हाँ तो हम फिन हाज़िर हैं, अपना चर्चा नंबर दू लेके...आज ब्लॉगवुड का तापमान सामान्य से लेकर थोडा बहुत ऊँचा है ....अभी ओतना गरम माहौल नहीं दिखाई पड़ रहा है.... हमारे संवाददाता ने खबर दिया है कि छिट-पुट लोग टंकी पर चढ़ उतर रहे हैं...जिनको ओतना गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है.....लेकिन गंभीरता से टंकी पकड़ कर बैठे हुए है 'श्री ललित शर्मा' उनके उतरने के आसार अभी तक नहीं बने हैं, हालांकि कई अनुरोध पत्र दाखिल किये जा चुके हैं...इस चर्चा द्वारा भी हम व्यक्तिगत रूप से उनसे गुज़ारिश कर रहे हैं कि अब गुस्सा थूक दीजिये और पधारिये....अब जब हमको बहिन कहते है आप, तो बहिन का बात भी तो मान लीजिये...आपको पता ही है आप नहीं आवेंगे तो blog4varta का भटठा हम ही बैठा देवेंगे...फिर हमको दोष मत दीजियेगा....हमको भी तो कॉम्पिटिशन का ज़रुरत है ....एक तो आप रात दिन पोस्ट लिख-लिख कर हमलोगन का आदत ख़राब कर दिए, उसके बाद पैर के नीचे थे गलीचा खींच लेना कौनो अच्छी बात है का? आशा ही नहीं विश्वास है आप लौट के आवेंगे जल्दी..... तो अब हम चलते हैं प्योर चर्चा की तरफ.... |
अंजलि, तुम्हारी डायरी से बयान मेल नहीं खाते हैं ![]() निस्तब्ध कोठरी के कोनों से निकलकर अँधेरा बीच आँगन में पसरा हुआ था। दीवारों से सटी चुप्पी से अंदाजा लगाना भी मुश्किल था कि यहाँ पांच लोग बैठे है. उनमे एक ही साम्य था कि वे सभी एक लड़की को जानते थे या उसकी ज़िन्दगी को कहीं से छू गए थे. चमकदार सड़क से होता हुआ गठीले बदन वाला ऑफिसर मद्धम प्रकाश वाली इस बड़ी कोठरी में दाखिल हुआ. दुनिया देख कर घिस चुकी उसकी आँखें छाया प्रकाश की अभ्यस्त थी. ऑफिसर ने कम रोशनी में भी पंक्ति बना कर बैठे लोगों को पहचान लिया. एक पर्दा कोठरी को दो भागो में बाँट रहा था. नीम अँधेरे में ये पर्दा और अधिक भय एवं रहस्य को बुन रहा था. ऑफिसर ने परदे के ठीक आगे, एक बिना हत्थे वाली बाबू कुर्सी रखी. उसपे अपना पांव रखते हुए बोला " कोतवाल साहब, अब रीडर जी और एल सी को बुलाओ." बिना पदचाप के दो साये आये और कोने में एक टेबल के पीछे रखी दो कुर्सियों पर बैठ गए, जबकि ऑफिसर अभी भी उसी मुद्रा में खड़ा हुआ था. सन्नाटा तोड़ने के लिए कोई तिनका भी न था, मानो ऑफिसर इसे एक मनोवैज्ञानिक हथियार की तरह धार दे रहा हो. कै हो जाने से पहले की हालात में बैठे हुए लोगों के चहरे पर यहाँ से बाहर निकल पाने उम्मीद जगी, जब कुछ क्षणों के बाद बयान दर्ज किये जाने की प्रक्रिया आरंभ हुई. |
सच का सामना .. ![]() अब आयी वैटिकन सिटी की असली कहानी। मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता और लोमहर्षक खेल का यह है संरक्षणवादी नीति। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी। जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कथौलिक चर्च का क्रूर-अमानवीय चेहरा सामने आया तब ‘विशाषाधिकार‘ का कवच उठाया गया। कैथ लिक चर्च ने नयी परिभाषा गढ़ दी कि उनके धर्मगुरू पोप बेनेडिक्ट सोलहवें पर न तो मुकदमा चल सकता है और न ही उनकी गिरफ्तारी संभव हो सकती है। इसलिए कि पोप बेनेडिक्ट न केवल ईसाइयों के धर्मगुरू हैं बल्कि वेटिकन सिटी राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। एक राष्ट्रध्यक्ष के तौर पर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी हो ही नहीं सकती है। जबकि अमेरिका और यूरोप में कैथलिक चर्च और पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी को लेकर जोरदार मुहिम चल रही है। न्यायालयों में दर्जनों मुकदमें तक दर्ज करा दिये गये हैं और न्याायलयों में उपस्थिति होकर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें को आरोपों का जवाब देने के लिए कहा जा रहा है। यह सही है कि पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के पास वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष का कवच है, इसलिए वे न्यायालयों में उपस्थित होने या फिर पापों के परिणाम भुगतने से बच जायेंगे पर कैथलिक चर्च और पोप की छवि तो घूल में मिली ही है इसके अलावा चर्च में दया, शांति और कल्याण की भावना जागृत करने की जगह कुकर्मों की पाठशाला कायम हुई है, इसकी भी पोल खूल चुकी है। चर्च पादरियों द्वारा यौन शोषण के शिकार बच्चों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया और न ही यौन शोषण के आरोपी पादरियो के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है। इस पूरे घटनाक्रम को अमेरिका-यूरोप की मीडिया ने वैटिकन सेक्स स्कैंडल का नाम दिया हैं। कुछ दिन पूर्व ही पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड में चर्च पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामले प्रकाश मे आने पर इस कुकृत्य के लिए माफी मांगी थी। |
जिंदगी और बता .....???? ![]() जिंदगी और बता, गम कितने तू मुझे देगी.. मैं हँसता जाऊंगा..क्या हँसी भी मेरी तू छीन लेगी..? जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....?? मस्त चाले देख मेरी, ना तू गश खाना.. ढेरो ठोकरे देकर भी कहीं तू ना थक जाना.. सागर के हिलोरे माना मुझे तहस-नह्स कर देंगे,. गम चाहे दे कितने भी...लौट कर तो किनारो में सिमट जायेगी ..!! जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....?? |
'लव जेहाद' की एक सच्ची कहानी...![]() सुरेश चिपलूनकर जी ने अपने एक लेख में 'लव जेहाद' का ज़िक्र किया है... क़रीब तीन साल पहले हमने दो हिन्दू लड़कियों को 'लव जेहाद' से बचाया था... ये लड़कियां आज बहुत सुखी हैं... और इनके माता-पिता हमें बहुत स्नेह करते हैं... बात तीन साल पुरानी है... हमारे शहर के दो मुस्लिम लड़के हैं, दोनों भाई हैं... उन्होंने पड़ौस की ही दो ब्राह्मण बहनों से 'प्रेम' (वास्तव में जो प्रेम हो ही नहीं सकता) की पींगे बढ़ानी शुरू कर दीं... दोनों लड़के अनपढ़ हैं, जबकि लड़कियां कॉलेज में पढ़ रही थीं... वो लड़कियों को शोपिंग कराते, उन्हें बाइक पर घुमाते... ब्राह्मण परिवार में वो लड़के दिन-दिनभर रहते... एक बार उनमें से एक लड़के ने किसी पुलिस वाले से मारपीट कर ली, उसे हिरासत में ले लिया गया... उसका भाई मदद के लिए हमारे पास आया... हमने एसपी से बात करके मामले रफ़ा-दफ़ा करवा दिया... साथ ही हिदायत भी दी कि फिर कभी ऐसी हरकत की तो हमारे पास मत आना... |
