मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन लिंक।
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(http://www.hindi-abhabharat.com)
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आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी देखें कि
कहाँ गड़बड़ है।
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दोहे "बिगड़ गया है वेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"गरमी में घनश्याम"
सोच समझकर बात को, तोल-तोलकर बोल।।
आगे बढ़ते जाइए, मिल जायेगी राह।।
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समीक्षा “चिन्तन के स्वर” (अभिनव निबन्ध)
"अशोक निर्दोष"
(समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हिन्दी साहित्य में गद्यलेखन की बहुत सारी विधायें हैं किन्तु उनमें सबसे सशक्त विधा निबन्ध लेखन ही है। जिसके लिए शीर्षक प्रथमिकता, प्रस्तावना, विषयविस्तार और उपसंहार आवश्यक अंग होते हैं। विद्वान और अनुभवी साहित्यकार अशोक निर्दोष ने कृति में लिखे निबन्धों में इस मर्यादा का सम्यकरूप से निर्वहन किया है और अपने निबन्धों में यह सिद्ध कर दिया है कि आप शब्दों के कुशल चितेरे भी हैं।
साहित्यकार इस संकलन में सत्रह निबन्धों को स्थान दिया है-
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सोन्य बरगो भळके रूप।
भाळ रै पैर घुँघरू बंध्या
पाणी प्यासा कुआँ कूप।।
गूँगी गुड़िया अनीता सैनी 'दीप्ति'
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- हाइकु गीत
- खुद बेवफादूसरों से चाहतेकरें वो वफा .सच कहा तोतमाम दोस्त मेरेहो गए खफा .
- साहित्य सुरभि -दिलबाग सिंह विर्क
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सागर लहरें उर्मिला सिंह
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Sologamy: क्षमा का ये साहसी फैसला है या सिर्फ़ सनक?
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कोज़प्ले यानि पौशानाटिका
कोज़प्ले की शुरुआत जापान में पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में हुई, जब कुछ किशोर रोलप्ले वाले खेलों और माँगा कोमिक किताबों के पात्रों की पौशाकें पहन कर मिलते थे। 1990 के दशक में कमप्यूटर खेलों का प्रचलन हुआ जब गेमबॉय जैसे उपकरण बाज़ार में आये तो कोज़प्ले और लोकप्रिय हुआ। तब से आज तक इस कोज़प्ले या पौशानाटिका का दुनिया में बड़ा विस्तार हुआ है। नये कमप्यूटर खेल, विरच्युल रिएल्टी, एनिमेटिड फ़िल्में आदि के पात्र भी इस परम्परा का हिस्सा बन गये हैं। जो न कह सके
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पाठकीय में कमल कपूर जी की पुस्तक छंद विधान के अनुसार लेखन का अपना सौन्दर्य होता है| मात्र ४८ मात्राओं में कोई धारदार बात कह देना दोहा छंद की विशेषता है| इसी ध्र को महसूस करते हुए हम यह पुस्तक पढ़ेगे| पुस्तक लेखन की दुनिया के सहृदय लेखक रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी को समर्पित की गई है| उसके आगे लेखिला का गुरु के प्रति समर्पित दोहै है जो गुरु के प्रति लेखिका का सम्मान प्रदर्शित करता है|
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देखो! हम अब वरिष्ठ लेखक हो गये हैं! फिर सत्ता पक्ष का मंत्री अपना चार छः गाड़ियों का असला लेकर सिक्यूरीटी के साथ लाल बत्ती और सायरन बजाते न चले तो कौन जानेगा कि मंत्री जी जा रहे हैं. शायद यही सोच कर हम भी हर संभव दरवाजे की घंटी बजाते हैं कि लोगों को पता तो चले कि हम अब वरिष्ठ लेखक हो गये हैं. देखो! हम आज के अखबार में छपे हैं.
उड़न तश्तरी .... समीरलाल समीर
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भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान
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मेरी दुनिया विमल कुमार शुक्ल
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सच क्या बस उतना होता है
जितना हम तुम देखा करते ?,
कुछ ऐसा भी सच होता है
अनुभव करते सोचा करते
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सेकुलर समाज में ही मुसलमानों का भविष्य बेहतर है - क़मर वहीद नक़वी |
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यह कम्युनिस्ट होने की तोहमत कैसी है?
पिछले कई दिनों से अपने 'वामपंथी' या 'कम्युनिस्ट' होने की तोहमत झेल रहा हूं। जब भी मैं कोई ऐसी टिप्पणी करता हूं जिसमें भावुकता की जगह संवेदना की बात होती है, उन्माद की जगह विवेक का पक्ष होता है, अंधविश्वास की जगह तार्किकता की दलील होती है, मंदिर-मस्जिद झगड़ों को व्यर्थ बताने का उपक्रम होता है, इतिहास के तथ्यों पर बात करने की कोशिश होती है, धार्मिक और जातिगत वर्चस्ववाद की जगह लोकतांत्रिक सहमति की वकालत होती है, राष्ट्रवाद के हुजूमी अतिरेक की आलोचना और स्वस्थ आधुनिक नागरिकता का बचाव होता है तो अचानक कई विद्वान लोग किसी कुएं से प्रगट होते हैं और मुझे 'वामपंथी' करार देते हैं। यह बहुत मज़ेदार स्थिति है।
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किसी के कहने सुनने से
कुछ ना होता पर
जब मन को धुन आए
बिना कहे रह न पाए |
मनमोजी होना मन का
कोई नई बात नहीं है
पर खुदगर्ज होना है गलत
यही समझ समझ का है फेर |
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कोई इंसान नज़र आए तो बुलाओ उसको
https://youtu.be/sSa1_mabHJk
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
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पढ़ने की बात करूँ तो पढ़ने के मामले में मई का माह अप्रैल से बेहतर ही रहा। अप्रैल में जहाँ मैंने चार रचनाएँ ही पढ़ी थीं वहीं इस बार मई में दस का आँकड़ा छू गया। आजकल व्यस्तता के चलते पढ़ना कम हो रहा है और इस कारण हल्का फुल्का पढ़ने पर जोर है। मई के माह में मैंने पाँच कॉमिक बुक्स, चार उपन्यास और एक उपन्यासिका संग्रह पढ़ी। भाषा के हिसाब से देखा जाए तो इस बार केवल हिंदी की ही रचनाएँ मैंने पढ़ीं। हाँ, इन रचनाओं में से एक बाँग्ला से हिंदी में अनूदित रचना थी तो इसे भाषाई विवधता के मामले में जैसा देखना चाहें देख सकते हैं। |
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यूँ भी यहाँ का हाल होगा, सोचा न था
यूँ शहर बदनाम होगा सोचा न था
बुदबुदाते लबों पर आयतें होंगी ज़रूर
दिल में नफरत हाथ में हथियार होगा सोचा न था
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आज के लिए बस इतना ही...!
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शुक्रिया मेरी पोस्ट को इस में शामिल करने के लिए । और नई पोस्ट से परिचय करवाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए मंच का अतिशय आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय मरी रचना को स्थान देने के लिए बढिया संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ सराहनीय।
'धरती धोरा री ' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
सादर प्रणाम
Thanks for included p ost
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंरूपचन्द्र जी, चिट्ठों के सुन्दर आकलन के लिए बधाई तथा उनमें मेरे ब्लाग को जगह देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंaabhar aadarneeya roopchand shashtri ji.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया संयोजन 🌹मेरी रचना भी शामिल करने के लिये शुक्रिया🙏
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को चर्चा में स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंडोमेन (http://www.hindi-abhabharat.com)
जवाब देंहटाएंदोषपूर्ण था अतः उसका पुनः नवीनीकरण नहीं कराया है। अब Blog Address है-
https://hindilekhanmeridrishti.blogspot.com/
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक समूह
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