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मंगलवार, जुलाई 05, 2016

मार मजा रमजान में, क्या ढाका बगदाद; चर्चा मंच 2394

मार मजा रमजान में, क्या ढाका बगदाद। 
क्या मजाल सरकार की, रोक सके उन्माद।


रोक सके उन्माद, फिदाइन होते हमले। 
क्या ये लोकल लाश, यही पहचानो पहले।


फिर पकड़ो परिवार, बनाओ उनका कीमा।
निश्चय ही आतंक, पड़ेगा रविकर धीमा।।

दोहे "पागल बनते लोग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
पागलपन में हो गयीवाणी भी स्वच्छन्द। 
लेकिन इसमें भी कहींहोगा कुछ आनन्द।। 
-- 
पागलपन में सभी कुछहोता बिल्कुल माफ। 
पागल को मिलता नहींकहीं कभी इंसाफ।। 

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