नमस्कार , हाज़िर हूँ एक ब्रेक के बाद ….सज गया है काव्य मंच और मंच पर सारी कविताएँ अपनी पात्रता निभा रही हैं …देखना यह है कि आपके मन के अनुरूप कौन सी रचना आपको भाती है …आज विशेष चर्चा में आपको मिलवा रही हूँ दो शख्सियत से ….उनकी रचनाओं में से चुनी हुई रचनाएँ आपको भी पसंद आएँगी ..ऐसी आशा करती हूँ …ब्लॉग पर पहुँचने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं …चलिए बढते हैं फिर मंच की ओर … |
वाणी शर्मा जी गद्य और पद्य दोनों ही विधा में माहिर हैं …अपने मंतव्य बहुत सलीके से और बेहिचक लिखती हैं …जहाँ तक मैंने इनकी दी हुई टिप्पणियाँ देखी हैं वहाँ भी इनकी अपनी पुख्ता राय होती है ..बात करते हैं काव्य सृजन की ..इनकी कविताएँ कहीं बहुत भावनाप्रधान होती हैं तो कहीं कहीं विचारोत्तेजक भी ..शालीनता से और दृढ़ता से अपने भावों को व्यक्त करती हैं ..व्यंग भी सटीक होता है ..कभी कभी ऐसी कविता भी पढ़ने को मिलती है कि सोच को झकझोर कर रख देती है ..बाज़ी दर बाज़ी चल रहा है चाल कोई… स्पष्टता इतनी है कि जहाँ से लिखने की प्रेरणा मिलती है वहाँ का लिंक देना भी नहीं भूलतीं .. भावनाओं में बह कर जब लिखती हैं तो पढ़ने वालों की आँखें भी नम हो जाती होंगी ..मैं और क्या कर सकती हूँ माँ….इसके अतिरिक्त कुछ रचनाओं को आप देखें … मत रोको उन्हें उड़ने दो सिखाओ उन्हें कि खिंच सके खुद अपनी लक्ष्मण रेखाएं ... क्यूंकि मुश्किल होता है लांघना खुद अपनी खिंची लक्ष्मण रेखाओं का इस कविता में एक लडकी के जीवन में कब कब और कैसे बदलाव आता है …बहुत सटीक विश्लेषण किया है .. अब चुप रह कर अपनी औकात में ..दिनोदिन निस्पृह होती जाती वह इस रचना में माँ के माध्यम से घर की हर स्त्री के लिए कहा है कि घर की महिलाएं ही रिश्तों को बनाना और निबाहना जानती हैं ..और मजबूत होती जाती वह खुश अपनी औकात में रहने लगी है वह क्यूंकि रूबरू है जीवन के अंतिम सत्य से वह बस माँ ही जानती है .याद आते हैं मुझेपीतल के वे छोटे-बड़े टोपिये माँ दूध उबाल देती थी जिनमे दूध कभी फटता नहीं था ... माँ उसमे कलाई करवाती थी बस माँ ही जानती है ... कलई चढ़ाना ... बर्तनों पर भी रिश्तों पर भी ... कैसे विष पनपता है नारी हृदय में ज़रा उसको भी जानते चलिए … विषकन्याइस पहले घूँट से ही मगर जो बच जाती हैं और सीख जाती है आंसू पीकर मुस्कुराना उपेक्षा सहकर खिलखिलाना ************* और अंततः होती हैं अभिशापित पायें जिसे चाहे नहीं .... चाहे जिसे पाए नहीं .... आक्रान्ताओं ... इन पर हंसो मत इनसे लड़ो मत इनसे डरो ..... ये करने वाली है तुम्हारे नपुंसक दंभ को खंडित तुम्हारी सभ्यता को लज्जित |
अरुण चंद्र राय से बहुत से पाठक परिचित हैं …इनकी हर रचना मन में कहीं गहरे उतरती है …जब से मैंने इनकी रचनाओं को पढ़ना प्रारंभ किया तब से अब तक नियमित पाठिका हूँ …साधारण सी दिखने वाली चीज़ों में यह गहरे भाव भर कर कविता कह जाते हैं .. कपड़े सुखाती औरतें …..कील पर टंगी बाबूजी की कमीज़.. इसके उदाहरण हैं …हर कविता एक नया बिम्ब लिए होती है और अद्भुत चित्र प्रस्तुत करती है ….आप भी देखें कुछ रचनाएँ .. आग आग जिजीविषा है जिज्ञासा है जूनून है जरुरी है.. क्योंकि तूलिका और तालिका आपके लिए व्यक्ति भी ए़क वस्तु ही है तूलिका जहाँ भरती है सपनों में रंग तालिका करता है सच्चे झूठे आंकड़ो का भव्य प्रदर्शन |
