मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कातिलों के हर मसीहा की इनायत जान ले
अब कैराना और मथुरा से उसे पहचान ले ।
इस रियासत की सराफत को यहीं से मान ले ।।
घाव गहरे हैं मुजफ्फर के दिलों में आज भी ।
कातिलों के हर मसीहा की इनायत जान ले...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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रूप गर्विता
क्यूं हुई रूप गर्विता
मदमस्त नशे में चूर
गर्व से नजरें न मिलाती
जब से हुई मशहूर ...
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अनुभव
दोराहे
निश्चित ही द्वन्द पैदा करते हैं
एक राह छलावा का
दूसरा जीवन का
कौन सही
इसका पता दोनों राहों पर चलकर ही होता है
फिर भी
कई बार
अनुभव धोखा दे जाता है
और कोई पूर्वाभास भी नहीं होता !
डॉ. जेन्नी शबनम
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एक शहर का जन्मः
मेरा मधुपुर
1871-शहर-ए-मधुपुर का जन्म कौन सी परिस्थितियां कौन सा मंजर दिखलाती है यह समझना आसान नहीं है। आखिर जिस शहर-ए-मधुपुर पर हम दिल-ओ-जां से फिदा हैं उसके होने की कहानी हमें पता है? या हमने कभी कयास भी लगाए हैं? इतिहास या तारीख में झांकें तो एक धुंधली सी तस्वीर उभरती है। एक जंगलों से घिरा गांव। जहां पर आज यह शहर खडा होकर इठला रहा है...
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उसे रास्ता अब दिखा ही दो ,
यारो नशे में वो चूर है ....!
उसे रास्ते की तलाश है ,
ये बात तुम न समझ सके !
यहाँ क्यों हैं चेहरे, डरे हुए –
ये बात हम न समझ सके...
ये बात तुम न समझ सके !
यहाँ क्यों हैं चेहरे, डरे हुए –
ये बात हम न समझ सके...
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रकाशन
लोकभारती का स्वर्णिम अतीत
और उसके संस्थापक श्री दिनेश ग्रोवर
जयकृष्ण राय तुषार
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मुसीबत खड़ी सामने हो कभी
मुसीबत खड़ी सामने हो कभी,
कौन जाता वहाँ से यही देखिये |
बड़ा मतलबी है हमारा शहर
कौन रुकता वहाँ पर नहीं देखिये |
डटो सामने तुम करो सामना
जो साधन वहाँ पर वही देखिये |
मिलेगी विजय और पहचान होगी
गलत देखिये कुछ सही देखिये ||
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गरीब
दौलत का मारा हूँ, बेचारा हूँ,
मगर काम करता हूँ,
सर्दी हो या खूब गर्मी पसीने में ही आराम करता हूँ,
इंसा के लिए इंसानियत के कब्र को सलाम करता हूँ...
प्रभात
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... देश में राजनेता राजा
और साधु-संत महाराजा ...
किसी समय राजबाड़ा और देश का राजा ही सर्वोच्च होता था और प्रजा को उसके हर आदेश का पालन करना पड़ता था । राजा को यह अधिकार होता था कि वो जो भी कहें जनता उसे माने यदि जनता राजा के आदेशों का पालन नहीं करती थी तो राजा को अधिकार होता था कि उसे दंड दें और जनता को राजा के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य करें । राजा देश का खर्चा चलाने के लिए जनता से टैक्स और लगान वसूल करता था और उसे अपनी मनमर्जी से खर्च करता था चाहे देश की जनता का भला हो या न हो ।
आज देश में राजनेता ही राजा हैं वे जो कुछ चाहते हैं वही कर रहे हैं चाहे जनता के साथ साथ विपक्ष ही उनका प्रबल विरोध क्यों न करें । देश में दिनोंदिन मंहगाई बढती जा रही है पर हमारे देश के कर्णधार फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर जनता को गुमराह कर बता रहे हैं कि मंहगाई बिल्कुल नहीं बढ़ी है और हमारा देश विकास कर रहा है और जनता मंहगाई के कारण कारण त्राहि त्राहि कर रही है । अब तो आरबीआई भी सरकार को सलाह दे रही है कि खाने पीने की सामगी में निरन्तर बढ़ोतरी होने के कारण अधिकाधिक मंहगाई बढ़ गई है अब आगे देखने वाली बात होगी कि आरबीआई की सलाह पर हमारे देश के कर्णधार राजनेता नेता जनता के हित में मंहगाई घटाने हेतु क्या कार्यवाही करते हैं या नहीं ये अब उनकी मर्जी...
