मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उत्तराखण्ड की संस्कृति की धरोहर
“हरेला”
उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार है!
उत्तराखण्ड के परिवेश और खेती के साथ
“हरेला”
उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार है!
उत्तराखण्ड के परिवेश और खेती के साथ
इसका सम्बन्ध विशेषरूप से जुड़ा हुआ है...
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...निवेदन करता हूँ पर्यावरण के लिए असीम स्नेह से भीगी
इस इस सार्थक, अनोखी कहानी को दूसरो तक भी पहुंचाएं।
"कदम ऐसा चलो,
कि निशान बन जाये।
काम ऐसा करो,
कि पहचान बन जाये।
यहाँ जिन्दगी तो,
सभी जी लेते हैं,
मगर जीओ तो ऐसे जीओ ,
कि सबके लिए मिसाल बन जाये"
"कदम ऐसा चलो,
कि निशान बन जाये।
काम ऐसा करो,
कि पहचान बन जाये।
यहाँ जिन्दगी तो,
सभी जी लेते हैं,
मगर जीओ तो ऐसे जीओ ,
कि सबके लिए मिसाल बन जाये"
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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पाकिस्तान एक ओर पूरी दुनिया में यह कहकर अमेरिका, चीन तथा अन्य यूरोपीय देशों का साथ पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है कि वह अपने यहां आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध कर रहा है, लेकिन दूसरी ओर उसकी भारत के मामले में कश्मीर को लेकर जो नीति है, उससे एक बार नहीं बार-बार यही जाहिर होता आया है कि पाकिस्तान की मंशा आतंकवाद को सदैव पाले रखने की है। वह तमाम देशों से धन उगाही के लिए अपनी कोख में आतंक को पाले रखना चाहता है। आज पाकिस्तान ने जिस तरह आतंकी संगठन हिजबुल के मारे गए कमांडर बुरहान वानी और अन्य आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी बताया है उससे दुनिया के सामने पाक का चेहरा बेनकाब हो गया है। ..
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एक ऑपरेशन ने बदल दी
मेरी हैसियत
यदि मेरी जानकारियाँ सही हैं तो मैं देश के सवा अरब से अधिक लोगों में से गिनती के, लगभग तीन हजार लोगों में शरीक हो गया हूँ। एक छोटे से ऑपरेशन ने मुझे यह हैसियत दिला दी है...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है
उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है
रुपये पैसोँ की कीमत को वह ही जान सकता है
बचपन में गरीवी का जिसने दंश झेला है...
Madan Mohan Saxena
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प्रकृति क्रुद्ध फटते हैं बादल दरकती है भू तड़ित छूने लगी आसमाँ से जमीं को पर इति तो हमारी है मानव की है दण्ड ही तो है हमारे कर्मों का भोगते तो वे हैं , जिनका कोई दोष नहीं। मेहनतकश है जो , खेतों में बैठे थे , घनघोर बारिश में शरण लिए थे पेड़ के नीचे। अबोध बीन रहे थे आम बगीचे में तेज बारिश से गिरे थे बागों में और बचपन का खिलंदड़ापन उन्हें भारी पड़ा। कितनों का घर सूना हो गया। और वे जो इनकी हत्या के दोषी है , जो खनन कर रहे , जो दोहन कर रहे , जो ध्वंस कर रहे धरा का भू गर्भ का पर्वतों का वे तो महफूज़ हैं ये कैसा दण्ड जो निर्दोषों को मिल रहा है।
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अक्स किसका मगर यार बनाता रहा
हिज़्र की आग में जी सुलगता रहा
और पूछे तू के हाल कैसा रहा!
गो लुटा मैं तेरे प्यार में ही मगर
देख तो हौसला प्यार करता रहा...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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रिश्ते भी कमीज सरीखे होते हैं..
कुछ नए..
कुछ पुराने..
तो कुछ फटे हुए..
नए वाले अच्छे हैं चमक है उनमें
पार्टी फंक्शन में पहनता हूँ
कुछ रौब भी जम जाता है
सम्हाल कर रखे हैं अलमारी में...
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ज़िंदा रहने के लिए समझौते कर लेते है लोग और यह भूल जाते है कि एक रीढ़ की हड्डी थी जो पैदा होते समय ठीक उनके पीछे पीठ से सटी थी और उसी के सहारे वे बड़े होते गए, उसी में से दिमाग के सारे आदेश तंत्रिकाओं से बह कर शरीर के उन अंगों तक पहुंचे जिन्होंने इंसान को चापलूस और गलीज बना दिया। बिछते हुए देखता हूँ तो शर्म आती है ऐसे लोगों पर...
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