और अब चर्चा सप्ताह की विशेष रचनाओं की …जिनमें आपको कुछ नए लोग और कुछ प्रतिष्ठित लोग मिलेंगे …उम्मीद है कि मेरा यह प्रयास आपको अच्छी रचनाओं तक ले जाने में सहायक होगा … |
राकेश खंडेलवाल जी जाने माने गीतकार हैं ..उनकी हर रचना अद्भुत शब्दों के चयन से सुसज्जित होती है ..इस बार बहुत प्यारा गीत ले कर आये हैं …आप भी ज़रूर पढ़ें .. तुम्हें देख मधुपों का गुंजनतुम्हें देख बज उठे बांसुरी, और गूँजता है इकताराफुलवारी में तुम्हें देख कर होता मधुपों का गुंजन हुई भोर आरुणी तुम्हारे चेहरे से पा कर अरुणाई अधरों की खिलखिलाहटों से खिली धूप ने रंगी दुपहरी संध्या हुई सुरमई छूकर नयनों की कजरारी रेखा रंगत पा चिकुरों से रंगत हुई निशा की कुछ औ; गहरी |
शोभना चौरे जी अपनी कविता "स्त्रियाँ " के माध्यम से बता रही हैं कि स्त्री द्वारा किये गए हर कार्य में सौंदर्य विद्यमान होता है …जब वो खाना बनाती हैं तो लगता है कि पेटिंग कर रही हैं ..किस तरह समय की धुरी बनी होती हैं …आप भी इस बेहतरीन रचना का आनन्द लें .. राजनीती की बिसात पर भले ही बिछाई गई हो कभी ? आज राजनीती की किताब है स्त्रियाँ इन पंक्तियों में शायद द्यूत क्रीडा में द्रोपदी को दांव पर लगने का प्रसंग छिपा है |
करण समस्तीपुरी जी एक बहुत प्रभावशाली कविता कह रहे हैं जिसमें प्रवाह है ..जैसे बाती जल कर आशा का संचार करती है ..वैसे ही यह कविता भी मन को आशान्वित कर रही है साँझ भयी फिर जल गयी बातीसाँझ भयी फिर जल गयी बाती !जल-जल मदिर-मदिर, झील-मिल, कोई अतीत का गीत सुनाती ! साँझ भयी फिर जल गयी बाती !! | अनामिका जी इस बार अपने मन की भावनाओं को समेटने और सहेजने की बात बताते हुए कह रही हैं की इनको सहज बना लूं … तो कुछ और कहूँ. अपने दिल की उदासी को छुपा लूँ तो कुछ और कहूँ अपने लफ़्ज़ों से जज्बातों को बहला लूँ तो कुछ और कहूँ. अपनी साँसों से कुछ बेचैनियों को हटा लूँ तो कुछ और कहूँ धूप तीखी है, जिंदगी को छाँव की याद दिला दूँ तो कुछ और कहूँ |
जीवन की आपा - धापी में हर इंसान अपनी रोज़ी रोटी कमाने में लगा रहता है .इसी बात को इंगित करते हुए ललित शर्मा जी कह रहे हैं कि दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं?हाड़-तोड़ भाग-दौड़फ़िर दिमागी दौड़ भाग जीवन में विश्राम नहीं दो रोटियाँ कितना दौड़ाती हैं? |
डा० अजमल खान की एक तरही मुशायरे में शामिल गज़ल पढ़िए धनक बिखेर रहे अब्र ..धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाऐं हैं फलक पे झूम रहीं सांबली घटाऐं हैं. गुलो बहार बगीचे हुये दिवाने से अजीब कैफ मे डूबी हुई हवाऐं हैं . | के० के० यादव जी बड़ी रूमानी सी कविता लाये हैं … तुम्हारी खामोशीतुम हो मैं हूँ और एक खामोशी तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं तुम्हारे एक-एक शब्द मेरे वजूद का अहसास कराते हैं |
