सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी सृजन से-
माँ ममता का रूप है, पिता सबल आधार।
मात-पिता सन्तान को, करते प्यार अपार।।
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सूना सब संसार है, सूना घर का द्वार।
बिना पिता जी आपके, फीके सब त्यौहार।।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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पितादिवस पर विशेष "पिता सबल आधार"
पूज्य पिता जी आपको, नमन हजारों बार।
बिना आपके है नहीं, जीवन का आधार।
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बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
आंस
बहते गालों पर
ढाढ़स देता
पिता के खुरदरे
हाथों का स्पर्श।
मेरे लड़खड़ाते कदमों
के दौरान भी कभी नहीं
मिला मेरे नाजुक हथेलियों को
पिता की उंगलियों का भी धैर्य
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है,
विशाल....निर्भीक....अडिग
समय के साथ ढलते हैं ,
बदलते हैं ,
गिरते हैं
पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं ,
आज मैं भी उसी दौर में हूँ
मुझसे भी वही उम्मीदें है
आप हमारे लिये जीते थे
अब हम उनके लिये जीते हैं
पाँव नन्हें याद में अब
स्कंध का ढूँढ़ें सहारा
उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर
चाहतीं नभ का किनारा
प्राण फूकें पाँव में वह
सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।
भाग्य की हँसती लकीरें
जब पिता उनको सजाता
बिन पापा अस्तित्व मेरा भी सच है मिट ही जाता
दुनियां की इस भीड़ मे अक्सर मेरा मन भी घबराता
लेकिन मेरे अकेलेपन मे साथ खड़े वो होते हैं
अपने आराम को गिरवी रखकर वो मेरे सपने संजोते हैं
उसकी नहीं थी अतीत में
लेशमात्र भी दिलचस्पी
वो साक्षी भाव का श्रोता था
प्यार,मनुहार और तकरार के किस्सों का
उनिंदी-सी सोई शांत चित्त,
सानासर की झील झिलमिल है।
नत्था टॉप से टिप टिप टीपती,
जलधाराओं की हिलमिल है।
आषाढ़ तो धरती और अंबर का मिलन दिवस तो आइए हम इस मिलन दिवस के गवाह बने, फागुन के लड़कपन और सावन के यौवन में डूबे आषाढ़ को धरती के ताप को हर लेने दीजिए। गर्मी की कसक को अगर कम करना है तो आषाढ़ को ठसक के साथ आने दीजिए इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण को लेकर हम सब बेहद जागरूक हो जाएं।
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"मैम साब! ये फूल सुबा से बहुत ढूंढ़ा, नहीं मिला। आप को काँ से मिला?"
"नहीं पता, सुबह जगदीश लाया। क्यों तूने फूल ढूंढा?"
मैंने उसकी ही टोन में बोला।
"मातारानी को चढ़ाने के बास्ते मेम साब!"
जगदीश मेरे घर का रसोईया था। उसने अपना नाम मेरे मुँह से सुना तो दौड़ा-दौड़ा ड्राइंग रूम में भागा चला आया।
"यस मेम! आपने बुलाया मुझे?"
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अभी तो जिंदगी बाबूजी को लेकर दौड़ी थी लेकिन धीरे धीरे कैंसर अंदर पैर पसारने लगा था और उनको उर्सला अस्पताल में एडमिट कराया गया , बताते चलें वह वहीं से फार्मासिस्ट के पद से रिटायर्ड थे। परिचित डॉक्टर, दायरा कुछ तो सुविधाजनक बन रहा था।
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक्स शानदार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचनाओं के पुष्प गुच्छ से सुवासित आज का यह खूबसूरत गुलदस्ता। अत्यंत बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंपिता दिवस के रंग|
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी की चर्चा के संग||
बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति!
बहुत-बहुत आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|
मुझे यहां स्थान देने के लिये आपका आभार....सभी रचनाएं बेहतरीन
जवाब देंहटाएंमहोदया आपका बहुत-बहुत आभार मेरी इस रचना को आज के इस विशेष अंक में शामिल करने के लिए लिए, मैंने सभी रचनाकारों की रचना पढ़ी सभी गुणी जनों ने बहुत सुंदर लिखा है सभी को पितृ दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाईयाँ, धन्यावाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट है सभी, मुझे रूबरू कराने के लिए आप का धन्यवाद !
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