मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मधुशाला की हाला
शायद आदमी को भगवान ने अतृप्त बनाया है, वह संतुष्ट हो ही नहीं पाता। अपने आपको हमेशा कमतर आंकता है और गम में डूबने को मजबूर हो जाता है। काश हमारे वैज्ञानिक इस समस्या का कोई निदान निकाल सकें। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -
smt. Ajit Gupta
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साहेब महंगाई अर्थव्यवस्था की
हर अच्छाई खाए जा रही है
इस सरकार ने दाल की महंगाई रोकने के लिए जितना कुछ किया है। इतना इससे पहले किसी सरकार ने नहीं किया है। लेकिन, इसका दूसरा तथ्य ये भी है कि इस सरकार की सारी कोशिशों के बावजूद दाल जिस भाव पर जनता को खरीदनी पड़ रही है। उस भाव पर इतने लंबे समय तक किसी सरकार के समय में नहीं खरीदनी पड़ी। सरकार बार-बार ये बता रही है कि दाल की कीमतों पर काबू के लिए कितना कुछ किया जा रहा है। दाल का भंडार पहले डेढ़ लाख टन का किया गया। अब सरकारी दाल भंडार आठ लाख टन का किया जा रहा है। राज्यों को बार-बार इस बात की ताकीद की जा रही है कि एक सौ बीस रुपये किलो ऊपर के भाव पर दाल को न बिकने दें...
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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चल सको तो चलो साथ मेरे उधर
हमसफ़र भी नहीं है न है राहबर
चल सको तो चलो साथ मेरे
उधर मेरे हालात से तुम रहे बेख़बर
हाल कितना बुरा है कभी लो ख़बर
साथ कुछ देर मेरे...
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मियाँ मिट्ठू जी हाथ मलते रह गये
दोनों हाथों में लेकर लड्डू थे
खुश बहुत मियां मिट्ठू
घर में मिलती घरवाली
बाहर मिलती...
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भावों की भव्यता
भावों की भव्यता में ही
काव्य की धारायें बहती
सौन्दर्य की सुरम्यता में ही
रूपों के माधुर्य निखरती.
कविता एक प्रवाह है
भावों की अभिव्यक्ति है
मन के तार से झंकृत होकर
कथ्य कई कह देती है.
शब्द-निशब्द जब हो जाते हैं
भाव ह्रदय के बहते हैं...
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दिल के धड़कनों को कम करना चाहता हूँ
आज घटित घटना को विसरना चाहता हूँ...
कालीपद "प्रसाद"
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याद फिर क्यों अब नमक हराम आये हैं
इश्क़ में ये कैसे मुकाम आये हैं,
घर मेरे देखो गम तमाम आये हैं।
वक़्त गुजरा कब का भुला दिया हमने,
याद फिर क्यों अब नमक हराम आये हैं।
बेवफ़ा हम से अब सबूत मांगे है,
खत पुराने ही आज काम आये हैं।
mere man पर
rajinder sharma "raina"
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कागज़ काले किये फाड़े
पूरी रात बीत गई
की हजार कोशिशें
कोई बात न बन पाई
एक पत्र न लिख पाई...
पूरी रात बीत गई
की हजार कोशिशें
कोई बात न बन पाई
एक पत्र न लिख पाई...
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गीत
"मीत बन जाऊँगा"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुनगुनाओ जरा कोई धुन प्यार से,
मैं तुम्हारे लिए गीत बन जाऊँगा।
मेरी सूरत बसाओ हिये में प्रिये!
मैं तुम्हारे लिए मीत बन जाऊँगा...
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