सूर्यकान्त गुप्ता जी की आज उमडत घुमडत सोच ज्वलंत समस्या प्रदूषण पर विचार कर रही है ..आज पर्यावरण पर सबको सोचना चाहिए ..आप भी पढ़ें …शायद कुछ प्रेरणा मिल सके .. प्रदूषण के कितने प्रकाररोड जाम है;दुपहिया तिपहिया बहुपहिया वाहन फेंके धुंआ, करें हैरान, कर 'ध्वनि-संकेत' का शोर बहरे हो गए कान, हो गई नजर कमजोर धूल स्नान कर कर के हो जाती जनता धुलिया बदल जाता है गाँव, शहर संग जनता का भी हुलिया जय जोहार........... |
एम० ए० शर्मा “सेहर" उबाऊ ज़िंदगी से बाहर निकालने के लिए कह रही हैं कि बहार लिखने का मन था आजदम तोड़ते रिश्ते बहुत देर डगमगाते हैंइस कोशिश में सहारा मिले तो टांग दें ज़ज्बात उस पर दूर अहम् की चादर ओढ़े उम्मीद हाथ बांध मुस्कुराती है | आम्रपाली शर्मा किसी से मिलने के एहसास को बयाँ करते हुए कह रही हैं . अहसासइतने सालों बाद मिले तुम खामोशी से सुनते हुए बरसों पहले की तरह आज भी देखती रही शाम के साथ गहराता तुम्हारी आंखों का रंग आज ज्यादा लगा रैग्युलर कौफी का भी फोम . |
1. कोई तकरार लिक्खे है कोई इनकार लिखता है हमारा मन बड़ा पागल हमेशा प्यार लिखता है 2. किसी को धन नहीं मिलता किसी को तन नहीं मिलता लुटाओ धन मिलेगा तन मगर फिर मन नहीं मिलता 3. शख्स वो सचमुच बहुत धनवान है पास जिसके सत्य है, ईमान है प्रेम से तो पेश आना सीख ले चार दिन का तू अरे मेहमान है 4. मेरी जुबां पर सच भर आया कुछ हाथों में पत्थर आया मैंने फूल बढ़ाया हंस कर मगर उधर से खंजर आया |
भक्ति रस में डूबी अशोक व्यास जी की रचना पढ़िए हर पल में दीखे मनमोहनगीला स्पर्श घनश्याम का स्नेह निर्झर हरिनाम का चहुँओर छाया उसका नर्तन मुरली आलोक छू पाये मन वह श्याम सलौना मन भाये हर रोम कथा उसकी गाये | सुरेश यादव जी सपनों के बारे में कुछ अलग ही अंदाज़ रखते हैं … अपनी बातसपना : सांप बचपन की रातें घने जंगल सी सपना - सांप सा नींद डसी जाती रही बार-बार काटा रातों का जंगल खोजा सपना मिला जहाँ - पत्थरों से मारा घायल सपना खो जाता रहा हर बार |
पी० सी० गोदियाल जी में एक जज़्बा है अपनी बात को सीधे पाठक तक पहुंचाने का ..धारदार व्यंग लिखते हैं …आज की कविता भी कुछ ऐसा ही कहती है .. |
दीपशिखा वर्मा लायी हैं गरमा गर्म मुलायम नज़्म !इनकी नज्में आपस में बातें करती हैं और इंतज़ार गरमा गर्म नर्म नयी नज़्म का … मेरी नज़्म , गीत , ग़ज़ल , कविताएँ कभी कभी गोले में बैठ कर बतियाती हैं - खोल खोल के अपने जेवर बिछा देती हैं एक दुसरे के सामने | ज़िंदगी में हर इंसान की न जाने कितनी चाहतें होती हैं …उसी पर सुमन सिन्हा जी ने अपनी लेखनी चलाई है … चाहिए, बस चाहिएक्या चाहिए इन्हें नाम - शोहरत धन - दौलत मिल जाये तो? फिर और चाहिए, और, और... न मिले तो, कैसे भी चाहिए... |
अपर्णा मनोज भटनागर एक बहुत संवेदनशील रचना लायी हैं ….उन लोगों को कह रही हैं जो देश से बाहर बसे हुए हैं … तुम तो बसे परदेशमैंने देखा है - तुम्हारा गाँव उसी वैमनस्य से लड़ता -झगड़ता , फसलें घृणा की काटता ...नस्लें उपेक्षा की बांटता |
