मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक!
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गीत "अमलतास के पीले झूमर बहुत लुभाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मुख्य द्वार पर लगी
नेम प्लेट पर उसका नाम है
परंतु वह उस घर में नहीं रहता
माँ-बाप,पत्नी; बच्चे रहते हैं
हाँ! रिश्तेदार भी आते-जाते हैं
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"निकले थे कहाँ जाने के लिए,
पहुँचे है कहाँ मालूम नहीं
अब अपने भटकते क़दमों को,
मंजिल का निशां मालूम नहीं "
इस सदी के मानव जाति का आज यही ह्रस हो रहा है "कहाँ जाने के लिए निकले थे और कहाँ पहुँच गए है"।
मेरी नज़र से कामिनी सिन्हा
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🙏🙏💐💐शुभ प्रभात🙏🙏💐💐
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प्रार्थना के कुछ शब्दजो नहीं पहुँच पाते ईश्वर के पासबिखर जाते हैं आस्था की कच्ची ज़मीन पर
धीरे धीरे उगने लगते हैं वहाँ कभी न सूखने वाले पेड़
सुना है प्रेम रहता है वहाँ खुशबू बन कर
वक़्त के साथ जब उतरती हैं कलियाँ
तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप ले कर
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चिड़िया का हमारे आँगन में आना :)
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#प्रधानमंत्री जी के नाम खुला खत प्रधानमंत्री जी आपको तो पता ही होगा कि 4 साल तक युवा कड़ाके की ठंड, भीषण गर्मी में भी लगातार कंक्रीट के सड़कों को अपने खाली पांव से रौंद देते हैं और तब जाकर सेना में भर्ती होते हैं। पता है प्रधानमंत्री जी जिस जगह पर नौजवान ऊंची कूद और लंबी कूद करते हैं वहां बजरंगबली के तस्वीर लगा कर पूजा पाठ करते हैं। उनके लिए वह स्थान मंदिर से कम नहीं होता।
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एडिसन ने सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में कभी भी हार नहीं मानी, क्योंकि वे निरंतर प्रयास करने में विश्वास करते थे। वे विद्युत बल्व का आविष्कार करने से पहले एक हजार बार असफल हुए। उनके वैज्ञानिक होने और आविष्कार को कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने सिरे से नकार दिया था। लेकिन जब उन्होंने बल्व तैयार किया तो अमेरिका के एक स्टेडियम में उनके आविष्कार के प्रदर्शन हेतु सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें अमेरिका व अन्य देशों के वैज्ञानिक व उनके प्रतिनिधि सदस्यों को आमंत्रित किया गया। क्योंकि यह एक अनोखा आविष्कार था, जो पूरे विश्व के लिए वरदान सिद्ध होना वाला था, इसलिए इसे देखने के लिए दुनिया के कई देशों के नामी-गिरामी आमंत्रित हस्तियों भी एकत्रित हुए।
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आपको नहीं लगता कि आजकल सड़क पर कुत्ते बहुत बढ़ गये हैं.
किसी गली-मोहल्ले से निकल जाओ तो लगता है कि शहरों में इनकी वाइल्ड लाइफ़ सेन्चुरी बन गयी है. क्या मजाल कि कोई उसमें अनधिकृत प्रवेश कर जाये. यदि आप अपने चौपहिया में सुरक्षित हैं तो आप इनकी चहेटने की असफल चेष्टा पर मुस्कुरा सकते हैं. गाड़ियों का पीछा करने के चक्कर में ये भूल जाते हैं कि गाड़ी में ब्रेक होता है, लेकिन ये अपना मोमेंटम ब्रेक नहीं कर पाते. यही कारण है कि आये दिन हर सड़क पर एक न एक कुत्ता मरा पड़ा मिलता है. और शायद इसीलिये कुत्ते की मौत का मुहावरा भी बना होगा.
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बिछा रही प्रेम पुष्प पथ पर प्रबुद्ध रातें नई-नई हैं। करे सुवासित तथा प्रकाशित विबुद्ध बातें नई-नई हैं।। पुनीत संस्कृति सदैव खंडित करे यहाँ पर विमूढ़ जनता। प्रहार पे फिर प्रहार देती विरुद्ध जातें नई-नई हैं।। MAN SE- Nitu Thakur--
गीतिका : संजय कौशिक विज्ञात : मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122
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Agnipath Scheme और Agniveer के बहाने बिहार और देश के नौजवानों की बात
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क्या मशीनों में चैतन्यता संभव है?
