बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन लिंक।
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माना तुम हो हसीन किसी से कम नहीं
पर यह खूबसूरती जाने कब बीत जाएगी
यह भी तो पता नहीं |
तुम सोचती ही रह जाओगी
जब दर्पण में अपना बदला हुआ रूप देखोगी
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त्यागना
विद्याहीन गुरू त्याग, बंधु त्याग बिनु प्रीति।
देश काल भी त्यागिए, जँह कोई नहि नीति ।।1।।
जुड़वाँ भ्राता
जुड़वाँ भ्राता भले ही, गुण में नहीं समान ।
जैसे कांटा अरु बेर, गुण में हैं आसमान ।।2।।
लक्ष्मी
न दंपति में लड़ाई हो , न मूर्ख पूजा जाय।
घर में कुछ संचय होय, लक्ष्मी दौड़ी आय।।3।।
-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
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मैं पहचान हूँ,
पहचान हूँ तुम्हारी,
तुम्हारे संस्कारों की,
तुम्हारी सभ्यता की |
तुम्हारे पहनावे की,
तुम्हारी भाषा की |
तुम्हारे विश्वास की,
तुम्हारी आस्था की |
मेरी आवाज़ सीमा सचदेव
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ये आम रास्ता नहीं- रजनी गुप्त अब यहाँ सवाल यह उठता है कि मृदु उस घर में उस लड़की से मिलने आई थी जिसका बलात्कार हुआ था। ऐसे में किसी और के घर में पहली बार जाने के बाद बाहर से आने वाला व्यक्ति कैसे..किसी की रसोई में घुस कर पानी और चाय लेकर आ सकता है? वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस 152 पृष्ठीय उपन्यास के पेपरबैक संस्करण का मूल्य 150/- रुपए है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।
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मुझे इडली खाते देखते मजदूर विस्मित थे| उनके लिए कढ़ी कचौड़ी, आलू सब्ज़ी कचौड़ी, चटनी कचौड़ी आदि तो समझने वाली बात थी| यह कचौड़ी जैसी सफ़ेद चीज जिसमें कुछ भी भरा हुआ न था, सब्ज़ी मिली दाल के साथ खाना एक स्वादेन्द्रिक परिभ्रमण था| उन्हें संतोष होता कि भरवां इडली का परिचय चावल के आटे की कचौड़ी कहकर दिया जाता, पर भरवां भी तो नहीं थी| उस समय तक तो मैं खुद भरवां इडली, मसाला इडली, तली इडली और भुनी इडली जैसे पाककला पराक्रमों से अनिभिज्ञ था| खैर उस दिन, सभी का स्थिर निश्चिय था कि यह इडली नामक पदार्थ केवल कभी कभार खाया जा सकता है और इस से रोज पेट भरना असंभव है|
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फ़िक्र" करने वालों को तो "आपको" ही पहचानना होगा
"तारीफ़" करने वाले बेशक़
"आपको" पहचानते होंगे,
मगर "फ़िक्र" करने वालों को तो
"आपको" ही पहचानना होगा।
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जिसे रदीफ से पहले ही,
प्रयोग में लाया जाता।
जाने के लिए तैयार जो,
गजल के संदर्भ में शब्द,
इसको पाया जाता है।
KMSRAJ51-Always Positive Thinker
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अम्मा बाबू जी को समर्पित एक गीत
ईश्वर से कुछ ना मांगें हम
सब कुछ तुमसे पाया है
राम सिया से मात पिता की
हम बच्चों पर छाया है
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मेरी दुनिया विमल कुमार शुक्ल
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पाठक के रूप में- छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह गुरतुर मया पर गुरतुर मया- छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह रचनाकार-रमेश कुमार सोनी प्रकाशक - श्वेतांशु प्रकाशन, नई दिल्ली-११००१८ मूल्य- २५०/- किसी राज्यविशेष की भाषा में संग्रह पढ़ना, समझना और लिखना थोड़ा कठिन है। अपनी तरफ से कोशिश कर रही हूँ कि वही हाइकु लूँ जो समझ पा रही हूँ। त्रुटि की पूरी संभावना है, सोनी सर सही अर्थ बताएँ और मार्गदर्शन करें। यह पुस्तक मुझे श्वेतांशु प्रकाशन की ओर से मेरी पुस्तकों के साथ उपहार स्वरूप भेजी गई है। इसके लिए मैं प्रकाशन का आभार प्रकट करती हूँ।
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India Art Fair 2022, Delhi में देखी गई कलाकार `सोमा दास ‘ की क्रम से लगी ये पाँच पेंटिंग्स `Made For Each Other ’ मेरे दिल में बस गई है ….ध्यान से देखिए तो इस पेंटिंग में छिपी एक कविता भी नजर आती है मुझे —
तुम चाहते हो न धरा सी
घूमती रहूँ तुम्हारे इर्द-गिर्द
काजल सा आँज लूँ
पलकों की चिलमन में
और खुशबू सा बसा लूँ
साँसों की लय में …!
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मेरा भी जी तितलियों पर मचल जाए तो क्या कहिए
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सीपिकाएँ "नेट के सम्बन्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
नेट के सम्बन्ध
एक क्लिक में शुरू
दूसरी में बन्द
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आज के लिए बस इतना ही...!
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सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से सजी सुंदर चर्चा प्रस्तुति।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय शास्त्री जी । आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन और वंदन
सभी संकलन उम्दा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , सार्थक और विविधता-पूर्ण चर्चा प्रस्तुति।मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए हृदय से आभार 😊🙏
जवाब देंहटाएंBahut hi acchi Aaj Ke Chacha Manch ki post Aur meri post ko Shamil karne ke liye बहुत-बहुत dhanyvad aadarniy Shastri ji
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