क्षमा सिमटे लम्हे मेरे मन के पर कह रही हैं कि --- न हीर हूँ,न हूर हूँ..न हीर हूँ,न हूर हूँ , न नूर की कोई बूँद हूँ, ना किसी चमन की दिलकश बहार हूँ... खिज़ा में बिछड़ी एक डाल की पत्ती हूँ... | पारुल जी इस बार कुछ उलझन ले कर आयीं हैं …नज़्म का हर शब्द दिल में उतरता चला जाता है ..आप भी जानिए उनकी मुश्किल एक ही मुश्किल थी कि उसकी कोई हद नहीं थी चाह थी मुद्दत से मगर वो 'जिद' नहीं थी # देर तक बैठा था तन्हाई की फांक लिये इश्क रूहानी था पर वो अब तक मुर्शिद नहीं थी # |
शेखर सुमन जी प्यार में दे रहे हैं प्यार का तोहफाआज के मुबारक दिनमैं तुझे एक तोहफा देना चाहता हूँ | ऐसा तोहफा जो सबसे निराला हो | पाकर जिसे तेरा मन भी मतवाला हो | वो तोहफा मेरे प्यार का उपहार भी हो | |
मयंक सक्सेना जी एक बहुत सुन्दर कविता लाये हैं … बीज कभी नहीं मरते हैं..कभी मन सेरोपे गए कभी अनजाने में गिर के ज़मीन पर दब गए ज़मीन में जैसे थोपे गए | अर्चना तिवारी आज पक्षियों की भावना को कविता में रच कर लायी हैं …गौरैया के सारे क्रिया कलाप कितनी सूक्ष्मता से कहे हैं आप भी पढ़ें .. एक गौरैया नन्ही सीएक गौरैया नन्ही सी नीड़ से निकली पहली बार नील गगन को छूने की चाह ह्रदय में लेकर आज फुदक रही है डाली-डाली पंख फैलाए पहली बार |
डा० अजीत अपने ब्लॉग “शेष फिर” पर आज के हालातों को बयाँ कर रहे हैं … अंजामअब जीने का रोजाना अन्दाज बदलना पडता है भीगें पर वाले परीन्दे को परवाज़ बदलना पडता है जवाब उनसे मांगू क्या अपनी हसरत का रिश्तों का लिहाज करके सवाल बदलना पडता है | नित्यानंद ज्ञान जी टी वी पर बाबाओं से और रेडियो पर लव गुरुओं से परेशान हैं ..उनकी यह परेशानी उनकी कविताओं में साफ़ झलकती है … तीन छोटी कवितायेँरेडियो पर लव गुरु और -- टीवी पर बाबा अपनी -अपनी दुकान खोलकर कान और नाक पकड़ कर निकल रहे हैं लोगों की हवा . |
मंसूर अली हाशमी की गज़ल पढ़िए आत्म मंथन पर .. 'न' होने का होना.....'कुछ नहीं' थे ये तसल्ली फिर भी है,'शून्य' से संसार की रचना हुई. कहकशां दर कहकशां खुलते गए, क्या अजब ये देखिये घटना हुई. |
बेटियों के ब्लॉग पर रवीश कुमार जी यमुना नदी से क्या कह रहे हैं जानिये इनकी कविता में यमुना तुम ऐसे ही बहते रहनाअब तो बता दोफैल कर अपने ही दामन में भींगोते हुए आंचल को बहते हुए धारा प्रवाह जी कैसा मचलता है | राणा प्रताप सिंह अपने ब्लॉग ब्रह्माण्ड पर एक गज़ल कह रहे हैं तारीकियों में चमके हैं जो माहताब सेसाकी बना दे जाम जरा बेहिसाब से मेरा ना कुछ भी होगा जरा सी शराब से शब बीतने से पहले क़यामत ही आ गई दीदार ना जरा सा मिला उस नकाब से |
वृद्धग्राम पर महेंद्र जी की कविता प्रस्तुत की गयी है ..जिनकी उम्र ७५ वर्ष की है ..उनके कवि मन को पढ़िए जो उन्होंने आज अपनी स्थिति के बारे में रचा है .. मौत की शक्ल को ढूंढ रहा हूंमौत की शक्ल को ढूंढ रहा हूं, मिलती ही नहीं, क्यों गुम है, वह खड़ी चौखट पर, यह समझता कोई नहीं, सरक-सरक कर चलने वाला, जीवन पागल बिल्कुल नहीं, |
