मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"रेत के घरौंदे"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सज रहे हैं ख्वाब,
जैसे हों घरौंदे रेत में।
बाढ़-बारिश हवा को पा,
बदल जाते रेत में।।
मोम के सुन्दर मुखौटे,
पहन कर निकले सभी,
बदल लेते रूप अपना,
धूप जब निकली कभी,
अब हुए थाली के बैंगन,
थे कभी जो खेत में।
बाढ़, बारिश-हवा को पा,
बाढ़, बारिश-हवा को पा,
बदल जाते रेत में...
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चुहुल ७९
((१) नारी मुक्ति आन्दोलन की शिकायत पर पुलिस ने एक आदमी का चालान करके मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, आरोप था कि उसने अपनी पढी-लिखी पत्नी को दस बर्षों से इस तरह कंट्रोल में रखा है की बेचारी सहमी सहमी रहती ...
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय
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एक कहानी
एक मंज़िल थी
कुछ रास्ते थे
कुछ सीधे थे
कुछ घुमावदार थे
कुछ आसान थे
कुछ मुश्किल थे
कुछ अनजाने थे
कुछ पह्चाने थे
राह में लोगों की भीड़ थी
भीड़ में चहरे ही चहरे थे...
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हम न चिल्लर न थोक रहे .!!
प्रिय से मिलना जो पूजा है, लोग हमें क्यों रोक रहे .
आओ मिल के पूजन करलें, दर्द रहे न शोक रहे . !
जब जब मौसम हुआ चुनावी, पलपल द्वार बजाते थे-
जैसे ही ये मौसम बदला,हम न चिल्लर न थोक रहे...
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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सुनो ज़िन्दगी !!
सुनो ज़िन्दगी !! तेरी आवाज़ तो ......
यूँ ही, कम पड़ती थी कानों में
अब तेरे साए" भी दूर हो गए
इनकी तलाश में बैठी हुई
एक बेनूर से सपनों की किरचे संभाले हुए ...... हूँ ,
इस इंतजार में अभी कोई पुकरेगा मुझे
और ले चलेगा कायनात के पास ..
ranjana bhatia
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आशावाद
ओ रवि आज तुम्हें ढक दिया है कुहासे ने
दे दी है चुनौती तुम्हें
गलाने की तुम्हारा अस्तित्व मिटाने की
वह भूल गया है वे दिन
जब तुमने अपनी तपिश से कर दिया था...
Jayanti Prasad Sharma
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दीप जलाना सीखा है!
जब जब कंटक चुभे हैं पग में, मैंने चलना सीखा है,
अंधियारों से लड़कर मैंने, दीप जलाना सीखा है! ....
shikha kaushik
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कर दी अंग्रेजी की हिन्दी
हिन्दी के साथ अब जो हो जाए, कम है। ‘बोलचाल की भाषा’ के नाम पर अब तक तो हिन्दी के लोक प्रचलित शब्दों को जानबूझकर विस्थापित कर उनके स्थान पर जबरन ही अंग्रेजी शब्द ठूँसे कर भाषा भ्रष्ट की जा रही थी। किन्तु अब तो हिन्दी का व्याकरण ही भ्रष्ट किया जा रहा है...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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तुम छुपी हुई थी मुझसे कहीं।
तुम्हारी एक झलक पाने के लिए
मैंने तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ढूँढा...
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दोहा -अंतरजाल ,प्रीत
अंतरजाल का बज रहा जग में डंका जोर ।
अक्कड़ बक्कड भूले बच्चे थामे माउस छोर...
sunita agarwal
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