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मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

“....गाँव की कुछ यादें!” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक - 127
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आज  "चर्चा मंच" पर सबसे पहली चर्चा है-
अपनी बात में गाँव के बीते दिनों को याद किया है वन्दना अवस्थी दुबे ने  ...
....गांव की कुछ यादें - आज अजय कुमार झा जी की पोस्ट पढ़ रही थी, पढ़ते-पढ़ते अपना गाँव बहुत-बहुत याद आने लगा. हमारा गाँव इसलिए क्योंकि वहां हमारे दादा-परदादा रहे. पुश्तैनी मकान, ...
अगर हो समीर लाल जी का गला तर!
तो निकलते हैं कण्ठ से मधुर स्वर!!
उड़न तश्तरी ....

वैल्यू ऑफ न्यूसेन्स वैल्यू - शाम हो चली. मौसम तो खैर जैसा भी हो, माकूल ही होता है पीने वालों के लिए. सर्दी हो, गरमी हो या बरसात. एक गिलास में *मुश्किल से १०% स्कॉच, बाकी पूरा पानी* ...
बस्तों का बोझ नन्गें मुन्नों पर भारी!
यही तो है इनकी लाचारी!
नीरज

यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहीं - सब को अपना हाल सुनाना, ठीक नहीं औरों के यूँ दर्द जगाना, ठीक नहीं हम आँखों की भाषा भी पढ़ लेते हैं हमको बच्चों सा फुसलाना, ठीक नहीं ये चिंगारी दावानल बन...
नन्हा मन
पर आज पढ़िए एक प्यारी सी कथा-
कहानी एक बुढ़िया की(लोक कथा पर आधारित) - *एक बुढ़िया थी बड़ी लालची पाली थी उसने मुर्गी जो नित सोने के अंडे देती बुढ़िया उनको बेचा करती। एक दिन उसके मन में आया मुर्गी देती रोज है अंडे देखूं इसका पेट फ़...
लगे हाथ
Kajal Kumar's Cartoons
 काजल कुमार का यह कार्टून भी देख ही लीजिए
कार्टून:- मेरी लाटरी निकली है... -
आज अदा जी लेकर आई है  
इन्सानों के बीच में शैतान ने 
किस प्रकार दम तोड़ दिया है-
काव्य मंजूषा

शैतान बेमौत ही मर गया..... - मौला ने एक बार होश गँवाया बेहोशी के आलम में इन्सान बनाया इन्सान बना कर उसे वो समझ न पाया सोचता रहा ये कुफ्र है या परेशान सा साया जमीं तो मैंने जन्नत सी बन...
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : अनामिका (सुनीता)
लेखिका परिचय
नाम : अनामिका (सुनीता)
जन्म : ५ जनवरी, १९६९
निवास : फरीदाबाद (हरियाणा)
शिक्षा : बी.ए , बी.एड.
व्यवसाय : नौकरी
शौक : कुछः टूटा-फूटा लिख लेना, पुराने गाने सुनना
ब्लोग्स :
अनामिका की सदाये और ' अभिव्यक्तियां '
ताऊ डॉट इन

ताऊ पहेली - 70 (मुरुदेश्वर मंदिर [कर्णाटक]) विजेता : श्री पी.एन. सुब्रमनियन - प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 70 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है मुरुदेश्...
मुक्ताकाश....
मुफलिस दिन बीते... - [एक मनस्थिति का काव्य-चित्र] गर्म हवाओं- से मुफलिस दिन बीते... बाँझ बनी शाम ढल आयी, रात की धूल भरी और फटी चादर को बौराए मच्छर हैं सीते... गर्म हवाओं-से .... !...
वाह…!
यहाँ तो बुश भइया भी सूफी हो गये हैं!
मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay.