लोकसभा के चुनाव में प्रत्याशी के लिए आवेदन पत्र ![]() ३- राजनीतिक दल का नाम- (कृपया अपनी पिछली पांच पार्टियों के नाम समय के साथ क्रमानुसार लिखें) ४- लिंग- पुरुष महिला मायावती अन्य ५- राष्ट्रीयता इटालियन भारतीय |
सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा! ![]() सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा!मुहावरा आजकल सुनाई नही पड़ता,कभी स्कूल मे पढाया जाता था।ये याद ललित-अनिल प्रकरण के संदर्भ में।इस मामले में सिर्फ़ दो लोग खामोश रहे एक ललित और दूसरा मैं यानी अनिल।ललित तो अभी भी कुछ कहना नही चाहता और मैं भी,लेकिन जिस तरह से टंकी को लेकर सभी लिख रहे हैं उससे मुझे ऐसा लगा कि सच सामने आना ही चाहिये वरना भ्रम और बढता चला जायेगा।सो जो कुछ हुआ उसे आप लोगों के सामने रख रहा हूं,सच जस का तस। ललित से पहली मुलाकात ब्लाग पर नही हुई थी,वो मेरे साथ सालों पहले एक अख़बार मे काम कर चुका है।उसके बाद सालों का गैप और फ़िर ब्लाग पर मुलाकात और फ़िर आमने-सामने भेंट।पुराने रिश्ता रिनिव होने के बाद और गहरा होता चला गया और मुलाकात-फ़ोन का सिलसिला भी बढा।वो मुझे अच्छा लगता है और उसकी साफ़गोई और संवेदनशीलता को मैं अच्छी तरह से पहचानता हूं। |
ये खबर गर्म है .. ![]() ये खबर पढ़ लो, ये खबर गर्म है ! हादसों से अभी ये शहर गर्म है !! नादान सही पर इतनी तो है समझ ! इस दिल में ठंडक है, ये नज़र गर्म है !! रह गए जमकर ये लम्हात वहीँ पर ! तन्हाई की जो ये दोपहर गर्म है !! अभी से तो न मुझ पर लिखो मर्सिया ! अभी तो रगों में ये ज़हर गर्म है !! देख लो लगाकर हाथ एकबार 'सैल' ! जहाँ पर दफ़न है वो कबर गर्म है !! |
मेरी असली पहचान? ![]() मैं दलित, वंचित या पिछड़ा नहीं हूं, मैं तय मापदंड से नीचे के आय वर्ग से भी नहीं हूं, इसके अतिरिक्त मैं अल्पसंख्यक भी नहीं हूं, और तो और मैं नारी भी नहीं हूं। |
अपुरुष सूक्त सहस्रशीर्षा .... ... ब्राह्मणो मुखमासीद्.... ऋषि ! होगा तुम्हारा पुरुष सृष्टि उत्पादक हजारों सिरों वाला - बॉस की रोज रोज की घुड़की से तंग आ एक दिन मेरे इकलौते सिर ने आत्महत्या कर ली। उग आते हैं मेरे हाथ लोकल बस और ट्रेन में चढ़ते हुए । उतरते हुए झड़ जाते हैं। दोनों बगल झूलते हैं फाइलों के बस्ते जिनसे लटकते लाल धागों पर हजारो खुदकुशियों के निशान हैं। |
यू.के. से प्राण शर्मा की दो लघुकथाएं ![]() घर में आये मेहमान से मनु ने आतिथ्य धर्म निभाते हुए पूछा-” क्या पीयेंगे,ठंडा या गर्म?” ” नहीं, कुछ भी नहीं.” मेहमान ने अपनी मोटी गर्दन हिला कर कहा. ” कुछ तो चलेगा?” ” कहा न, कुछ भी नहीं.” ” शराब?” ” वो भी नहीं.” ” ये कैसे हो सकता है, मेरे हजूर? आप हमारे घर में पहली बार पधारे हैं. कुछ तो चलेगा ही.” मेहमान इस बार चुप रहा. मनु दूसरे कमरे में गया और शिवास रीगल की मँहगी शराब की बोतल उठा लाया. शिवास