मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अर्की--लुटरु महादेव लुटरु महादेव ( एक ऐसा शिवलिंग जहाँ पर सदियों से सिगरेट रखी जाती है, जो खुद सुलगती है और धुंआ ऐसे उड़ता है जैसे कोई कश लगा रहा हो। ) एक ऐसी छुपी हुई जगह जिस के बारे में मैंने अपने ऑफिस में एक बन्दे से सुना था आज से एक साल पहले। फिर इस जगह के बारे में याद ही नहीं रहा। दो महीने पहले ही व्हाट्सअप पर घुमक्कड़ ग्रुप (घूमने फिरने वालों का ग्रुप ) में मैंने इस जगह के बारे में सब दोस्तों को बताया। तब से दिल में एक कसक सी उठ रही थी इस जगह चला जाए...
sushil kumar
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समीक्षा
"क़दम क़दम पर घास"
(समीक्षक-डॉ. हरि 'फ़ैज़ाबादी')
*पत्थर पर चलकर नहीं, होगा यह अनुमान।
क़दम क़दम पर घास में, भरा हुआ है ज्ञान।।...
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वरिष्ठ नागरिक समाज कल्याण हेतु
केंद्र सरकार से अपेक्षा
हमारे देश की सरकार विकसित देशों की भांति देश के सभी बुजुर्गों का (सरकारी कर्मचारियों के अतिरिक्त) पर्याप्त राजस्व के अभाव में भरण पोषण करने में असमर्थ है.क्योंकि हमारे देश की जनसँख्या अधिक होने के कारण वरिष्ठ नागरिकों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक है. परन्तु यदि वह देश के अन्य बुजुर्गों पर महरबान हो तो अन्य अनेक ऐसे उपाय कर सकती है, जो बुजुर्गों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं,उनके लिए कल्याण कारी हो सकते हैं, और सरकारी राजकोष पर अधिक बोझ भी नहीं पड़ेगा, जो निम्न लिखित हैं...
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गढ़ कलेवा को बचा लो साहब
आज फिर रायपुर के छत्तीसगढ़ी कलेवा के ठीहा 'गढ़ कलेवा' जाने का अवसर मिला। बाहर बाइक और कार काफी संख्या में खड़े थे। वहां ग्राहकों के भीड़-भाड़ को देखकर दिल को सुकून मिला। बैठने के लिए बनाये गए परछी के अतिरिक्त बाहर खुले में बने पारंपरिक टेबलों में ग्राहक बैठे थे। खुले परिसर में चहल-पहल थी और काउंटर पर लोग स्वयं-सेवा करते हुए अपने पसंद का कलेवा खरीद रहे थे। कुछ दिगर-प्रांतीय सभ्रांत महिलाएं भी थी जो जाते समय छत्तीसगढ़ी डिस खरीद रही थीं, कुछ अपने बच्चों का गढ़ कलेवा के भित्ति आवरणों के साथ फोटो खींच रही थीं। परिसर में घुसते हुए मुझे लगने लगा कि 'गढ़ कलेवा' हिट हो गया...
आरंभ Aarambha पर संजीव तिवारी
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मुक्तक
इंसानी नस्ल नष्ट न हो, कोशिश होनी चाहिए
जल, जीवन, जंगल सह, एक नई धरती चाहिए
अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की, कोशिशें रंग लायगी
अरबों ग्रह में से एक ऐसी, धरती होनी चाहिए |
कालीपद "प्रसाद"
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अपराध-बोध
अब नहीं रहा वह पढ़ने का सुख,
किताबों की सोहबत में जागने का सुख,
पढ़ते-पढ़ते ख़ुद को भूल जाना,
कभी हँसना,कभी रोना,
कभी सहम जाना...
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जूठन
जूठन पढते वक़्त कुछ अलग ही अनुभव हुआ...
कब पांच पन्ने बीते पता ही नहीं चला...
बीते इसलिए लिखा
क्योंकि ऐसा लगा
जैसे ये सब घटित हो रहा है... .
सोचा ना था....पर Neha
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ज़रा सोचता मुस्कुराने से पहले
वो आए किसी भी बहाने से पहले
उसे देखना है ठेकाने से पहले
बताओ भला इश्क़ की भी इजाज़त
अरे यार क्या लूँ ज़माने से पहले...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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मनु भाई मोटर चली पम पम पम |
मोटर कार में सवार होकर मनु भाई अपने घर से निकले ,बीच रास्ते में ही उनकी मोटर गाड़ी ने दे दिया जवाब ,चलते चलते ढुक ढुक कर के गाड़ी गई रुक ,परेशान हो कर मनु भाई मोटर कार से नीचे उतरे ,गाड़ी के आगे पीछे घूमे,चारो और चक्कर लगाया लेकिन समझ में कुछ नहीं आया |हाईटेक जमाना है ,मोबाईल मिला कर झट से मैकेनिक को बीच सड़क पर बुलवा लिया ,मैकेनिक ने बोनट खोल कर अच्छे से गाड़ी की जांच की और हाथ खड़े कर दिए...
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