मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपना ख़ुदा - -
आँखों का खारापन रहा अपनी जगह मुसलसल,
कहने को यूँ थी बारिश रात भर।
न जाने कौन था वो हमदर्द,
छू कर रूह मेरी ओझल हुआ यूँ अकस्मात,
जैसे उड़ जाए अचानक नूर की बूंद एक साथ...
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ख़ुशबुओं के बंद सब बाज़ार हैं
ख़ुशबुओं के बंद सब बाज़ार हैं
बिक रहे चहुं ओर केवल खार हैं
पिस रही कदमों तले इंसानियत
शीर्ष सजते पाशविक व्यवहार हैं...
कल्पना रामानी
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"क"
"क" से कलम हाथ में लेकर!
लिख सकते हैं कमल-कबूतर!!
"क" पहला व्यञ्जन हिन्दी का,
भूल न जाना इसे मित्रवर!!
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"ख"
"ख" से खम्बा और खलिहान!
खेत जोतता श्रमिक किसान!!
"ख" से खरहा और खरगोश,
झाड़ी जिसका विमल वितान...
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मानवती तुम आ जाओ
तुम रुँठी सपने रूठे, कर्म–भाग्य मेरे फूटे।
बिखर गया मेरा जीवन, मन माला के मनके टूटे।
टूटे मनके पिरो-पिरो कर, सुन्दर हार बना जाओ ...
Jayanti Prasad Sharma
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व्यथित पथिक बरबस चला, लगा खोजने चैन |मृग-मरीचिका से अलग, मूँदे मूँदे नैन |
मूँदे मूंदे नैन, वैन वैरी हो जाता |
बढ़ती ज्यों ज्यों रैन, रहा त्यों त्यों उकताता |
उगा देर से चाँद, कल्पना किया व्यवस्थित |
रविकर की मुस्कान, पथिक फिर हुआ अव्यथित ||
"कुछ कहना है" मूँदे मूंदे नैन, वैन वैरी हो जाता |
बढ़ती ज्यों ज्यों रैन, रहा त्यों त्यों उकताता |
उगा देर से चाँद, कल्पना किया व्यवस्थित |
रविकर की मुस्कान, पथिक फिर हुआ अव्यथित ||
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मोबाइल पर जिन्हें sms तक का पता नहीं
वे ठाट से स्मार्ट फोन लेकर घूमते हैं
और सीधे-सादे लोगों को भी ललचाते हैं...
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हमारे देश की शाकाहारी – हाहाकारी परंपरा में
शाकाहार कम हाहाकार ज्यादा है|
देश में अगर खाने को लेकर
वर्गीकरण कर दिया जाए तो
शायद लम्बी सूची तैयार हो जाएगी| ...
शाकाहार कम हाहाकार ज्यादा है|
देश में अगर खाने को लेकर
वर्गीकरण कर दिया जाए तो
शायद लम्बी सूची तैयार हो जाएगी| ...
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muktak
हर दिन की नवीनता में, सुन्दरता होती है
मुरझाये फूल के बदले, खिली नयी कली है
परिवर्तन ही सुन्दरता, प्रकृति का यह नियम...
कालीपद "प्रसाद"
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पुराना गाँव
नया दर्द है मौसम फिर से सर्द है
मिलती नही अब अलाव...
Mera avyakta पर
मेरा अव्यक्त --राम किशोर उपाध्याय
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शब्द गुण या काव्य गुण
गुण रस का धर्म होता है। गुण ही रस के साथ अचल स्थिति होती है। जिस प्रकार धीरता, वीरता, सौम्यता आदि मानव व्यक्तित्व के सहज ही आकर्षित करने वाले गुण होते हैं, उसी प्रकार शब्द गुण या काव्य गुण काव्य की आत्मा रस का उत्कर्ष करते हैं। इसे ही शब्द या काव्य गुण कहते हैं...
विजय तिवारी " किसलय "
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जब भाषा ही नहीं रहेगी तो क्या .?
आरंभ Aarambha पर संजीव तिवारी
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बालगीत
"धरती ने है प्यास बुझाई"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मित्रों!
सात-आठ वर्ष पहले
मैंने यह बाल गीत लिखा था
जो आज भी प्रासंगिक है।
शीतल पवन चली सुखदायी।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।
भीग रहे हैं पेड़ों के तन,
भीग रहे हैं आँगन उपवन,
हरियाली सबके मन भाई।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई...
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