मित्रों
शुनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"चौपाई के बारे में भी जानिए"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था!
आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ यह स्पष्ट करना अपना चाहूँगा कि चौपाई को लिखने और जानने के लिए पहले छंद के बारे में जानना बहुत आवश्यक है।
"छन्द काव्य को स्मरण योग्य बना देता है।"
चौपाई में जगण और तगण का प्रयोग निषिद्ध माना गया है। साथ ही इसमें अन्त में गुरू वर्ण का ही प्रयोग अनिवार्यरूप से किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए मेरी कुछ चौपाइयाँ देख लीजिए-
“मधुवन में ऋतुराज समाया।
पेड़ों पर नव पल्लव लाया।।
टेसू की फूली हैं डाली।
पवन बही सुख देने वाली।।...
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नदी और समंदर
वो हज़ारों मील बह कर
नदी समंदरों से मिलती है,
उसे लगता है फूल-ए-इश्क़
बस वहीं जा के खिलती है...
Dipanshu Ranjan
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बज़्मे तरब में तुझको तो आना ज़ुरूर है
रुस्वाई-ए-शहर का बहाना ज़ुरूर है
उसको तो मेरे सिम्त से जाना ज़ुरूर है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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Arakshan
पटेल समाज आरक्षण मांग झा है वह समाज जो अधिकांशतः बड़ा व्यापारी है और बहुत चतुर समझ जाता है समाज मैं आदर योग्य है गुजरात का प्रभुत्व हमेशा से रहा है उसमे पटेल समुदाय का बहुत बड़ा हाथ रहा है आज वह आरक्षण की मांग करके अपने को समाज के निचले तबके जोड़कर अपने को कमतर कने के लिए तयारी कर रहा है अफ़सोस हो रहा है इसके अंदर छिपे मकसद हो सकते हैं एक तो आरक्षण जाति और धर्म के नाम पर न होकर आर्थिक बिपिन्नता होना चाहिए एक भीख मांगने वाला तबका सबसे बिपिंन मन जायेगा क्योंकि उसे जीविकोपार्जन के लिए बहुत प्रयत्न करना पड़ता है...
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Posts from 24 to 30 June 16
मुझे याद है जब मैं प्राचार्य था तो एक अधिकारी मेरे पास आये वे बोले कि मेरे बच्चों के छात्रवृत्ति के फ़ार्म फॉरवर्ड कर दो , तो मैंने कहा सर ये तो अनुसूचित जाति के है और आप तो सवर्ण है , बोले नही वो तो मैंने सरनेम बदल दिया है, असल में तो मैं चमार हूँ। मैंने कहा उसमे कोई गलत नही पर ये सवर्ण होने का नाटक क्यों तो बोले फर्क पड़ता है। एस डी एम रहते हुए सवर्ण बनकर देवास में खूब तथाकथित यश कमाया ब्राह्मण समाज की अध्यक्षता करते रहे, सम्मेलन में ज्ञान बाँटते रहें और जब विभागीय डी पी सी की बात आई तो अपना चमार होना स्वीकार करके आय ए एस बन गए। पूरा ब्राह्मण समुदाय हैरान था, बाद में वे प्रमोट होकर...
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अश्लील दोष
काव्य में किन परिस्थितयों में
अश्लील दोष भी गुण हो जाता है.
और वह शृंगार 'रस' के घर में न जाकर
'रसाभास' की दीवारें लांघता हुआ दिखायी देता है.
(1)
स्वर्ण-शिखा सी सज-संवर, मानहुँ बढ़ती आग ।
छद्म-रूप मोहित करे, कन्या-नाग सुभाग ।
कन्या-नाग सुभाग, हिस्स रति का रमझोला ।
झूले रमण दिमाग, भूल के बम-बम भोला ।
नाग रहा वह जाग, ज़रा सी आई खांसी ।
गया काम फिर भाग, ताक के स्वर्ण-शिखा सी...
(1)
स्वर्ण-शिखा सी सज-संवर, मानहुँ बढ़ती आग ।
छद्म-रूप मोहित करे, कन्या-नाग सुभाग ।
कन्या-नाग सुभाग, हिस्स रति का रमझोला ।
झूले रमण दिमाग, भूल के बम-बम भोला ।
नाग रहा वह जाग, ज़रा सी आई खांसी ।
गया काम फिर भाग, ताक के स्वर्ण-शिखा सी...
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