मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
शुतुरमुर्ग और शुतुरमुर्ग
कम नहीं हैं
बहुत हैं
चारों तरफ हैं
फिर भी
मानते नहीं हैं
कि हैं
हो सकता है
नहीं भी होते हों
उनकी सोच में वो ...
बहुत हैं
चारों तरफ हैं
फिर भी
मानते नहीं हैं
कि हैं
हो सकता है
नहीं भी होते हों
उनकी सोच में वो ...
--
ग़ज़ल
"छन्द और मुक्तक, बनाना भी नहीं आता"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुझे तो छन्द और मुक्तक, बनाना भी नहीं आता।
सही मतला, सही मक़्ता, लगाना भी नहीं आता।।
दिलों के बलबलों को मैं, भला अल्फ़ाज़ कैसे दूँ,
मुझे लफ्ज़ों का गुलदस्ता, सजाना भी नहीं आता...
--
--
आईने में तेरी सूरत
आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी
कल बिन मेरे सजने सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है
वो कहाँ है दे गया जो रूप का अभिमान ये
ये बताओ उसके बिन अब क्या मजा संसार का है.
anupam choubey
--
--
--
--
लोग अपनी नजरों में
लोग अपनी नजरों में गिरतें नही है।
गुनाह करते है हया करते नहीं है।।
वतन ने शहादत मॉगी घरों में छुप गए।
कल तो कहते थे मौत से डरते नहीं हैं...
आपका ब्लॉग पर
Sanjay kumar maurya
--
गुलाम बन रहे हैं हम
आज दुनिया का अधिकांश व्यक्ति गुलामी का जीवन जी रहा है, वह किसी भी दिन सड़क पर आ सकता है। इसमें खुद को राजा समझने वाले लोग भी हैं और सामान्य प्रजा भी। आज राजा भी तो वोट के सहारे ही जिन्दा है! वोट के लिये उसे क्या-क्या नहीं करना पड़ता! अपना धर्म तक गिरवी रखना पड़ता है। जिस कलाकार को हम मरजी का मालिक मानते थे आज वह भी गुलामी का जीवन जीने लगा है। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें...
smt. Ajit Gupta
--
तन्हाई मेरी ...
तन्हा तन्हा सी रहती है तन्हाई मेरी
रात भर जागती रहती है तन्हाई मेरी
खुद में हंसती है कभी, कभी रो लेती है
ख्वाब कुछ बुनती, रहती है तन्हाई मेरी...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
--
एक समन्दर तन्हा-तन्हा
एक समन्दर तन्हा-तन्हा
बाहर-भीतर तन्हा-तन्हा
आगन्तुक का शोर-शराबा
फिर भी दिनभर तन्हा-तन्हा...
--
--
एक चिंकारे की आत्महत्या
भई, सुलतान छूट गए।
क़ातिल नहीं मिले।
गवाह गायब हो गए।
न्याय-व्यवस्था साफ कहती है,
सौ दोषी छूट जाएं
लेकिन किसी निर्दोष को
सज़ा नहीं मिलनी चाहिए।
तो इस बिनाह पर,
मियां सलमान निर्दोष साबित भये।
हिरण बेचारा मारा गया...
गुस्ताख़ पर Manjit Thakur
--
श्यामबिहारी श्यामल के कहानी संग्रह
‘चना चबेना गंग जल’
पर नारायण सिंह की समीक्षा
‘मुक्ति की राह अकेले नहीं मिलती।’
--
--
--
...... दरिंदा !! -
सभी साथियों को मेरा नमस्कार
आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ
प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना......
दरिंदा के के साथ
उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी...
म्हारा हरियाणा
सभी साथियों को मेरा नमस्कार
आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ
प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना......
दरिंदा के के साथ
उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी...
म्हारा हरियाणा
--
--
--
नामवर सिंह और साहित्य का तकाज़ा
--
--
ये अंतिम सांस ....
अरे ! तुम आ गए
पर अब क्यों आये
अब इस सांसों के
थमने की घड़ी में
तुम्हारा आना भी
बड़ा ही बेसबब है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।