डा० अभिज्ञात नए चिट्ठाकार हैं ….आप भी उनके कवित्व से रु - ब- रु होइए … ख़्वाब देखे कोई औरमेरे साथ ही ख़त्म नहीं हो जायेगा सबका संसार मेरी यात्राओं से ख़त्म नहीं हो जाना है सबका सफ़र अगर अधूरी है मेरी कामनाएं तो हो सकता है तुममें हो जायें पूरी |
स्वप्न मंजूषा जी की एक गज़ल जो कह रही हैं कि यादें किस कदर किरकिरी के समान चुभती है .. फिर याद तेरी किरकिरी बन बिंदास चुभती रही...जोड़ कर टुकड़े कई उस आईने के आज तक अक्स ले हाथों में मैं ख़ुद से दरारें भरती रही हो सामने ताबूत जैसे, ऐसे पड़ी थी ज़िन्दगी जिस्म शोर करता रहा और रूह उतरती रही |
देश और समाज की विसंगतियों पर डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी व्यथित और क्षुब्ध हो कर आज कह रहे हैं "स्वतन्त्रता का नारा है बेकार"जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।। जिनके बंगलों के ऊपर, बेखौफ ध्वजा लहराती, रैन-दिवस चरणों को जिनके, निर्धन सुता दबाती, जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार। उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार। |
आज का साप्ताहिक काव्य मंच का समापन कर रही हूँ समीर लाल जी की गज़ल से …गज़ल से पहले जिस घटना के माध्यम से उन्होंने माँ और पत्नि की खूबियां कहीं हैं वो कोई अनुभवी ही कह सकता है … और गज़ल बस लाजवाब … यह सब पढ़ना है तो क्लिक करें … चकमित पत्नी!!मंत्र कुछ सिद्ध जाप लें तो चलें तिलक माथे पे थाप लें तो चलें सुनते हैं बस्ती फिर जली है कोई चलो हम आग ताप लें तो चलें |
आशा करती हूँ कि आज यहाँ प्रस्तुत किये गए चिट्ठे आपको पसंद आयेंगे …आपके सुझावों और प्रतिक्रिया का इंतज़ार है …फिर मिलते हैं नए काव्य कलश को लेकर …आगले मंगलवार …तब तक के लिए …………. नमस्कार |
बहुत महनत से सजाया है आज का चर्चा मंच |बधाई कई लिंक्स बहुत ह्रदय स्पर्शी हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
बहिन संगीता स्वरूप जी!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच को सँवारने के लिए आप बहुत मेहनत करती हैं!
--
आज का काव्य मंच बहुत ही उम्दा रूप में पेश किया गया है!
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आभार!
वाह-वाह,बहुत बढिया-उम्दा चर्चा के लिए आभार
खोली नम्बर 36......!
चर्चा करना भी वास्तव में बहुत मेहनत का काम है।
जवाब देंहटाएंआपके नि:स्वार्थ श्रम को सैल्युट करता हूँ।
आभार
चमकदार प्रयास का परिणाम अच्छी चर्चा ।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा.....
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को भी शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
meri kavita shaamil karne ke liye shukriya....
जवाब देंहटाएंbas meri photo nahi hone ka thoda dukh hua.....
umeed hai meri aane waali kavitayein bhi is manch ka hissa banegi...
sundar links se bharpoor sundar charcha....