आज देश में राजनेता ही राजा हैं वे जो कुछ चाहते हैं वही कर रहे हैं चाहे जनता के साथ साथ विपक्ष ही उनका प्रबल विरोध क्यों न करें । देश में दिनोंदिन मंहगाई बढती जा रही है पर हमारे देश के कर्णधार फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर जनता को गुमराह कर बता रहे हैं कि मंहगाई बिल्कुल नहीं बढ़ी है और हमारा देश विकास कर रहा है और जनता मंहगाई के कारण कारण त्राहि त्राहि कर रही है । अब तो आरबीआई भी सरकार को सलाह दे रही है कि खाने पीने की सामगी में निरन्तर बढ़ोतरी होने के कारण अधिकाधिक मंहगाई बढ़ गई है अब आगे देखने वाली बात होगी कि आरबीआई की सलाह पर हमारे देश के कर्णधार राजनेता नेता जनता के हित में मंहगाई घटाने हेतु क्या कार्यवाही करते हैं या नहीं ये अब उनकी मर्जी...
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पसीने की बदबू, प्रकृति का दिया हुआ एक सबसे बड़ा श्राप है. हमारे देश में, गर्मियोंके आते ही कई तरह की परेशानियों की भी शुरूआत हो जाती है जिनमें पसीना और उससे होने वाले तनाव सबसे बुरी परेशानियों में से एक है. सोशल जगहों पर या ऑफिस की लिफ्ट और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर अक्सर पसीने के बदबू की वजह से हमें कई बार शर्मिंदा होना पड़ता है. अगर आपको भी इस परेशानी का अक्सर सामना करना पड़ता है यहां जानिए इससे निपटने के आसान से घरेलू नुस्खे...
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अहम् की पट्टी
स्वार्थ के फाहे रखकर
जब बाँध लेते हैं हम
सोच की आँखों पर
तब जम जाती है
रिश्तों पर बर्फ
दम घुट जाता है रिश्तों का ...
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खानापूरी हो चुकी, बेशर्मी भी झेंप ।
खेप गए नेता सकल, भेज रसद की खेप।
भेज रसद की खेप, अफसरों की बन आई ।
देखी भूख फरेब, डूब कर जान बचाई।
पानी पी पी मौत, उठा दुनिया से दाना ।
बादल-दल को न्यौत, चले जाते मयखाना ॥
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गर्व से कहो हम मोटे हैं !
क्रिकेट के बाद मोटापा ही एक ऐसी चीज़ हैं
जिस पर कोई भी आम भारतीय
विशेषज्ञ की तरह राय दे सकता है...
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उन्मुक्त दोहे -
पानी मथने से नहीं, निकले घी श्रीमान |
साधक-साधन-संक्रिया, ले सम्यक सामान ||2||
लोरी-कैलोरी बिना, करते शिशु संघर्ष |
किन्तु गरीबी घट रही, जय जय भारतवर्ष ||3||
सकते में है जिंदगी, दिखे सिसकते लोग |
भाग भगा सकते नहीं, आतंकी उद्योग ||4||
जो 'लाई' फाँका किये, रहे मलाई चाट |
कुल कुलीन अब लीन हैं, करते बन्दर-बाट ||5||
दूध फ़टे तो चाय बिन, दिखे दुखी सौ शख्स।
गाय कटे तो दुख कहाँ, दिया कसाई बख्स।6|
"कुछ कहना है"
भाषा वाणी व्याकरण, कलमदान बेचैन।
दिल से दिल की कह रहे, जब से प्यासे नैन।।
दिल से दिल की कह रहे, जब से प्यासे नैन।।
पानी मथने से नहीं, निकले घी श्रीमान |
साधक-साधन-संक्रिया, ले सम्यक सामान ||2||
लोरी-कैलोरी बिना, करते शिशु संघर्ष |
किन्तु गरीबी घट रही, जय जय भारतवर्ष ||3||
सकते में है जिंदगी, दिखे सिसकते लोग |
भाग भगा सकते नहीं, आतंकी उद्योग ||4||
जो 'लाई' फाँका किये, रहे मलाई चाट |
कुल कुलीन अब लीन हैं, करते बन्दर-बाट ||5||
दूध फ़टे तो चाय बिन, दिखे दुखी सौ शख्स।
गाय कटे तो दुख कहाँ, दिया कसाई बख्स।6|
कविता
"आदमी का चमत्कार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आदमी के प्यार को, रोता रहा है आदमी।
आदमी के भार को, ढोता रहा है आदमी।।
आदमी का विश्व में, बाजार गन्दा हो रहा।
आदमी का आदमी के साथ, धन्धा हो रहा...
आदमी के भार को, ढोता रहा है आदमी।।
आदमी का विश्व में, बाजार गन्दा हो रहा।
आदमी का आदमी के साथ, धन्धा हो रहा...
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