रीगल की बोतल को देखते ही मेहमान की जीभ लपलपा उठी पर उसने पीने से इनकार कर दिया, मनु के बार-बार कहने पर आखिर मेहमान ने एक छोटा सा पैग लेना स्वीकार कर ही लिया. उस छोटे से पैग का नशा उस पर कुछ ऐसा तारी हुआ कि देखते ही देखते वो आधी से ज्यादा शिवास रीगल की मँहगी शराब की बोतल खाली कर गया. मनु का दिल बैठ गया. झूमता-झामता मेहमान रुखसत हुआ. गुस्से से भरा मनु मेज पर मुक्का मारकर चिल्ला उठा- ” मैंने तो इतनी मँहगी शराब की बोतल उसके सामने रख कर दिखावा किया था. हरामी आधी से ज्यादा गटक गया. गोया उसके बाप का माल था.” |
बेटा बोला कि माँ मैं आपको मिस कर रहा हूँ ![]() ज्योतिष को मैं मानती हूँ लेकिन उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देती। मुझे लगता है कि बस कर्म करो, आपको फल मिलेगा ही। लेकिन पता नहीं क्यों इन दो-चार दिनों से मुझे लग रहा है कि दिन अच्छे आ गए हैं। इसलिए अच्छे दिनों को भी आप सभी से बाँट लेना ही चाहिए। क्यों ठीक है ना? अभी चार-पाँच दिन पहले अचानक मेरी पोस्ट पर महफूज का संदेश पढ़ने को मिला ‘मम्मा मैं आ गया हूँ’ ऐसा लगा कि स्त्री को पीछे धकेलकर आज माँ विराजमान हो गयी है। जैसे ही माँ का भाव आता है, ममता तो पिछलग्गू सी आ ही जाती है। बहुत अच्छा लगा कि मेरा रूखा-सूखा व्यक्तित्व माँ में बदल गया। अभी मैं इस शब्द के नशे में डूब-उतर ही रही थी कि एक चिन्ताजनक समाचार भी मिल गया। बेटे के सर्जरी होनी है, बेटा अमेरिका में है और मेरी टिकट मई के प्रथम सप्ताह की है। प्री-पोण्ड कराने का प्रयास किया लेकिन नहीं हुआ। बेटे ने कहा कि चिन्ता मत करो, कुछ दिनों बाद तो आप आ ही रही हैं। वैसे भी विशेष कोई बात नहीं है, सब ठीक हो जाएगा। सर्जरी कल हो गयी और वह घर भी आ गया। जब भारत में रात के चार बज रहे थे तब अमेरिका में दिन के साढे तीन बज रहे थे, इसलिए घर पहुंचकर उसने फोन नहीं किया। |
एक हलकी सी मुश्किल भी भारी सी लगती है .. ![]() इंसान एक ऐसा प्राणी, जिसकी सोच और कल्पनाशैली काफी विक्सित है. ऐसा तो खुद इन्सान का ही मनना है. मगर , क्यों ऐसा होता है की आपकी जिंदगी में आयी एक ख़ुशी बहुत ही कम, ना के बराबर और एक छोटा सा गम इतना बड़ा लगने लगता है जैसे बर्दाश्त के बहार हो जाए. क्यों इंसान इतना स्वार्थी होता है की खुद को ऊँचा दिखने के लिए किसी ना किसी को नीचा दिखता ही है. आज पता नहीं क्यों मेरा मन इतना बेचैन है इन सब बातों को जान ने और समझने के लिए परेशान सा है. कोई विद्यार्थी है जो गुरु की गुरुदाक्षिना ही ले कर भाग जाता है और खुद को बहुत होनहार समझता है. कहीं कोई पुस्तकालय से किताब चुरा रहा है. जबकि कई बुद्धिजीवी लोगों का मन ना है की विद्या ऐसा धन है जो चोरी नहीं हो सकता. मगर यहाँ का क्या? कोई किसी की तरक्की नहीं देख सकता. प्रतिस्पर्धा की भावना को द्वेष की भावना क्यों बना रहा है आज का इन्सान. क्यों आज भी, जब की हम इतने विक्सित हो चुके हैं; ये कहा जाता है की इंसान से ज्यादा तो जानवर भरोसेमंद होते है. और यही कारण है की कोई किसी पे भरोसा नहीं करता. |
उसने भिखारी से आठ आने का आटा खरीदा था ![]() मेरा बचपन महाराष्ट्र के भंडारा नामक कस्बे में बीता है । यह किस्सा उन दिनों का है जब मेरी उम्र 15 -16 साल रही होगी । मेरे पड़ोस में मेरा मित्र भगवान रहाटे रहा करता था । भगवान से छोटी एक बहन थी और एक छोटा भाई । भगवान के पिता उसके बचपन में ही दुनिया छोड़ गये थे और माँ बीड़ी बनाकर पूरे परिवार का गुज़ारा करती थी । मेरी और भगवान की बहुत गहरी दोस्ती थी । वह रोज़ शाम मेरे घर आ जाता था । फिर हम दोनो अपने एक और मित्र नईम खान के यहाँ जाते । फिर हम तीनों भंडारा की सड़कें नापने निकल जाया करते । रास्ते भर हम लोगों की बातचीत चलती रहती . डॉ.आम्बेडकर का जीवन उनके जीवन की प्रमुख घटनायें ,महाड़ सत्याग्रह , नाशिक सत्याग्रह , पूना पैक्ट , यह सब पहले पहल उसीसे जाना था मैने । हम लोग अपने अपने धर्मों के अलावा अन्य धर्मों, इतिहास और दर्शन पर भी बातें किया करते थे । भगवान बौद्ध धर्म मानता था और नईम इस्लाम ,लेकिन धर्म हम लोगों की दोस्ती के बीच कभी आड़े नहीं आता था । हम लोग एक दूसरे के घर में बैठकर एक ही थाली में खाने के आदी थे और छुआछूत मानने वालों का मज़ाक उड़ाया करते थे । हम तीनों में भगवान की आर्थिक स्थिति सबसे कमज़ोर थी, इतनी कि कभी कभी उसके घर में खाने को कुछ भी न होता था । |
ईश्वर आपके लिए क्या करे ?...खुशदीप ![]() ईश्वर आपके लिए क्या करे ?...यही था वो टॉपिक जिस पर बुज़ुर्गो के कल्याण के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने शहर में रहने वाले बुज़ुर्गों से उनके विचार मांगे...कई बुज़ुर्गों ने अपने विचार भेजे...पांच श्रेष्ठ विचारों को छांट कर उनमें से सर्वोत्तम छांटने के लिए शहर की कुछ जानीमानी हस्तियों को बुलाया गया...उनमें शहर के एक बहुत बड़े कारोबारी भी थे...बड़ी मुश्किल से इस कार्यक्रम के लिए वो वक्त निकाल कर आए थे...टाइप की गई पांच कॉपियों में से आखिरकार सर्वश्रेष्ठ विचार ये चुना गया... |
सैलून तेरे कितने रूप ? ![]() अ नादिकाल से नाइयों की दुकानें टाईमपास करने की जगह रही हैं। अक्सर देखा जाता है कि हेयर कटिंग सैलून saloon में कुछ लोग ऐसे बैठे ही रहते हैं जो बाल कटवाने नहीं आते बल्कि वहां बैठकर गप्पे लड़ाने आते हैं। सैलून में बजते हिट फिल्मी गीतों का मुजाहिरा किया जाता है। किसी ज़माने में तो बिनाका गीतमाला की हिटलिस्ट इन्हीं सैलूनों पर तय होती थी। जिन घरों में रेडियो नहीं होता था तो फिल्मी नग्मों को सुनने के लिए सैलूनों के बाहर मजमा लगता था। इन्हीं गीतों को सुनकर इश्को-आशिकी की नींवें मजबूत होती थीं। राजनीति से लेकर मोहल्ले-पड़ोस की परेशानियों पर तब्सरा होता है। मगर यह सब हुआ है अंग्रेजों के आने के बाद। इससे पहले तो गली के नुक्कड़ पर बने किसी चबूतरे पर धोतीधारी नाई निहायत फूहड़ तरीके से बालों पर कतरनी चला दिया करता था। अंग्रेजों के आने के बाद फैशनेबल ढंग से बालों की जमावट शुरू हुई। अंग्रेजी बसाहटों में बाल काटने की दुकानें खुलीं जिन्हें हेयर कटिंग सैलून कहा जाने लगा। नाई की दुकान की बजाय बाल कटवाने की जगह को सैलून कहना सभी को भाया। बाद में शहरों-कस्बों की कई गुमटियों में भी सैलून के बोर्ड टंग गए। अब ब्यूटी सैलून की जगह ब्यूटी क्लिनिक खुल रहे हैं और उसमें बाल भी काटे जाते हैं। इसी तरह सत्रहवीं सदी में जब देश में रेल चलनी शुरू हुई तब कई बदलाव आए। यातायात के इस सर्वप्रिय साधन के विस्तार का जिम्मा रजवाड़ों ने लिया। रेल के डिब्बों कतार में एक भव्य डिब्बा अलग से लगना शुरू हुआ जिसे शाही सैलून कहा जाता था। इसकी सजधज राजाओं की शान के अनुरूप होती थी। |
इस बार की ट्रेन यात्रा कुर्ला से पटना तक.... ![]() कुछ गंभीर विषयों पर लिखने की सोच रखी थी.पर दूसरे ब्लॉग पर कहानी ने ऐसा मोड़ ले लिया है कि unwind होना बहुत जरूरी है .और उसे बैलेंस करने के लिए कुछ हल्का-फुल्का लिखने का मन हो आया. मेरी एक पोस्ट पीक आवर्स" में मुंबई लोकल ट्रेन में यात्रा लोगों को पसंद आई थी. उस समय ट्रेन से सम्बंधित तीन संस्मरणों की सीरीज लिखने की सोची थी.पर एकरसता से मुझे बोरियत भी बहुत जल्दी हो जाती है सो टलता गया . |
“गुलाब और नागफनी” ![]() किन्तु नहीं मैं समझ ये पाया इन्सानों की क्या है माया दोनों पर है चढ़ी जवानी पर दोनों की भिन्न कहानी मुझको सीने से चिपकाते किन्तु तुझे नही हाथ लगाते |
दोस्ती की कॉकटेल!! ![]() दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है जो रेडीमेड नही आता… इस दुनिया मे कदम रखते ही हमे कुछ रिश्ते बनेबनाये मिल जाते है लेकिन हमे दोस्ती के रंग और साईज़ खुद ढूढने होते है… यहाँ तक कि हमसफ़र भी ज्यादातर घर वाले ही तय करते है, पर दोस्त… दोस्त तो हमे खुद ही ढूढने होते है… इस खोज मे कभी कभी ऐसे लोग मिलते है जो हमारी रिक्त्ता (वोइड) को भरते है और कुछ ऐसे भी मिलते है जो उन छेदो मे उँगलियाँ डाले रहने के शौकीन होते है… |
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री श्यामल सु... ![]() प्रिय ब्लागर मित्रगणों, हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. ताऊजी डाट काम पर हमने प्रतियोगिता में शामिल रचनाओं का प्रकाशन शुरु कर दिया है जिसके अंतर्गत आज श्री श्यामल सुमन की रचना पढिये. आपसे एक विनम्र निवेदन है कि आप अपना संक्षिप्त परिचय और ब्लाग लिंक प्रविष्टी के साथ अवश्य भेजे जिसे हम यहां आपकी रचना के साथ प्रकाशित कर सकें. इस प्रतियोगिता मे आप अपनी रचनाएं 30 अप्रेल 2010 तक contest@taau.in पर भिजवा सकते हैं. |
कुछ पोस्टें और पढिए …..( पोस्ट झलकियां ) ...झा जी कहिन ![]() आज हम एक और कलाकार का आगाज़ यहाँ करना चाहते हैं जोकि कम मशहूर हैं मगर उनकी चंद गज़लें हम दो दोस्तों को बेहद पसंद आयीं थीं और हमनें उनकी कैसेट मिलकर लम्बे अरसे तक तलाश की थीं। दरअसल मुन्नी बेगम मेरे दोस्त ने पहली बार मुझे सुनाई और खुद सुनी थी और एक दिन वह एकमात्र कैसेट टूट गई। जब दूसरी कैसेट ढूँढने निकले तो पता लगा कि Western कैसेट जिसने ये कैसेट भारत में लॉन्च की थी, बंद हो गई थी। |
जिंदगी मुझसे यूँ मिली ...... ![]() जिंदगी बस उस दम ही लगी भली जब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली पसरा रहा दरमियाँ खुला आसमां संकरी लगने लगी रिश्तों की गली जज्बातों ने ले ली फिर अंगड़ाई अरमानों की खिलती रही कली पलकों की सीप में अटके से मोती राह आने की तकती रही उसकी गली |
बेहतरीन चर्चा...बहुत लिंक मिले!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में हमारा जिक्र करने पर आपका व चर्चा मंच का आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए अनेक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत अच्छा है ! बहुत सारे लेख पढने को मिला ! ढेर सारा लिंक भी मिले ! बधाई !
बहुत विस्तृत चर्चा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अलग सी एक अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा .. लाजबाब !!
जवाब देंहटाएंअहा!
जवाब देंहटाएंआजकल अदा जी की चर्चा के चर्चे हर ज़ुबान पर,
जवाब देंहटाएंसबको मालूम है और सबको ख़बर हो गई...
जय हिंद...
बेहतरीन चर्चा अदा जी !
जवाब देंहटाएंmazaa aagaya....
जवाब देंहटाएंbahut se logo ko padhne ko mila...
rgds,
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/
बहुत विस्तृत चर्चा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंविस्तृत और बढ़िया चर्चा.....
जवाब देंहटाएंखूब चर्चा...मजेदार.
जवाब देंहटाएं***************
'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"
badhia charcha ...
जवाब देंहटाएंthanks ..
अहा...क्या बात है...हमारी पोस्ट पर भी नज़र पड़ गयी...मुझे तो लगा मुझे 'चर्चानिकाला' मिल गया है...पर लगातार दो दिन,अलग अलग चर्चाओं में मेरी पोस्ट शामिल ..जरा इस क्षण को आत्मसात कर लूँ :)
जवाब देंहटाएंवैसे बहुत बढ़िया चर्चा...अच्छे लिंक्स मिले हैं...
are waah shastri ji..........ada ji ne to kamaal kar diya..........bahut hi sundar charcha lagayi hai......aur kafi links yahin mil gaye hain........aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा अदा जी , एकदम कमाल । यूं ही छाई रहें ।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी मैंने तो शचि से पूछा था ..चर्चा कल दूं तुमाली बी
उनने कैया ....ना जी मन्ने लाज आवे , म्हारी करो को नी ।
अदा जी आप ये क्या लिख दीं हैं ?
जवाब देंहटाएंचलो ठीक है सबको अधिकार है
भट्टा कहने का और फ़ोटो पे माला डालने की स्वतंत्रता सबको है अदा जी
जवाब देंहटाएंada ji bahut shukriya hame bhi charcha manch ki charcha banaya.
जवाब देंहटाएंcharcha bahtareen to fir honi hi thi.
:):)aur vistar me bhi.
shukriya aur badhayi.
आज की चर्चा में
जवाब देंहटाएंआपने बहुत बढ़िया लिंक लगाए हैं!
अच्छी रही चर्चा।
जवाब देंहटाएंअदाजी, बहुत परिश्रम किया है। मैं तो दो दिन के लिए जयपुर गयी थी, कुछ पोस्ट इसी चर्चा से पढ़ने को मिली। बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरे लेख को चर्चा में रखने के लिए आपका और अदा जी का बहुत बहुत धन्यवाद......
जवाब देंहटाएं