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रविवार, सितंबर 06, 2020

'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-3816)

शीर्षक पंक्ति : डॉ. सुशील कुमार जोशी जी। 

सादर अभिवादन।
रविवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

दीपक जलकर रौशनी फैलाता है जिसमें ज़माने की बेहतरी का ख़ूबसूरत ख़याल होता। जीवनभर अंधकार से लड़ने की दीपक की सदेच्छा स्तुत्य है। इसी तरह शिक्षक जीवनभर तपकर ज्ञानार्जन करते हुए अपनी विद्या का सहर्ष दान करता है अर्थात स्वयं को जलाकर ज्ञान रूपी प्रकाश संसार में फैलाता है। संस्कार और जीवन मूल्य रूपी अनमोल अक्षय पूँजी सँजोता है समाज और देश को इसे समर्पित करके निर्मलानंद की अनुभूति से ख़ुद को ख़ुश रखता है।

-अनीता सैनी "दीप्ति"
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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ऊँची दूकान
फीका पकवान
फिर भी चल रहीं हैं 
शिक्षा की दुकान
आज के युग में
बिकता है ज्ञान
यही तो है
शिक्षा की पहचान
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दिया लेकिन देखना शुरु कर चुका था 
रोशनी अपने सामने के दिये की
और उसके नीचे के अंधेरे में
एक एक करके जाते कई दिये भविष्य के
यंत्रणायें झेलने के लिये बस सालों साल

उलझते निपटते लगते निखर कर निकलते
कोई भी कहाँ समझ पाया था

तेरे ही एक दिन के पहले दिन ‘उलूक’
तेरा ही प्रिय तेरी ही एक दास्ताँ लेकर तेरे पास आया था

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अब बादल रोता मै हँसता नहीं था,
उसके आंसू पर मज़ा कसता नहीं था,
बदल के आंसू ने हरियाली का मंजर लाया,
सपनो सा था दर्पण, जग को आंसू ने चमकाया,
बादल ने जैसे रोने की जिद थी ठानी,
उसके आंसू धरती पर कर रहे थे मनमानी I
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My Photo
कईं दिनों तक नितिन इशारों में ज्योति से पूछता रहा 'यस' और 'नो' ? कभी ब्लैकबोर्ड पर लिख आता, कभी उसकी कॉपी में, कभी बेंच पर, कभी खेलते टाइम ग्राउंड में। ज्योति देख लेती पर कहती कुछ नहीं। इसे नितिन 'यस' ही समझता और यश राज बैनर की फिल्में ख़ूब देखता और राहुल के सामने एक्टिंग करता।
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जिन्दगी  तूँ  हारने की न बात कर
अभी हौसले में दम है हौसले की बात कर।
चक्रवात उठे या तूफान डर के जीना क्या
हमें संघर्षों की आदत है संघर्षों की बात कर।
तिमिर आक्छादित हो भले ही गगन में
अवसान इसका भी होगा इंतज़ार की बात कर।
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वो नहीं समेंटना चाहती थी
उसका बिखरा श्रृंगार इस बार 
काजल मेघ बन फैलता आसमान में
माथे की बिंदी में बचा था 
केवल एक शून्य
उसके होठों की मुस्कान 
पी गया था भ्रमर धोखे से
अपने गुंजन में करके उसे मुग्ध I
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My Photo
ईर्ष्या और अभिमान हमारे दिल में चुपके से ऐसे प्रवेश कर जाते हैं जिसका हमें अहसास तक नहीं होता और हम उसके शिकार हो जाते हैं, हम उसके वाहक हो जाते हैं। यही नहीं हमारा ज्ञान, अहंकार के पक्ष में तर्क भी देने लगता है। कैसे होता है यह और कैसे बचे इससे।
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  कोरोना के बढ़ते हुए केस से सरकार एवं प्रशासन की चिंता बढ़ती  हीं जा रही थी परन्तु अधिकांश जनता को कोई चिंता हीं नहीं थी। अब भी लोग बिना मास्क लगाये एवं सोशल डिस्टेन्ससिग का पालन पालन किये बिना  अपने अपने घरों से बिना किसी डर भय के निकल रहे थे ।
    प्रशासन ने माइक से जनता के बीच यह प्रचार करवा दिया कि यदि अब भी लोग बिना मास्क लगाये अपने अपने घरों से निकलेंगे तो उन पर कड़ी कार्रवाई की जायेगी एवं उनके वाहनों को जब्त कर लिया जायेगा। प्रशासन की इन तमाम घोषणाओं के बीच लोग अपने अपने घरों से बिना मास्क लगाये निकल हीं रहे थे।
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किसी दावी विहीन देवार्पण
की तरह, न जाने क्या
कहते हैं उसे जादू -
नलिका या
अंग्रेज़ी
में केलिडोस्कोप, न दिखाओ मुझे
मेरा धूसर चेहरा, यूँ जोड़ तोड़
के, रंगीन चूड़ियों के
किसी घूमते
दर्पण की
तरह।
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न्यूज़ स्टूडियो का महौल पूर्णतः शांत था, या फिर यो कहे कोई आग लगाने वाली खबर के ना चलते हर तरफ उदासी छाई हुई थी। चैनल के एडिटर के पास कुछ ढंग का काम नही था इसलिए सभी कर्मचारियों को बुलाकर डांट लगा रहा था। सभी पत्रकार, कैमरामैन मन ही मन भगवान से स्वयं को बचाने के लिए चमत्कार की कामना कर रहें थे।
तब तक एक व्यक्ति जोर से चिल्लाते हुए न्यूज़ रूम में दाखिल हुआ।
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में। 
#अनीता सैनी 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति ,हमारी रचना को शामिल करने के लिएआभार व्यक्त करती हूं।

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  2. बहुत सुन्दर रविवासरीय चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सेनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत प्रस्तुति के साथ बेहतरीन सूत्रों का संयोजन एक लाजवाब भूमिका के साथ । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति अनीता जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. मंच का हृदय से आभार... इसके प्रबंधन की टीम का कार्य अत्यंत सराहनीय है... यें यूँ ही सतत् निर्बाध साहित्य की सेवा में रत् रहे... नित् नये कीर्तिमान स्तापित करता रहे... मेरी तमाम शुभकामनायें इस मंच के नाम...

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