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मंगलवार, सितंबर 08, 2020

"ॐ भूर्भुवः स्वः" (चर्चा अंक 3818)

स्नेहिल अभिवादन 
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
(शीर्षक -आदरणीय अनीता जी की रचना से )
 "ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।"
"गायत्री महामंत्र" प्राणशक्ति (life-blood) के आकर्षण का मंत्र है 
 अर्थात हमारे शरीर को ऊर्जावान करने वाला मंत्र है। 
इस मंत्र के सम्पूर्ण भावार्थ की व्याख्या "आदरणीय अनीता जी" ने अपनी रचना में किया है।
 इस मंत्र के भावार्थ से ही ये समझा जा सकता है कि -
गायत्री उपासना में  ऊर्जा के स्त्रोत सविता देवता की उपासना कर 
उपासक उनसे ये प्रार्थना करता है कि -
"मुझे सद्बुद्धि दे,सन्मार्ग की ओर ले चलें और मेरी आत्मा की शुद्धि कर इसमें वास करें "
जहाँ तक "गायत्री मंत्र" की महत्ता की बात है 
तो वेदों के शोधकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि-
"गायत्री मंत्र ऋग्वेद की सबसे प्रभावशाली मंत्रों में से एक है।"
 ये मंत्र सिर्फ आस्था या विश्वास नहीं है बल्कि इसे वैज्ञानिक स्तर पर प्रमाणित भी
 किया जा चुका है और अब भी इसपर शोध जारी है। 
एम्स की एक डॉक्टर और आई आई टी के एक वैज्ञानिक ने 
कई सालों के शोध से इस बात की पुष्टि की है कि -
इस मंत्र के नियमित जाप से बौद्धिक क्षमता का अनंत विस्तार किया जा सकता है।
 इससे कई तरह के मानसिक रोगों का उपचार भी संभव है। 
वेदमाता गायत्री को नमन करते हुए चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर......
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दोहे "करो भोज स्वीकार" 

 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

दादा जी का था कभी, देखा जैसा रूप। 
वैसा ही अनुमान से, बना दिया प्रतिरूप।। 
-- 
दादा-दादी का नहीं, घर में कोई चित्र। 
मन में मेरे है बसा, उनका मात्र चरित्र।। 
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ॐ भूर्भुवः स्वः 

Gayatri Mantra, Puja Gayatri Mantra in Hindi and Sanskrit - Rudraksha Ratna  | Rudraksha Ratna

हम सभी गायत्री मन्त्र का पाठ करते हैं और उसके महत्व को स्वीकार करते हैं.
कई बार सामूहिक रूप से उस गाते भी हैं.
गायत्री मन्त्र  से होने वाले लाभ और प्रभाव का भी वर्णन एक-दूसरे से करते हैं. 
किन्तु इसके वास्तविक अर्थ से सम्भवतः हममें से अधिक लोग परिचित नहीं हैं.
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कभी यूँ ही कुछ भी लिख दिया भी जरूरी है सामने रखना अपने ही आइने के :

 मुआफ़ी के साथ कि कूड़ेदान का ढक्कन बंद रखना चाहिये लेखकों ने अपने घर का 

सुशील कुमार जोशी - उलूक टाइम्स  
सारे मोहरे शतरंज के
चौसठ खानों से बाहर निकल कर
सड़क पर आ गये हैं 
और
एक हम हैं
खुद ही कभी एक घर चल रहे हैं
और कभी
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कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.
विभा रानी श्रीवास्तव - "सोच का सृजन" 
दादा जी प्रात:काल जैसे ही गाँव से अपने पोते
 सतेन्द्र के पास पहली बार लखनऊ पहुँचे 
तो आदर–सम्मान की औपचारिकताओं के पश्चात् 
उन्होंने स्नानादि करने की इच्छा व्यक्त की। 
  सतेन्द्र इस बात से भलीभाँति अवगत था,  
अतः उसने अपनी पत्नी से कहा, 
 "दादाजी पक्के कर्मकांडी ब्राह्मण हैं, 
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"5 सितम्बर" 

