मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक!
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हिन्दी हित
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लो बीता हिन्दी दिवस, खत्म हो गया स्वांग।
किचन और ऑफिस चढ़ी, अंग्रेजी की भाँग।
अंग्रेजी की भाँग, गटककर मुर्गा सोता।
अंग्रेजी रँग बाल, रँगे बाबा का पोता।
चढ़ छज्जे पर मेम, बन गयी देशी सीता।
हिन्दी हित हर हाथ, दिख रहा एक पलीता।।
मेरी दुनिया परविमल कुमार शुक्ल 'विमल'
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भाषा के आकाश पर, बादल हैं घनघोर।
अँगरेजी भी है लचर, हिन्दी भी कमजोर।।
अँगरेजी का हो रहा, भारत में परित्राण।
नौकरशाहों के चले. निज भाषा पर बाण।।
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कल तुम्हारा दूसरा जन्मदिन था! तुम दो साल की हुई! कल का तुम्हारा नाचना, सेलिब्रेशन में हंसना, सब के साथ खेलना, गोल- गोल घूमना और बिना थके अथक स्टैमिना होना. . . असल में शब्द बहुत पीछे छूट जाते हैं| मुझे कल तुम्हारी और एक चीज़ बहुत विशेष लगी| वह तुम्हारे स्वभाव का ही हिस्सा है! तुम्हारी सरलता! सहज भाव! कैसे किसी का मन इतना सरल और शुद्ध हो सकता है? हाँ, हो सकता है| तुम्हे देखते हुए इसका अनुभव आता है| इसलिए कल की बर्थडे पार्टी बहुत ही मिठी थी|
Niranjan Welankar
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स्वार्थ का समुन्दर
दिनोंदिन
रातोंरात
गहरा हो चला है,
शयनरत शाख़ पर
मासूम चिड़िया
मारी जा रही है
जैसे कोई
अहर्निश सताती बला हो।
Ravindra Singh Yadav
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marmagya.net पर Marmagya
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हम रहें कहीं भी नहीं भूलते
जैसे अपनी माँ को,
याद रखेंगे वैसे ही हम
हिंदी की गरिमा को...
जैसे अपनी माँ को,
याद रखेंगे वैसे ही हम
हिंदी की गरिमा को...
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कविता "जीवन कलश" पर पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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मेरा सृजन पर Onkar Singh 'Vivek'
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सार्वभौम सत्ता का स्वप्न रहा
अपूर्ण, शुद्धोधन का हठयोग
न रोक सका सिद्धार्थ
का पथ, समस्त
मायामोह के
बंधन
तोड़ वो एक दिन हुआ बुद्ध... अग्निशिखा : पर
अपूर्ण, शुद्धोधन का हठयोग
न रोक सका सिद्धार्थ
का पथ, समस्त
मायामोह के
बंधन
तोड़ वो एक दिन हुआ बुद्ध... अग्निशिखा : पर
Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल
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हिंदी दिवस है
हमारी भाषा हिन्दी
हमें बहुत प्यार है अपनी भाषा से
हिंदी दिवस मना रहे बड़ा धूमधाम से...
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राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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१-पंख फैलाए बांह पसार हिंदी पहुंची जन -जन द्वार
२-अभिव्यक्ति को सरस बनाए सामर्थ्य की झलक दिखाए .
मेरी सोच !! कलम तक पर अरुणा
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हम सवालों के जवाबों में ही बस उलझे रहे ,
प्रश्न अन-सुलझे नए वो रोज़ ही बुनते रहे.
हम उदासी के परों पर दूर तक उड़ते रहे,
बादलों पे दर्द की तन्हाइयाँ लिखते रहे .
स्वप्न मेरे पर दिगम्बर नासवा
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आज के लिए बस इतना ही...।
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शानदार👌🌻
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों से सजी चर्चा ....
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चामंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा .... नए सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को यहाँ जगह देने के लिए ...
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ।
सादर
बेहतरीन रचनाओं से सजी सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर चर्चा |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |