सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय डॉ.टी एस दराल जी की रचना 'एक लेखक की व्यथा ' से
लेखन लेखक का जुनून होता है,
वह जब भी खाता पीता
जागता सोता है।
मन में विचारों का ताँता लगा रहता है,
लेकिन दिल में बस
यही कामना रखता है।
कि लोग उन्हें पढें,
तारीफ़ करें या गलतियां निकालें,
पर आपकी धरोहर को संभालें ।
क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है,
पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दोहे "प्यारा नैनीताल"
शीतल-सुखद पहाड़ में, चढ़ो चढ़ाई-ढाल।
शान उत्तराखण्ड की, प्यारा नैनीताल।।
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एक रात
श्यामलाल से हो गई मुलाकात,
बात बात में रामलाल ने कहा श्यामलाल ,
कैसा है हाल चाल ?
पढ़ी ?
वो बोला क्या ?
रामलाल ने कहा, किताब।
मन की विचारधारा में
बहने का प्रयास ,
क्षण गुणकर ,
रंग बुनकर ,
जीवन सा ,
खिल उठने का प्रयास ,
माँ भर देती है डिब्बे में
पूरियाँ,भाजी और थोड़ा-सा अचार,
रख देती है थैले में पानी के साथ
और पकड़ा देती है मुझे जाते-जाते.
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बाय-बाय नानी बाय-बाय दादी
ख़त्म हुयी सारी आजादी...
इतनी सुन्दर इतनी प्यारी
बीत गयी छुट्टी मनोहारी
खुल़े हैं स्कूल ख़ुशी है आधी
खत्म हुयी सारी आजादी ...
इससे पहले कि फिर से
तुम्हारा कोई अज़ीज़
तरसता हुआ दो बूँद नमी को
प्यासा दम तोड़ दे
संवेदनाओं की गर्मी को
काँपते हाथों से टटोलता
शाम चार बजते ही रास्ते में देखती रहती माँ
स्कूल से आने वाले बच्चों में ढूंढती रहती माँ
जब तक मैं नहीं दिख जाता खड़ी रहती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
गीत "नभ में घन का पता न पाता"
जन-जीवन है अकुलाया सा,
कोमल पौधा मुर्झाया सा,
सूखा सम्बन्धों का नाता।
नभ में घन का पता न पाता।२।
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कोकिले सुन तान तेरी
हो मुदित मन घूम नाचे
है भुवन आनंद छाया
बिन खरच के सूम नाचे।
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मार्च, 1980 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बागेश्वर में इतिहास विषय में प्रवक्ता के पद पर मेरी नियुक्ति हुई थी.एक सड़े-गले और घुचकुल्ली से 7 कमरों के पुराने डाक बंगले में बने इस महाविद्यालय से बड़े तो मैंने सैकड़ों प्राइमरी स्कूल्स देखे थे.मेरी निराशा की कोई सीमा नहीं थी लेकिन मेरे साथियों ने मुझे महाविद्यालय के लिए बनने वाली नई भव्य किन्तु अधूरी इमारत दिखाई जिसमें कि अच्छे क्लास-रूम्स, स्टाफ़-रूम्स, अच्छी लाइब्रेरी, विशाल कार्यालय, स्टेडियम, आदि सब कुछ बनने वाले थे
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सार्थक लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|
सारगर्भित रचनाओं से परिपूर्ण सरस और सुंदर अंक ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनीता सैनी जी नमस्कार, आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने हेतू!!बहुत बढ़िया लिंक्स संयोजन !!
जवाब देंहटाएंमेरे दोनों ब्लॉगों की पोस्ट चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद अनीता सैनी जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा अंक, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.आभार.
जवाब देंहटाएंसटीक शीर्षक और सही विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी और आकर्षक पठनीय लिंक्स।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता जी।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोरंजक अंक ….सभी को हार्दिक बधाई !
एक लेखक की व्यथा…
दोहे…प्यारा नैनीताल…
अचानक ग़ायब हुए लोग…
कविता ही तो है…
माँ भर देती है डिब्बे में….
खिड़की पर खड़ी इन्तज़ार करती माँ…
गीत-नभ में घन का पता न पाता…
बाल कविता- बाय बाय नानी…
प्रथम वर्षा…
गली मोहल्ले कॉलेज…सारी ही रचनाएं पठनीय व मनोरंजक…!
और अन्त में मेरी पोस्ट - मन के हारे हार है… का चयन करने का बहुत शुक्रिया अनीता जी🙏😊