My photo
Meena Bhardwaj - आहान 
कल-कल बहते झरने सी हँसी थी उसकी । भूमिका अक्सर स्कूल के गेट में घुसती
तो वो हँस कर गुड मार्निंग कह अपनी हथेली भूमिका की तरफ फैला देती ।
स्कूल में किसने बनाया होगा यह नियम पता नहीं
लेकिन ग्यारहवीं कक्षा की लड़कियां नियम से स्कूल आने वाली शिक्षिकाओं की स्कूटी या
साइकिल गेट से लेकर साइकिल स्टैंड पर खड़ी कर के आती ..
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"वो कौन" रहे तुम 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा - कविता "जीवन कलश" 
मौन रहे तुम, हमेशा ही, "वो कौन" रहे तुम!
देखा ना तुमको, जाना ना तुमको!
संभव था, पा लेता, इक अधूरा सा अनुभव!
गर एहसासों में, भर पाता तुमको!
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माँ 

Happy Mother's Day 2020: Munawwar Rana Maa Shayari Collection - 'माँ' पर  कहे गए मुनव्वर राणा के चुनिंदा शेर... - Amar Ujala Kavya
Sujata Priye -अपराजिता 
मन- मंदिर में तेरी  मूरत।
वात्सल्य की  है तू  सूरत।
तेरे चरणों  में  सब तीरथ।
चमके तेरी कितनी सीरत।
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आईने से कथोपकथन - - 

 शांतनु सान्याल - अग्निशिखा  
सीढ़ियों की कमी नहीं, बाँध आओ
सिंह द्वार में तोरण, लेकिन
याद रहे तुम्हें उतरना है
इसी ज़मीन पर,
और ये
Alaknanda Singh -अब छोड़ो भी  
 प‍िछले कुछ समय से ध्रुवीकरण करने के नाम पर
 राजनीत‍ि कर रहे दलों ने इसे ''कैक्टस'' बना द‍िया, 
जहां फूल की तरह द‍िखने वाला पैसा...
 र‍िश्तों में कांटे बोकर उन्हें जख़्मी कर जाता है
 और इस तरह तार तार हुए र‍िश्ते समाज में
 राक्षसी प्रवृत्तिायों को जन्म देते नज़र आते हैं। 
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बहुत हो गया परिवार 

गगन शर्मा, कुछ अलग सा - कुछ अलग सा 
आज हर ऐसे चैनल पर जिसकी  नकेल विदेशी  हाथों में है,  ऐसे ही ऊल - जलूल, 
 तर्कहीन, अतिरेक  से भरपूर, बिना किसी तथ्य या शोध के धार्मिक कथानक परोसे जा रहे हैं ! 
इधर एक नया चलन O.T.T. का शुरू हो गया है,  जिस पर किसी का  भी नियंत्रण नहीं है
 और  कुछ  भी दिखाने की आजादी है ! 
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जाने चले जाते हैं कहाँ ..... 

अक्सर, मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया से जाने वाले कहाँ चले जाते हैं ?
कहते हैं  इस जहाँ  से परे भी कोई जहाँ है, 
हमें छोड़ शायद वो उसी अलौकिक जहाँ में चले जाते हैं। 
क्या सचमुच ऐसी कोई दुनिया है ?
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आज का सफर यही तक 
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें। 
कामिनी सिन्हा
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19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी कामिनी जी! मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सुजाता जी, सादर नमन आपको

      हटाएं
  2. हार्दिक आभार आपका... कई लिंक्स से रचना पढ़ ली
    उम्दा चयन अच्छा लगा। साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. आध्यात्मिक भूमिका से सुसज्जित सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. विविध विषयों पर पठनीय रचनाओं की खबर देते सूत्रों का सुंदर संकलन, आभार कामिनी जी 'डायरी के पन्नों से' को स्थान देने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचना संकलन उम्दा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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