जवाब देंहटाएंhave read few and will be reading the rest!
with all appreciation for ur hard work ....
regards,
बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
Oho bahut hi pasand aaye chitthe...abhi padhe jaa rahe hain...beech hee me ruk comment kar rahi hun!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चाजगत मे शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया। वाकई मे संगीता जी की मेहनत तारीफ-ए-काबिल है। मै तो पहली बार अपनी ब्लाग दूनिया से बाहर निकला हूं सभी सुधी पाठको का अपने ब्लाग शेष फिर पर स्वागत है..।
जवाब देंहटाएंडा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.monkvibes.blogspot.com
www.paramanovigyan.blogspot.com
bahut badhiyaa sangeeta ji... aapki charcha ka intezaar rehta hai
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच हर बार ऐसा गुलदस्ता लेकर आता है कि पाठक तृप्त हो जाता है.
जवाब देंहटाएंवाणी जी, अरुण जी, अभिज्ञात जी और समीर लाल जी के ब्लोग्स ने विशेष प्रभावित किया.
आपने मेरे ब्लॉग की कविता को पसंद करते हुए अपनी कड़ी में जोड़ा इस हेतु मैं आपकी आभारी हूँ.
सादर!
SANGEETA JEE, itne logon kee rachanaaon ko ek saath kalaatmak dhang se prastut karane ke liye bahut saaree badhaaiyaa.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार ...
जवाब देंहटाएं@@ शेखर सुमन जी ,
जिस वक्त आपकी रचना चुनी थी उस समय आपकी फोटो आपके ब्लॉग पर मुझे नहीं मिली थी ...इसी लिए रचना के साथ जो चित्र था उसे मैंने लिया था ...आगे जब कभी आपकी रचना चर्चा मंच पर आएगी तब आपकी फोटो भी ज़रूर आएगी ...
शुक्रिया
shukriya sangeeta ji, yahan aakar sabhi tarah ke zaayeke mil jaate hain .."bas maa hi jaanti hai" naamak rachna ne dil chhoo liya .
जवाब देंहटाएंaabhaar :)
DEEPSHIKHA VERMA
।खूबसूरत लिंक्स के साथ खूबसूरत मंच सजाया है………………काफ़ी नये नये लिन्क मिले………………आभार्।
जवाब देंहटाएंare baap re itne sare achhe links ...bahut kuchh rah gaya hai padhne ko ..abhi jati hoon.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंआपके श्रम की ,आपकी कर्तव्य निष्ठां की कायल हो गई हूँ |बहुत बहुत आभार इस ब्लाग संकलन के लिए |
मुझे चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्वाद |
बहुत खूबसूरती से चर्चा मंच सजाया है अपने...मेरी कविता को स्थान देने के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच का नया अंक देख कर विस्मित हो जाता हू कि आप कितना अध्ययन करती हैं और कितनी गंभीरता से अध्यनन करती हैं... नए ब्लागरों से लेकर स्तापित ब्लोगीरों को स्थान देकर आज का मंच ए़क सम्पूर्ण मंच है... इस बीच खुद को ऊपर पाकर ना केवल उत्साह बढ़ा है बल्कि प्रेरित भी हुआ हू.. लिखने को भी और पढने को भी.. आपने मेरी कविताओं के इतना समय दिया.. देख कर बहुत अच्छा लगा.. यह मेरे लिए आशीर्वाद के रूप में काम करेगा...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सर्वप्रथम तो बहुत शुक्रिया मेरे मन के भावों को इस मंच पर जगह देने का.
वैसे ज़िन्दगी उबाऊ जरा भी नही है बस..तुझसे नाराज़ नही ज़िंदगी हैरान हूँ की तर्ज़ पर लिखा था :))
वक्त के अभाव में कलम भी नाराज़ रहने लगी है , बस फुर्सत मिलते ही बहार लिख दी और ऊपर से आपके सराहने से फूल भी खिला खिला उठे :)
इस मंच पर से बहुत ही उम्दा और अर्थपूर्ण रचनाओं के रचनाकारों से मुलाकात कराने का भी बहुत आभार !
आपके द्वारा सजाया गया ये मंच यूँ ही मुस्कुराता रहे, और सभी मित्रों की ख़ुशी और आपसी सौहार्दय का कारण भी बने बस इसी कामना के साथ
शुभ दिवस के मंगलकामनाएं !
