यार का दान।
छिपा हुआ है प्यार में, जीवन का विज्ञान।
विरह तभी है जागता, जब दिल में हो आग।
विरह-मिलन के मूल में, होता है अनुराग।।
होती प्यार-दुलार की, बड़ी अनोखी रीत।
मर्म समझ लो प्यार का, ओ मेरे मनमीत।२।
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वो जो दिन रात रहा करता था गुलज़ार कभी
गुलो-बुलबुल का हसीं बाग उजड़ता क्यूं है
जी-हुज़ूरों से जो यशगान सुना करता था
आज बीबी से फ़क़त ताने ही सुनता क्यूं है
किसी अखबार में फ़ोटो भी नहीं दिखती है
फिर भी मनहूस बिना नागा ये छपता क्यूं है
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इतिहास में किसी की सिर्फ स्तुति या खूबियों का ही वर्णन नहीं होता ! इस दस्तावेज में किसी से भी जुडी हर बात का विवरण लिखा जाता है। भावना जी लेखिका के साथ इतिहासकार भी हैं। उनसे आशा की जाएगी कि अपने विषय का स्याह और सफ़ेद दोनों का सम-भाव से, बिना भेद-भाव बरते चित्रण करें। क्या भावना जी फिल्म इंडस्ट्री की असलियत से अनभिज्ञ हैं ! सभी नहीं, पर क्या एक अच्छी-खासी तादाद द्वारा गलत काम नहीं होते ! तो फिर जया बच्चन का स्तुति गान क्यों ! क्यों उनकी भड़ास को क्रांतिकारी कदम का रूप दे दिया गया !
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हम बीमारी में किसी भी पैथी की कोई दवा भी लेते हैं , तो हमारे भीतर की भावना असर करती है। हम जितने ही विश्वास के साथ डॉक्टर के दिए हुए दवा या सुझाव को ग्रहण करते हैं , हमें उतना ही अधिक फायदा नजर आता है। यहां तक कि यदि डॉक्टर पर विश्वास हो , तो उसका स्पर्श ही रोगी को ठीक करने में समर्थ है। चूंकि एलोपैथी पर हमें पूरा विश्वास है , किसी खास शारीरिक मानसिक हालातों में यदि डॉक्टर की सलाह न हो , तो हम बच्चे को गर्भ में भी आने न देंगे।
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सुबह नींद खुली तो सबसे पहले जून ने जन्मदिन की बधाई दी, फिर दिन भर शुभकामनायें मिलती रहीं. फेसबुक, व्हाट्सएप और फोन पर, नैनी और उसके परिवार के बच्चों ने कार्ड्स बनाकर दिए, उसकी सास ने पीले फूलों का एक गुलदस्ता दिया जिसमें चम्पा के भी दो फूल थे तथा . उसकी देवरानी ने एक दिन पहले ही लाल गुलाब का फूल देकर शुभकामना दी थी, कहने लगी सबसे पहले मेरी बधाई मिले इसलिए एक दिन पहले ही दे रही है. छोटी ननद ने एओल का गीत गाकर बधाई दी. अकेले ही टहलने गयी, जून को तीन दिनों के लिए पोर्ट ब्लेयर जाना है, तैयारी में लगे थे.
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रिश्तों में हो पारदर्शिता अगाध। उस -
दिव्य स्तर पर काश पहुँच पाए
कभी, अंतरतम का कुहासा
इतना घना कि अपना
बिम्ब भी न देख
पाए कभी।
उस
अदृश्य परिधि में जिस बिंदू से निकले
उसी बिंदू पर पुनः हम लौट आए,
और अधिक, और ज़्यादा
पाने की ख़्वाहिश,
अंदर गढ़ता
रहा
दिव्य स्तर पर काश पहुँच पाए
कभी, अंतरतम का कुहासा
इतना घना कि अपना
बिम्ब भी न देख
पाए कभी।
उस
अदृश्य परिधि में जिस बिंदू से निकले
उसी बिंदू पर पुनः हम लौट आए,
और अधिक, और ज़्यादा
पाने की ख़्वाहिश,
अंदर गढ़ता
रहा
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परन्तु उसके आसपास से सब अपने ही दर्द और अपनों की तकलीफों से
त्रस्त उसको अनदेखा सा करते हड़बड़ी में गुजरते ही जा रहे थे ।
तभी एक युवती ने उसके पास आ संवेदना से उसका माथा सहलाया और
उसकी पीड़ा उसके नेत्रों और वाणी से बह चली ,"पता नहीं किस पाप का फल भुगत रहा हूँ !
मेरे साथ तुम भी तो ... अब तो मुझे मुक्ति मिल जाती ।
युवती ने उसको शांत करने का प्रयास किया ,"बाबा ! ऐसा क्यों कह रहे हो ।
सब ठीक हो जायेगा ।"
वह फफक पड़ा ,"बेटे के न रहने पर तुम पर शक करना और साथ न देने के पाप
का ही दण्ड भुगत रहा हूँ मैं ,पर बेटा तुमको किस कर्म का यह फल मिल रहा है
जो मुझ से बंधी हुई इस नारकीय माहौल में आना पड़ता है ।"
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होता है ऐसा ..
स्वाद उतरा हुआ सा
फीका ..मन परास्त
हार मान लेता,
जब काम सधते नहीं
किसी तरह भी ।
तब ही अकस्मात
नज़र पड़ी बाहर
रखे गमले पर ।
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आज के लिए बस इतना ही...!
आज के चर्चामंच पर रोचक रचनाओं से परिपूर्ण सुंदर संचयन के लिए साधुवाद 🙏
ReplyDeleteसुंदर चर्चा ! सभी रचनाकारों को बधाई, मुझे भी आज के अंक में शामिल करने हेतु आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का संकलन,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
ReplyDeleteमयंक सर एवं मंच के सभी व्यवस्थापक सद्स्यों का हृदय से आभारी हूँ कि चर्चा में मेरी रचना को स्थान दिया...
ReplyDeleteधन्यवाद, अनीता जी । चर्चा की बेहतरीन और रोचक रचनाओं के बीच स्थान देने के लिए ।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद किसी ने लिखावट का ज़िक्र किया । अच्छा लगा । लता दी और सरोजिनी नायडू जी के बारे में पढ़ कर मधुर स्मृतियों का जमघट लग गया!
सस्नेह अभिनंदन ।
बेहतरीन रचनाओं का संकलन,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर पहलू को छूती हुई चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteआज सुबह 2 घंटे माथापच्ची करने के बाद भी आज की चर्चा को सुधार नहीं पाया।
ReplyDeleteबेड़ा गर्क हो ब्ल़गर का। जो नया प्रारूप दे दिया ब्ल़गर को।
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बिटिया अनीता सैनी का आभारी हूँ।
सुंदर चर्चा ....
ReplyDeleteविविधताओं से परिपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति एवं संकलन, मेरी कृति को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति...।उम्दा एवं पठनीय रचनाएं।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDelete
ReplyDeleteबढ़िया रचना है भाईसाहब !शास्त्री जी के पास मौक़ा बे -मौक़ा सब मौकों की रचनाएं हैं खुशनसीब हैं ऐसी बीवियां जिन्हें शास्त्री सम ' वो ' मिले।
बहुत सुंदर संकलन
ReplyDeleteआदरणीय ,भाई साहब ,
ReplyDeleteसाहित्यिक मुरादाबाद ब्लॉग पर प्रस्तुत रचना यहां साझा करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत आभार ।