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सोमवार, जुलाई 11, 2016

"बच्चों का संसार निराला" (चर्चा अंक-2400)

मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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नटखट सूरज 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 
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बालकविता 

"बच्चों का संसार निराला" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

सीधा-सादा. भोला-भाला।
बच्चों का संसार निराला।।

बचपन सबसे होता अच्छा।
बच्चों का मन होता सच्चा।

पल में रूठें, पल में मानें।
बैर-भाव को ये क्या जानें।।... 
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ठेस लग जाती है जिनको बस ज़रा सी बात से 
क्या मज़ा! वे कह रहे के लड़ रहे हालात से... 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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नेह पनपेगा हृदय .... 

नेह पनपेगा हृदय चिर- मंगल होगा -  
विरह वीथियों का रोह असफल होगा... 
udaya veer singh 
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Allhabad Tourist Diary  

by Subodh Shukla 

मैंने हमेशा इसे अधबना पाया है. रोज़ थोड़ा सा ढह जाता है, बार-बार ज़रा सा मिट जाता है....सभ्यताएं इल्ज़ाम की तरह थोप दी जाती हैं इस पर और यह अपनी उजड्डता की ज़मानत पर रिहा हो जाता है........
इस शहर का कोई मालिक नहीं, कोई दावेदार नहीं.... बालू से लेकर ईश्वर तक सब यहाँ किराये पर रहते हैं..यह अलग बात है कि आज तक न बाकी वसूला गया और न ही बकाया चुकाया गया..... 

ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik 
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जहां-जहां तक ये दृष्टि जाए  

वहां-वहां तक दिखेंगी राधा।। 

भटक रहे हो मार्ग केशव! यहां से आगेनहीं है राधामचा है मन में कैसा कलरव तुम्हारेपथ में अनंत बाधा,सहज से मन का मधुर सा भ्रम है कि तुम सुपथ को कुपथ समझतेजहां-जहां तक ये दृष्टि जाए वहां-वहां तक दिखेगी राधा... 
वंदे मातरम् पर abhishek shukla  
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हाथ मेरे कुछ भी न आया 

दिल लगा बैठा के लिए चित्र परिणाम
मैंने समय व्यर्थ ही गवाया 
हाथ मेरे कुछ भी न आया 
इस बात से ही प्रसन्न हूँ कि
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया 
मेरी हार उसकी जीत में बदली 
बस इसी ने मेरा दिल दुखाया... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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अकेला जीना है मुश्किल।
अकेला मरना है मुश्किल।
जिंदगी में किसी का साथ ढूँढता है...  

अकेला इंसान किसी का सहारा ढूँढता है।

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पूजा करते ये युवा, पढ़े नमाज जमात।धर्म-कर्म में डूबते, कुल बुजुर्ग मुस्कात।
कुल बुजुर्ग मुस्कात, उतरते गहरे जाते।
पढ़ें धार्मिक ग्रन्थ, सुनाते सुनते नाते।
पहला बनता साधु, बने आतंकी दूजा।
रहा आयतें पूछ, रोक पहले की पूजा।। 
"कुछ कहना है" 
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समीक्षा  

"मुखर होता मौन-ग़ज़ल संग्रह"  

(समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

कवयित्री रेखा लोढ़ा स्मित’ ने अपनी पहली ग़ज़ल में  
मुखर होता मौन की शीर्षक रचना को स्थान दिया है-
"मिटे आज मन से मिरे फासले हैं
मुझे मौन अपने बहुत सालते हैंकही-अनकही भी रही फाँस बनकरमुखर मौन फिर आज होने लगे हैं"     कवयित्री ने अपने काव्यसंग्रह की मंजुलमाला में एक सौ चवालीस पृष्ठ के इस संग्रह में 134 उम्दा ग़जलों के मोतियों को पिरोया है जिनमें जन-जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं की  संवेदनाओं पर तो अपनी अपनी ग़ज़ले प्रस्तुत की हैं साथ ही नदी, समन्दर, बादल, चाँद-सितारे, आँसू, पीड़ा, माँ दोस्ती, छल-फरेब आदि लौकिक और अलौकिक उपादानों को भी अपनी ग़ज़लों का विषय बनाया है.... 

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