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रविवार, जुलाई 24, 2016

"मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक" (चर्चा अंक-2413)

मित्रों 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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दोहे  

"वर्षा का आनन्द"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

सावन आया झूम केपड़ती सुखद फुहार।
तन-मन को शीतल करेबहती हुई बयार।१।
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सावन अपने साथ में, लाता है त्यौहार।
रक्षाबन्धन-तीज के, संग बहन का प्यार।२... 
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आँखें 

वे नहीं चाहते कि औरतों के आँखें हों. 
आँखें होंगी, तो वे देख सकेंगी, 
जान सकेंगी कि क्या-क्या हो रहा है 
उनके ख़िलाफ़... 
कविताएँ पर Onkar  
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महिमा मंडित नारी या शोषण की राह 

नारी धरती की तरह सहनशील है माॅ है, उसमें वेदना है संवेदना है ममतामयी है ,उसमें क्षमा है यानि सारी दुनिया में जितनी अच्छाइयाॅ है संस्कार है वह नारी के लिये है सब कुछ सहकर मौन है तो वह देवी है यदि आॅंख उठाती है तो दुष्टा है यानि दमन की नीति हर जगह है।
सदियों से धर्म ग्रन्थों में पुराणों मे नारी के इसी महिमामडित रूप का वर्णन है उसमें विश्वास दिलाया जाता है कि स्त्री की महानता और उसकी शक्ति मौन रहने में ही है इसके लिये बार बार अहिल्या ,सीता ,राधा, कुंती, द्रौपदी का उदाहरण दिया जाता है। इससे हम नारी शक्ति का दम्भ नही करेंगे । अब इससे ऊपर उठने के लिये इन उदाहरणों को बंद करना होगा... 
    Shashi Goyal 
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चाह 

महिला के साथ कबूतर के लिए चित्र परिणाम
बाहर बैठी देख रही 
रंगों की बहार हरीतिमा की 
खोने लगी अपने बचपन में 
जब आँगन में झूला डलवाया 
पर चढ़ न सकी तब रो रो कर 
घर सर पर उठाया... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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आज हम खुशनसीब है साजन 

वक्त हमको कभी उठाता है 
यह उठा कर कभी गिराता है ....  
साथ कोई यहाँ नहीं देता  
हमसफर साथ तब निभाता है ... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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सूखे पत्ते चरमराते हैं.. 

कभी कभी मैं सोचता हूं..  
किस शाख से गिरा हूं मैं..  
क्युं इतना सरफ़िरा हूं मैं..  
SB's Blog पर Sonit Bopche 
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बहुत मुँहफट है,  

बहनजी 

दलित आन्दोलन के प्रणेता थे मान्यवर कांशीराम जी। बहनजी उसी आन्दोलन के राजनीतिक पैदाइश है। आन्दोलन और उसके मूल्यों से बहनजी का धेले भर का लेना देना नहीं है। जिस तरह अण्णा जी के आन्दोलन से केजरी निकले बिलकुल उसी तरह मान्यवर कांशीराम जी के एक लम्बे और मूल्यों पर आधारित आन्दोलन से जन्मी बहनजी... 
Vikram Pratap Singh Sachan 
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इंक़िलाब की आहट 

मिले निगाह बार-बार तो बुरा क्या है 
बढ़े शराब में ख़ुमार तो बुरा क्या है 
दवाए-दिल तो ले रहे हैं मुफ़्त ही हमसे 
बनाएं आप ग़मगुसार तो बुरा क्या है ... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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दलित-स्त्री विमर्श का स्वर्णकाल! 

न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह12 साल की है ये बच्ची। लेकिन, दलित नहीं है। किसी राजनीतिक दल के समर्थक भी इसके पीछे नहीं हैं। इसके पिता दयाशंकर सिंह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष थे। एक शर्मनाक बयान दिया। उस पर तय से ज्यादा प्रतिक्रिया हुई। संसद भी चल रही थी। मोदी के गुजरात में दलितों पर कुछ अत्याचार की घटनाएं आ रही थीं। मामला दलित विमर्श के लिए चकाचक टाइप का था। उस पर महिला विमर्श भी जुड़ा, तो चकाचक से भी आगे चमत्कारिक टाइप की विमर्श की जमीन तैयार हो गई। सारे महान बुद्धिजीवी मायावती की तुलना भर से आहत हैं। देश उबल रहा है... 
HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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23 जुलाई लोकमान्य बाल गंगाधर टिळक 

* An Indian in Pittsburgh -  
पिट्सबर्ग में एक भारतीय * 
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तुम्हारे साथ साथ कितना चलते हम
एक तुम्ही थे जिसने हमें बेवफ़ा कहा

मर नही जाते तो फिर क्या करते हम... 
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ग़ज़ल/गीतिका 

उस ने सोचा सही आदमी की तरह 
भावना से भरा दिल नदी की तरह... 
कालीपद "प्रसाद" 
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भाष्य :  

तोड़ती पत्थर (निराला) :  

शिव किशोर तिवारी 

समालोचन पर arun dev 
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