शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
दोहा बत्तीसी "उगता है आदित्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ठोकर खा कर ही मिले, जग में सीधी राह।
लेकिन होनी चाहिए, मन में सच्ची चाह।१३।
कभी जुदाई है यहाँ, कभी यहाँ पर मेल।
है संयोग-वियोग का, प्यार अनोखा खेल।१४।
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नीलकंठ बन
धरो गले में ,
दिल दिमाग
से दूर रखो।
व्यक्ति, व्यक्ति
लालच देगा,
प्रेम ,झूठ का
धंधा होगा ।
जमी धूलि कबसे पुरातन
विचारें कहाँ पल अड़ा है।।
बचा कौन-सा अब धड़ा है।।
*****
जाँच-रिपोर्ट बनकर आई,
पढ़कर डॉक्टर हुए हैरान,
सूर्य के भीतर बैठा कोई शैतान!
फिर ऑपरेशन तत्क्षण हुआ,
डॉक्टर ने चांद को मुक्त किया,
ज़ुकाम सूर्य का ठीक हुआ
पर चंदा थोड़ा झुलस गया,
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#नदियां तो बहती है ,हर बाधायें सहती है ।
पर न रोके से रुकी है ,
न जंगल पहाड़ में अटकी ।
समन्दर से जा मिलने का ,
मन में इरादा जो ठहरा है ।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
जवाब देंहटाएंमेरे दोहे की पंक्ति को चर्चा का शीर्षक बनाने के लिए बहुत-बहुत आभार|
कल शनिवार को चर्चा लगाने का मेरा दिन है, इसलिए कल की चर्चा मैं करूँगा|
जवाब देंहटाएंसादर सूचनार्थ!
प्रभावशाली रचनाओं से सजी सुंदर चर्चा !!
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सुंदर रचनाओं से सजी सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
आदरणीय रविन्द्र सर मेरी प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा इस अंक 'ठोकर खा कर ही मिले, जग में सीधी राह' (चर्चा अंक 4457) पर सम्मिलित करने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी संकलित रचनाएं बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं एवं बधाइयां ।
सादर ।
आदरणीय रवींद्र जी, चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार। सार्थक और प्रेरक रचनाओं से सजे सुंदर अंक के लिए सभी आदरणीय रचनाकारों को अनेकानेक शुभकामनाएं व बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सादर सस्नेह।