सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी की रचना से )
माँ सी तस्वीर ये भारत की दिलों में सबके
चाहता है तू ये तस्वीर जला दे कोई
भारत माता की जय हो
जब तक मां भारती के सपूतो के तन में एक भी सांस है उनके दामन को कोई छू भी नहीं सकता
माँ भारती के चरणों को नमन करते हुए चलते हैं
आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...
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"मनहरण घनाक्षरी छन्द विधान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
ग्रीष्म-काल चल रहा, बादल हाथ मल रहा
ऐसे में लोगों को, शीतल जल पिलाइए
पानी का भण्डार सीमित, जल को करो सुरक्षित,
नीर को न व्यर्थ आप नाली में बहाइए
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किसकी साजिश थी हरे वन को जला देने की
सूखते पेड़ को पत्ता अब हरा दे कोई
होंठ पर ठुमरी हो कव्वाली हो या प्रभु का भजन
शाम ख़ामोश है महफ़िल तो सजा दे कोई
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माँ भारती के वीर सपूत शिवजी को सत-सत नमन शिवाजीः सुशासन, समरसता, सामाजिक न्याय के वाहक
शिवाजी का नाम आते ही शौर्य और साहस की प्रतिमूर्ति का एहसास होता है। अपने सपनों को सच करके उन्होंने खुद को न्यायपूर्ण प्रशासक रूप में स्थापित किया। इतिहासकार भी मानते हैं कि उनकी राज करने की शैली में परंपरागत राजाओं और मुगल शासकों से अलग थी। वे सुशासन, समरसता और न्याय को अपने शासन का मुख्य विषय बनाने में सफल रहे। बिखरे हुए मराठों को एक सूत्र में पिरोकर उन्होंने जिस तरह अपने सपनों को साकार किया वह प्रेरित करने वाली कथा है।------------------
सुख- दुख में साथी सच्चा
सखा मेरे बालपन का
व्यथा में भरता मधुरता
जीवन में रस घोलता है
मन विहग कब बोलता है
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सत्यं ब्रुयात, ब्रुयात प्रियम,
कभी साँच को आँच नहीं।
न ब्रुयात, सत्यं अप्रियम,
भले ख़िलाफ़त, बाँच सही।
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मार्डन लव और लॉकडाउन
जगह आयरलैंड में एक बड़े शहर से छोटे शहर जा रही एक ट्रेन हैं | समय 2020 का हैं जब दुनियां में कोरोना का आगमन हुआ था और सभी जगह पहला दो हफ्ते का लॉकडाउन लगना शुरू हुआ था | ट्रेन से लड़की लॉकडाउन के कारण कॉलेज से अपना सारा सामान ले माँ के घर जा रही है | उसे सफर केलिए एक अच्छे सहयात्री की तलाश हैं | -------------------
भीषण गर्मी में भी फल देने में पीछे नहीं हैं केले व पपीते के पेड़
आजकल गर्मी के तेवर बड़े तीखे हैं। नौतपा आकर चला गया लेकिन मौसम का मिजाज कम होने के स्थान पर और भी अधिक गरमाया हुआ है। इंसान तो इंसान प्रकृति के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, फूल-पत्तियाँ कुछ मुरझाते तो कुछ सूखते चले जा रहे हैं। हमारे बग़ीचे का भी हाल बुरा है। छोटे-छोटे कई नाजुक पौधे तो दम तोड़ चुके हैं और कुछ यदि दो-चार दिन बारिश न हुई तो उन्हें भी बेदम होते देर नहीं लगेगी। पानी का एक समय निर्धारित हैं और वह भी मुश्किल से एक घंटा आता है। -------------------------------
सरकारी ओहदेदारों में कॉमनसेंस अभाव, उदाहरण देखें
आज दो तीन खबरें ऐसी पढ़ीं कि जहां कानूनन काम करने, सरकारी योजनाओं के मुताबिक विकास कराने और फिर उस विकास से आमजन को सुविधाएं उपलब्ध कराने का अधिकार रखने वाले इन ‘सज्जनों’ की सोच पर तरस आता है, कि क्या हम सभ्यता के उस कंगलेपन तक पहुंच चुके हैं जहां से ये ‘काठ के उल्लू’ हमें अपनी उंगलियों पर नचाने के लिए ही सरकार से इतना वेतन पाते हैं। क्या सचमुच हम भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं,
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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट का लिंक सम्मिलित करने के लिए,
आपका आभार कामिनी सिन्हा जी!
सुन्दर सूत्रों से सजी श्रमसाध्य प्रस्तुति । मेरी पोस्ट को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर रचनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति। अत्यंत आभार और बधाई!!! सादर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम
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