खपरैली छत उड़ गई, गुजर गया तूफान -रविकर
ताटंक छन्द
हरा पेड़ जो रहा खड़ा तो, गरमी हरा नहीं पाई |
गड़ा पड़ा बिजली का खम्भा, बिजली किन्तु कहाँ आई |
चला बवंडर मचा तहलका, रहा बड़ा ही दुखदाई |
उड़ी मढ़ैया रविकर भैया, विपदा साथ खींच लाई ||
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मन रे तू काहे न धीर धरे ,वो निर्मोही मोह न जाने
Virendra Kumar Sharma
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............आॅफिस से चार दिन की छुट्टी लेकर हम आगरा के साथ ही मथुरा और फिर दिल्ली घूमने का कार्यक्रम निर्धारित कर सबसे पहले आगरा पहुंचे। आगरा पहुंचकर एक होटल में सामान रखकर सुबह-सुबह जब हम ताजमहल पहुंचे तो एक पल तो यकीन नहीं हुआ कि जिस ताजमहल को हमने स्कूल की किताब और इंटरनेट में देखा-पढ़ा और लोगों की जुबानी सुना है, वह सचमुच हमारी आंखों के सामने है। ताजमहल देखना वास्तव में किसी सुनहरे सपने का साकार होने जैसा लगा...
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ग्वालियर फ़ोर्ट की सैर
ब्लॉ.ललित शर्मा
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Untitled
कालीपद "प्रसाद"
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याद दे कर न तू गया होता
Kailash Sharma
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बाबा का घी दूध का खेल
सुधीर राघव
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गाँव समाप्त होना ---किसान समाप्त
Randhir Singh Suman
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बालकविता"मोर झूमते पंख पसारे"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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सबला नारी
Asha Saxena
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अच्छे दिन भी आते होंगे ,हर हर मोदी बोल किसानों -सतीश सक्सेना
Satish Saxena
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कार्टून :-कांव कांव कबीले का राष्ट्रगान
Kajal Kumar
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