बूझो तो जाने ??? जबाब - नमस्कार, सलाम, सत श्री अकाल आप सब को, पहेली सच मै बहुत कठिन थी, लेकिन यह पहेली एक पोस्ट के रुप मै कुछ समय पहले प्रकाशित हो चुकी थी, तो मेने सोचा हो सकता है...
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी ने 
एक प्रयास पर भक्ति रस का संचार किया है!
नैनन पड़ गए फीके - सखी री मेरे नैनन पड़ गए फीके रो-रो धार अँसुवन की छोड़ गयी कितनी लकीरें आस सूख गयी प्यास सूख गयी सावन -भादों बीते सूखे सखी री मेरे नैनन पड़ गए फीके बिन अँसु...

कविता में छिपे दर्द को महसूस करने के लिए 
आईये चलते हैं....
निर्मला कपिला जी के बाद आईये उस युवा कवि की कविताओं को आत्मसात करते हैं जिन्हें हिंदी चिट्ठाजगत केवल डेढ़ वर्षों से जानता है । डेढ़ वर्षों की अल्पावधि को देखा जाए और लोकप्रियता के ग्राफ को देखा जाए तो आश्चर्य होता है । इस युवा कवि की लोकप्रियता का ग्राफ……. 
परिकल्पना
  रवीन्द्र प्रभात

दिल में ईंटे हैं भरी, लब पै खुदा होता है !!!
मानवी इतिहास साक्षी है कि आजतक संसार में कोई जाति बिना धर्म के नहीं रही और न ही कभी आगे रह सकती है। धर्म की भूख तो इन्सान के ह्रदय में है। जिस प्रकार भूखा इन्सान कभी उचित या अनुचित खाने से भी पेट भर लेता हैं, उसी प्रकार कभी कभी जातियाँ या कोई व्यक्ति…….
धर्म यात्रा  
पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
कुछ और बढ़िया पोस्ट यो भी तो हैं श्रीमान् !
जज़्बात 
घरौन्दे की नींव आज रखिये - [image: image] हथेली पर अपने ताज़ रखिये कुछ तो नया अन्दाज़ रखिये . आप तो आप हैं, नाम बेशक रीना, मेरी या शहनाज़ रखिये . ज़माना कान लगाये बैठा है दफ़्न ...
"मेरी पुस्तक - प्रकाशित रचनाएँ : प्रेम फ़र्रुखाबादी"
कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं। - कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं। अपनी मुहब्बत को मुझे कई ढंग से दिखाते हैं। हम नहीं होते तो उन पर दुःख का पहाड़ टूटता मालूम नहीं मेरे बगैर दि...
Rhythm of words...

वो! -
वो जो रहता है मुझे में जिंदगी की तरह ढूंढता हूँ उसे कि शायद हो वो किसी की तरह वो आकर कभी पहचान अपनी दे जाये नहीं रहना चाहता संग उसके अजनबी की तरह!!
लफ्ज़ खो...
साहित्य योग



डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक और उड़न तश्तरी के अनुरोध पर यात्रा जारी है .... - चलिए यात्रा को और आगे बढ़ाते हैं ...फिर से थोडा गुदगुदाते हैं.... *(7)* गर्मी ने लोगों को इसकदर परेशान कर रखा था की लोग या तो ऊपर बंद पड़े पंखे को देखते या फि...
गत्‍यात्‍मक चिंतन  
मान्‍यताएं कब अंधविश्‍वास बन जाती हैं ?? - सुपाच्‍य होने के कारण लोग यात्रा में दही खाकर निकला करते थे , माना जाने लगा कि दही की यात्रा अच्‍छी होती है। देर से पचने के कारण यात्रा में कटहल की सब्‍जी ...
अंतर्मंथन
 यादों के झरोखों से --१९६९ का भारत ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टेस्ट मैच --- - आई पी एल ३ निकला जा रहा है । और हम तो एक भी मैच नहीं देख पाए । कल दिल्ली में दिल्ली का आखिरी मैच भी हो गया । क्या करें काम , काम और काम । लगता है इस बार भी...
An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय  
एक और इंसान - कहानी - भारत में रहते हुए हम सब गरीबी और भिक्षावृत्ति से दो-चार होते रहे हैं. पहले कभी वर्षा के ब्लॉग पर कभी इसी बाबत एक लेख पढ़ा था, "बात पैसों की नहीं है". वर्षा न...
अंधड़ !
   एक नालायक पुत्र की पिता को सलाह ! - *अपनों में ढूंढो, बेगानों में ढूंढो, चमन में ढूंढो, वीरानो में ढूंढो, पहाड़ों में ढूंढो, मैदानों में ढूढो, फ्लैटों में ढूंढो, मकानों में ढूंढो, शमाओ में ढूं...
उच्चारण
  “तार-तार हो गई!” - *“नवगीत”* *जिन्दगी हमारे, * *लिए आज भार हो गई! मनुजता की चूनरी, * *तो तार-तार हो गई!! * * * *हादसे सबल हुए हैं * * गाँव-गली-राह में, खून से सनी हुई छुरी छ...
Dr. Smt. ajit gupta 
क्‍या ब्‍लाग-जगत भी चुक गया है? - दो चार दिन से ब्‍लाग जगत में सूनापन का अनुभव कर रही हूँ। न जाने कितनी पोस्‍ट पढ़ डाली लेकिन मन है कि भरा ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। दो...
सुबीर संवाद सेवा     
ये कार्यक्रम जिसमें श्री विजय वाते, सुश्री नुसरत मेहदी जी, श्री माणिक वर्मा जैसे नाम श्रोताओं में बैठे थे और मेरे गुरू डॉ विजय बहादुर सिंह मुख्‍य अतिथि के रूप में विराजमान थे । - मित्रों का नेह कभी कभी मन को छू जाता है । अाप सब जानते ही हैं कि डॉ आज़म मेरे परम मित्रों में से हैं । उसी प्रकार से मेरे एक और मित्र हैं जनाब अनवारे इस्...
चुभन - भाग ४
Apr 19, 2010 | Author: सीमा सचदेव | Source: खट्टी-मीठी यादें
चुभन - भाग 1 चुभन - भाग 2 चुभन - भाग 3 मैं बस सुन रही थी , नलिनी बोलती जा रही थी , ऐसे जैसे वह कोई आप-बीती न कहकर कोई सुनी-सुनाई कहानी सुना रही हो । उसके चेहरे पर कोई भाव न थे , या फ़िर अपनी भावनाओं को उसनें हीनता के पर्दे से इस तरह ढक रखा था कि किसी की...
सूरज 
Apr 19, 2010 | Author: Babli |    Source: KAVITAYEN   
सूरज
रावण का पोस्‍टर
Apr 19, 2010 | Author: chavanni chap | Source: chavanni chap (चवन्नी चैप)
रावण का पोस्‍टर देख कर आप की क्‍या राय बनती है ? दो-चार शब्‍दों में कुछ
उफ़्फ़ शरद कोकास भीषण गर्मी को भी एन्जोय करते है ?
Apr 19, 2010 | Author: गिरीश बिल्लोरे | Source: मिसफिट:सीधीबात
कल ढलना है ........(कविता)....कवि दीपक शर्मा
Apr 18, 2010 | Author: हिन्दी साहित्य मंच | Source: हिन्दी साहित्य मंच
डाल कर कुछ नीर की बूंदे अधर में
मां भारती के रक्षार्थ सुकवियों का आह्वान
Apr 18, 2010 | Author: ANAND PANDEY | Source: महाकवि वचन
फिर ये भारत संकट में है फिर दुश्‍मन ताक विकट में है जागो तुम शब्‍द ब्रह्म फिर से भेदो अरि दुर्ग निकट निकट में है।
हंस के सम्पादक राजेन्द्र यादव के नाम एक पत्र
Apr 18, 2010 | Author: माणिक | Source: माणिकनामा
हंस का मार्च अंक पढ़ने के बाद
कोलकाता, 'City of Joy' और 'आनंद नगर'
Apr 18, 2010 | Author: Abhishek Mishra | Source: DHAROHAR
हावड़ा से गोहाटी लौटता हुआ दमदम एअरपोर्ट  पर  'डोमिनिक लेपियर ' की 'City of Joy' के हिंदी अनुवाद 'आनंद नगर' पर नजर पड़ी, जिसे पढने की उत्कंठा रोक न सका और इसे आज ही समाप्त की है. कोलकाता जैसे महानगर की पृष्ठभूमि में सारे भारत की ही विशिष्टता को प्रदर्शित करने वाली यह पुस्तक पिछले कुछ दशकों में बदलते कोलकाता और उससे जुड़े आम लोगों की जिंदगी को बखूबी  अभिव्यक्त करती है. जमीन से कटे, बेगारी से हाथ रिक्शा खींचती किसानों की व्यथा, जिंदगी की जद्दोजहद, कोलकाता में स्थित छोटा सा भारत ...
कुदरत के रंग गणित के संग
Apr 18, 2010 | Author: Poonam Misra | Source: Science Bloggers' Association
कुदरत के रंग गणित के संग-पूनम मिश्रा  विद्यार्थी .." सर सब लोग हिन्दी,इंग्लिश,उर्दू आदि भाषाओँ में बोलते हैं,गणित में क्यों नहीं?" शिक्षक, " ज्यादा तीन- पांच मत करो और यहाँ स नौ दो ग्यारह हो जाओ नहीं तो चार पांच जड़ दूंगा तो छः के छत्तीस नज़र आयेंगे !" शायद मनुष्य गणित की भाषा में न बात करे पर सच तो यह है की प्रकृति की भाषा तो गणित ही है ! यह बहुत ही रोचक विषय है .इस पहेली को पढ़िए.ज़रूर आप ने