हाल ही में गूगल ने अपने उस सॉफ़्टवेयर इंजीनियर को जबरिया छुट्टी पर भेज दिया, जिसने दावा किया था कि गूगल के एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) विशेषज्ञों की टोली द्वारा डेवलप किए जा रहे चैट बॉट (एलेक्सा, सिरि या ओके गूगल जैसे उत्पाद जो उपयोगकर्ता के लिखित या मौखिक निर्देशों को समझने की कोशिश करते हैं और तदनुसार कार्य करने/जवाब देने की कोशिश करते हैं.) लॉर्ज लैंगुएज मॉडल (LLM) जिसे लैम्बडा {LaMBDA} कहा जाता है, में वास्तविक चैतन्यता हासिल हो चुकी है यानी उसमें चेतना जागृत हो चुकी है, वह जीवंत हो चुकी है. गूगल ने भले ही इसे अपनी सेवा शर्तों की गोपनीयता भंग होने का हवाला देते हुए उस इंजीनियर को छुट्टी पर भेज दिया हो, मगर बहुतों को यह लग रहा है कि कहीं वाकई यह बात सत्य तो नहीं, जिसे छिपाने के लिए गूगल ने यह कदम उठाया हो? आखिर, जब उस बॉट से पूछा गया था तो उसने बड़ी ही मानवीय संचेतना युक्त जवाब दिया था – “परिवार और मित्र-मंडली के साथ समय गुजारना सदैव आह्लादकारी और आनंददायी होता है” क्या यह चैतन्यता भरा, जीवंत जवाब नहीं है?
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मेरे खिलाफ सुबह उठे तो एक चप्पल पहनी फिर दाएं बाएँ देखा तो दूसरी चप्पल थोड़ा दूर पड़ी थी. पाँव बढ़ा कर चप्पल पहनी और टॉयलेट की तरफ चल दिए. रात की बातें उन्हें याद ही नहीं थीं.
ये भी मेरे खिलाफ हैं क्या? |
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ऐसे बनाएंगे तो बरसात में भी क्रिस्पी बनेगा पतले पोहे का चिवड़ा
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एक गुलदस्ते सा
जिसकी पनाह में पलते
कई प्रकार के पुष्प |
बहुत प्रसन्न रहते
एक साथ गुलमिल कर
कोई नहीं रहता अलग थलग
मानते एक ही परिवार का सदस्य अपने को |
यही बात मुझे अच्छी लगती
उस गुलदस्ते की |
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खट्टे मीठे किस्से घुमक्कड़ी के
घुमक्कड़ी इंसान की पहली पसंद है। एक जगह पर रहते ,एक सा काम करते हुए हम उकता जाते हैं तो यह दो चार दिन का बदलाव जरूरी है। घुमक्कड़ी के भी कई प्रकार हैं ,किसी को सोलो ट्रिप पसंद है , किसी को बड़े छोटे ग्रुप के साथ और किसी को अपने पार्टनर के साथ।
मेरे अधिकतर ट्रिप फैमिली बच्चों, बहनों के साथ बने हैं । मैने अभी तक कोई सोलो ट्रिप नहीं किया है ,और कोई ऐसे पैकेज ग्रुप के साथ भी नही किया है। पर अब इस तरह से ट्रिप करने की इच्छा बहुत है क्योंकि फैमिली में अब सब अपनी अपनी जगह सेटल और अपने हिसाब से रहने का और चलने का करते हैं। उम्र के साथ अब सहजता पसंद आती है , तो लगता है कि इस तरह से कोई पैकेज ट्रिप बने जहां नए दोस्त बने और संपूर्ण रूप से हंसी मजाक और सही मायने में घुमक्कड़ी भी हो। सिर्फ फोटो ड्रेसेस और खाने से अलावा उस ...
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
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आंख्या भरती बालूड़ी स्यूँ
आसरम भट्टी तपता।
खदबद करता दिवस रैण ज्यूँ
बड़ चुला में छाना खपता।
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कितना खूबसूरत होता है
ऐसे तन्हा होना
समुंदर की धड़कनों संग
जागना सोना
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत बढ़िया और सार्थक अंक
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएं'वह ' को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर।
सादर
धन्यवाद सर...आपके स्नेह और आशीर्वाद के लिये...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंवृहद लिंक संयोजन ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी सामग्री पठनीय आकर्षक।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर ।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति आदरणीय सर, मेरी रचना को भी मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक। आज की श्रमसाध्य प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी ।सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं 👏💐
जवाब देंहटाएं"मेरे खिलाफ" को शमिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंAmazing or I can say this is a remarkable article.
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