' सेहर '
sangeeta ji..kuch naye chehre dikhe hai charcha mein..shayad mere liye naye ho..rachnaayen sundar hai aur phir ek baar mujhe shamil karne ke liye aabhari bhi hoon!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर वृद्धग्राम की रचना के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकुछ लोग कितना श्रम करते हैं।
एक बेहतरीन कार्य जिसकी जितनी प्रशंसा की जाये, उतनी कम है।
संगीता जी आपका फिर से धन्यवाद।
harminder singh (VRADHGRAM)
jitni rachnayen yahaan jitni mili ..utni hoi padh paya... samay mila to poora padhunga...
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुपजी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, बधाइयां और शुभकामनाएं
जुड़ने और जोड़ने की सृजनशील यात्रा को विस्तार देने वाली आपकी समर्पित, संवेदनशील चेतना को
नमन.
अशोक व्यास
बेहद लाजवाब रही आज की चर्चा ... वाणी जी और सभी की रचनाओं का परिचय अच्छा लगा .... मुझे भी आज की चर्चा में आपने शामिल किया ... बहुत बहुत धन्यवाद ....
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसूरती से सजाया है ये चर्चा मंच...इतने सारे रचनाकारों की बेहतरीन कृतियों का संग्रह पसंद आया...चर्चा में मेरी कविता रखने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइसमें कोई दो राय नहीं संगीता जी की आपने अपने अनूठे अंदाज से चर्चा मंच को एक नई पहचान दी है! बहुत-बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंबस ३ शब्द ........
जवाब देंहटाएंगागर में सागर............
बहुत ही उत्तम चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपका तह दिल से धन्यवाद . जो आपने मेरी रचनायों को इस लायक समझा कि वे किसी मंच पर विचार के लिए रखा जाये.
जवाब देंहटाएंहर बार आपकी चर्चा आपकी ज्यादा और ज्यादा महनत करने को दर्शाती है. और बहुत से नए नए लिंक्स हमें आपकी चर्चा पर सबसे ज्यादा मिलते हैं. आपकी कार्य निष्ठां पर नतमस्तक हूँ और हर बार अपने मन को आपको अपना आयिडीयल मान लेने को प्रोत्साहित कर के खुद को नयी कोशिशो और परिश्रम के लिए तैयार करती हूँ.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चुनाव है आपका सदा की तरह. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार.
संगीता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सर्वप्रथम तो बहुत शुक्रिया ब्लोग मनोज को इस मंच पर जगह देने का। आपके द्वारा सजाया गया ये मंच यूँ ही मुस्कुराता रहे, और सभी मित्रों की ख़ुशी और आपसी सौहार्दय का कारण भी बने बस इसी कामना के साथ....
जन्माष्टमी की बधाइयां और शुभकामनाएं।
संगीता जी, आपने जिस प्रकार मेहनत करके और बेहतरीन रचनाओं के लिंक्स जोड़कर ये काव्य मंच सजाया है, उसके लिए बधाई और आभार.
जवाब देंहटाएं@अपनी , अपनी टिप्पणियों , अपनी रचनाओ के बारे में कुछ सार्थक सुनना ,पढना किसे अच्छा नहीं लगता ...मगर प्रशंसा किसी सुयोग्य द्वारा की जाये तो ही उसका कोई मोल है ...कृतज्ञ हूँ ...अचानक हवाओं में उड़ने लगी हूँ ...:):)
जवाब देंहटाएंयदि आलोचना हो तब भी आभारी रहूंगी .....प्रशंसा से हौसला मिलता है तो हर आलोचना से कुछ सीख ही मिलती है ...
इस मंच पर चर्चा हर बार नए रूप में बहुत ही रोचक अंदाज में की जाती है ...इसके योगदानकर्ताओं की मेहनत जितनी भी तारीफ़ की जाये , कम है ...(मेरा लिंक दिया है , इसलिए नहीं कह रही हूँ ...दिल से लिख रही हूँ !!)
सभी बेहतर लिंक्स के साथ वृद्धग्राम का लिंक देखना भी सुखद रहा ..
बहुत- बहुत आभार ..!
sangeeta ji namshkaar, bahut hi sundar charcha ki aap ne, saare rachnakaro ko badhaai, aur mujhe aur meri gazal ko charcha manch par jagah dene ke liye aap ka bahut bahut shukriya.
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