माननीय रतन टाटा जी से अनुरोध कि टाटा मोटर्स की इस खराब कार के मामले में हस्‍तक्षेप करने का कष्‍ट करें ? (अविनाश वाचस्‍पति)


अभी पिछले सप्‍ताह ही समाचार पत्रों में एक खबर पढ़ी है कि टाटा समूह के श्री रतन टाटा को एक अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जा रहा है। मैं उनको दिल से बधाई देता हूं पर मेरी यह भी गुजारिश है कि वे मुझे उनके समूह की टाटा मोटर्स निर्मित टाटा इंडिका जीटा से भी मुक्ति दिलवाने का कष्‍ट करें। मेरे लेखन कार्य में अनियमितता का एक कारण यह समस्‍या है। जिसने मेरा चैन छीन रखा है।

अब आज की चर्चा को देता हूँ विराम!
”मयंक” की सबको राम-राम!!

19 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे...!!
    समय सारिणी का कितना ख्याल है आपको...एकदम समय से आपकी प्रविष्ठी आ जाती है...बिना किसी कमी के...
    हमेशा कि तरह लाजवाब...
    हम सभी आपके आभारी है...

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  2. बहुत बढ़िया चिट्ठा चर्चा....शास्त्री जी बधाई

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  3. चर्चा में मेरे कार्टून को भी शामिल करने के लिए हार्दकि आभार.

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  4. बहुत सुंदर चर्चा, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. 'अदा' जी से पूरी तरह से सहमत !
    आपको नमन !

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  6. बहुत बढ़िया चर्चा....नए लिंक्स के साथ...बधाई

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  7. अति सुन्दर एवं मनमोहक चर्चा...कईं बढिया लिंक्स मिल गए..
    धन्यवाद!!

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  8. आदरणीय शास्त्री जी, चर्चा में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिये आभार. पूरी चर्चा जिस श्रम से तैयार की गई, उसके लिये साधुवाद.

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  9. अनुभव,मनुस्य को महान विचारक एव्म किरयाशील बना देता है..सु्न्दर परिच्रर्चा...

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  10. बहुत रोचक चर्चा ...!!

    ______________
    'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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